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मंगलवार, 31 मार्च 2020

लघुकथा - सन्नाटा डॉ अरविंद श्रीवास्तव


लघुकथा कार्यशाला: 
प्रविष्टि १ 
लघुकथा -
सन्नाटा
डॉ. अरविंद श्रीवास्तव, दतिया
*
घर के आँगन में चहल-पहल थी, दीवारें मुस्कुरा रही थीं, खिड़कियों ने नए वस्त्र पहन लिए थे, रसोई घर से पकवानों की खुशबू दूर-दूर तक फैल रही थी। आज गाँव का सबसे होनहार युवा आलोक वर्मा अपनी नौकरी से एक माह की छुट्टी पर विदेश से अपने घर लौट रहा था। घर में माता-पिता दादा-दादी बा छोटी बहन की खुशियाँ उनके चेहरों पर साफ झलक रही थी। इस खुशी के अवसर पर आलोक के गाँव के मित्र व कुछ अन्य बुजुर्ग भी आलोक के घर पर एकत्रित हो चुके थे। तभी एक कार 'वर्मा सदन' के सामने आकर रूकती है। आलोक कार की खिड़की से ही सभी का अभिवादन करता है। वह सभी से दूरी बनाए रखना चाहता है। 
माँ को यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है।वह आगे बढ़कर आलोक से कहती है-" बेटा!, तुम कितने दिनों बाद लौटे हो? अपने बुजुर्गों के चरण छूकर उनका आशीर्वाद लो।" आलोक माँ को समझाते हुए कहता है-"माँ, मुझे १४ दिन तक सबसे दूरी बनाकर रखना है ;मुझे ऐसा निर्देश मिला है। उसके बाद मै सब से मिलकर आशीर्वाद ले लूँगा।" माँ कहती है," बेटा! चिंता मत कर। मैंने तुझे स्वामी जी का लॉकेट पहन रखा है, कुछ नहीं होगा, जल्दी से बाहर आ जा। 
विवश होकर आलोक सभी से मिलता है और चार-पाँच दिन के पश्चात गाँव में एक नई समस्या शुरू हो जाती है। अधिकांश लोग सूखी खाँसी, नाक बहने और बुखार से पीड़ित हो जाते हैं । आलोक के परिवार के सभी सदस्यों की हालत इतनी खराब हो जाती है कि उन्हें शहर के अस्पताल में जाँच के बाद आइसोलेशन (एकांत) में पहुँचाया जाता है। वे सभी कोरोनावायरस के शिकार हो चुके थे आलोक के खिलाफ पुलिस केस दर्ज होता है। हँसते -खेलते परिवार तथा उस गाँव में खौफनाक सन्नाटा छा जाता है
संपर्क - १५० छोटा बाजार, दतिया (म•प्र •) चलभाष ९४२५७२६९०७

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