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रविवार, 22 मार्च 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
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खर्चे अधिक आय है कम.
दिल रोता आँखें हैं नम..
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पाला शौक तमाखू का.
बना मौत का फंदा यम्..
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जो करता जग उजियारा
उस दीपक के नीचे तम..
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सीमाओं की फ़िक्र नहीं.
ठोंक रहे संसद में ख़म..
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जब पाया तो खुश न हुए.
खोया तो करते क्यों गम?
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टन-टन रुचे न मन्दिर की.
रुचती कोठे की छम-छम..
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वीर भोग्या वसुंधरा
'सलिल' रखो हाथों में दम..
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