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शनिवार, 6 मार्च 2021

भजन शांति देवी वर्मा

मातुश्री स्व. शांति देवी रचित एक भजन 
गिरिजा कर सोलह सिंगार
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गिरिजा कर सोलह सिंगार
चलीं शिव शंकर हृदय लुभांय...

माँग में सेंदुर, भाल पे बिंदी,
नैनन कजरा लगाय.
वेणी गूँथ मोतियन के संग,
चंपा-चमेली महकाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...

बाँह बाजूबंद, हाथ में कंगन,
नौलखा हार सुहाय.
कानन झुमका, नाक नथनिया,
बेसर हीरा भाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...

कमर करधनी, पाँव पैजनिया,
घुँघरू रतन जडाय.
बिछिया में मणि, मुंदरी मुक्ता,
चलीं कमर बल खाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...

लँहगा लाल, चुनरिया पीली,
गोटी-जरी लगाय.
ओढे चदरिया पञ्च रंग की ,
शोभा बरनि न जाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...

गज गामिनी हौले पग धरती,
मन ही मन मुसकाय.
नत नैनों मधुरिम बैनों से
अनकहनी कह जांय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...

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