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गुरुवार, 5 मार्च 2020

गोपी छंद

छंद - " गोपी " ( सम मात्रिक )
शिल्प विधान: मात्रा भार - १५, आदि में त्रिकल अंत में गुरु/वाचिक अनिवार्य (अंत में २२ श्रेष्ठ)। आरम्भ में त्रिकल के बाद समकल, बीच में त्रिकल हो तो समकल बनाने के लिएएक और त्रिकल आवश्यक। यह श़ृंगार छंद की प्रजाति (उपजाति नहीं ) का है। आरम्भ और मध्य की लय मेल खाती है।
उदाहरण:
१. आरती कुन्ज बिहारी की।
कि गिरधर कृष्ण मुरारी की।।
२. नीर नैनन मा भरि लाए।
पवनसुत अबहूँ ना आए।।
३. हमें निज हिन्द देश प्यारा ।
सदा जीवन जिस पर वारा।।
सिखाती हल्दी की घाटी ।
राष्ट्र की पूजनीय माटी ।। -राकेश मिश्र
४. हमारी यदि कोई माने।
प्यार को ही ईश्वर जाने।
भले हो दुनियाँ की दलदल।
निकल जायेगा अनजाने।। -रामप्रकाश भारद्वाज
हिंदी आरती
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
भारती भाषा प्यारी की।
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
वर्ण हिंदी के अति सोहें,
शब्द मानव मन को मोहें।
काव्य रचना सुडौल सुन्दर
वाक्य लेते सबका मन हर।
छंद-सुमनों की क्यारी की
आरती हिंदी न्यारी की।।
*
रखे ग्यारह-तेरह दोहा,
सुमात्रा-लय ने मन मोहा।
न भूलें गति-यति बंधन को-
न छोड़ें मुक्तक लेखन को।
छंद संख्या अति भारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*
विश्व की भाषा है हिंदी,
हिंद की आशा है हिंदी।
करोड़ों जिव्हाओं-आसीन
न कोई सकता इसको छीन।
ब्रम्ह की, विष्णु-पुरारी की
आरती हिन्दी न्यारी की।।
*

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