कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

लघुकथा जबलपुर

हिंदी वर्णक्रमानुसार [परिचय]
अ. दिवंगत लघुकथाकार :
अविनाश दत्तात्रेय कस्तूरे, १४४१ गंगा नगर, गढ़ा, जबलपुर।
गायत्री तिवारी, २७-१२-१९४७, (११२/११९ सराफा वार्ड, कोतवाली, जबलपुर ९३००१२१७०२)
गुरुनाम सिंह रीहल, १२-१२-१९५१, निधन १५-७-२०१४, बी.ए., व्यंग्य असली-नकली मांडवी प्रकाशन गाज़ियाबाद, लघुकथा: तलाश २००७। (सहृदय निवास १५५२ महानद्दा, जबलपुर ०७६१ २४२१५५१ )
मनोहर शर्मा 'माया', १७-८-१९३५ निधन १०-१२-२०१३, (लता-स्मृति, गंगानगर, गढ़ा, जबलपुर, ०७६१ २३७१०७०, चल. ९८२६६८७५६७)
मृदुल मोहन अवधिया, निधन १७-९-२०१४, (१८९९ देवताल, गढ़ा, जबलपुर)
मो. मोईनुद्दीन 'अतहर', १-६-१९४४, डिप्लोमा पॉलीटेक्निक, लघुकथा: काँटे ही काँटे १९८१, शैतान की चाल १९९०, कैक्टस २००१, वर्तमान का सच २००५, दृष्टि २००९ अयन प्रकाशन दिल्लीफूल और काँटे २०१२ अयन प्रकाशन दिल्लीमुखौटों के पार २०१३ अयन प्रकाशन दिल्लीग़ज़ल: चिलचिलाती चाँदनी १९८३, सदा-ए-वक़्त १९९६, वसील-ए-निजात १९९७, अता-ए-रूमी २००६, ना'त शरीफ: खुमार बाकी है २००७, स्मारिका अतहर के आयाम २००५। (१३०८ पसयाना, अजीजगंज, जबलपुर ०७६१ २४४३८३०, ९४२५८६०७०८)  
रवींद्र खरे 'अकेला', १८-१२-१९५८, बी.एससी।, एम.ए., एम. कॉम., तृप्ति १९८४ समीर प्रकाशन जबलपुर, । 
विजयकृष्ण ठाकुर, व्यंग्य संग्रह: सांड कैसे कैसे, (साई निकेतन, १५२ शक्ति नगर, गुप्तेश्वर, जबलपुर)। 
श्याम सुंदर सुल्लेरे,   
श्री राम ठाकुर 'दादा', निधन २९-१२-२००८, मेरी १२१ लघुकथाएँ, २००७, अर्चना प्रकाशन, (३४ विवेकानंद नगर, यादव कॉलोनी, जबलपुर।) 
९. हरिशंकर परसाई 

आ. सृजनरत लघुकथाकार:

अखिलेश खरे, ३०.६.१९७१, बड़ा कछारगाँव, द्वारा मझगवाँ सरौली, कटनी, ४८३३३४, sumitkhare2003@gmail.com, ९७५२८६३३६९।
अनुराधा गर्ग -दीप्ति', २९.४.१९६०, ०७६१ २६४३८०२।
अरुण भटनागर,
अरुण यादव, २.६.१९६९, १४२ यादव मोहल्ला, रामपुर, जबलपुर, ०७६१ २६६३६३७, ९९२६६५८५२७ ।
अर्चना मलैया, १८.६.१९५८, चंद्रिका टॉवर्स, मॉडल रोड, जबलपुर, दूरभाष ०७६१ १४००६७२३, चलभाष ९९७७२५०३४१।
अर्चना राय, बी.एससी., आदर्श होटल, पंचवटी, भेड़ाघाट, जबलपुर ४८३०५३, चलभाष ९९८१९८९८७३, ईमेल archana.rai1977@gmail.com ।
अविनाश दत्तात्रेय कस्तूरे, १४४१ गंगा नगर, गढ़ा, जबलपुर।
अशोक श्रीवास्तव 'सिफर', १०-७-१९६०, बी.टेक., ३५ नरसिंह वार्ड, गुलजार होटल के पीछे, महानद्दा, जबलपुर चलभाष ९४२५१६४८९६।
अशोक कुमार श्रीवास्तव, गौरैयाघाट, मंडला मार्ग, जबलपुर।
अशोक श्रीवास्तव 'सिफर'
आनंद मोहन अवस्थी
आरोही श्रीवास्तव
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल',
आरोही श्रीवास्तव, २२-७-१९९०, बी.कॉम., सी.ए., बी १ अभिषेक अपार्टमेंट, शास्त्री पुल, नेपियर नेपियर टाउन, जबलपुर akar.arohi@gmail.com ०७६१ २४२८७४५ ।
आशा भाटी, ९-९-१९५४, कंचन छाया, एम.आई.जी.८ विजय नगर, जबलपुर ०७६१ ५००२२४४, चलभाष ९३०१८२२७८२, ९३०११२३९५८।
आशा वर्मा,
ओंकार ठाकुर, ३४६ त्रिमूर्ति नगर, दमोह मार्ग, जबलपुर।
ओमप्रकाश बजाज, १९ मई १९३०, २१९१ ऍफ़ इन्द्राणी अपार्टमेंट, मदनमहल, / बी २ गगन विहार, गुप्तेश्वर,जबलपुर ४८२००१, दूरभाष ०७६१ - २४२६८२०, ५५२२३३३, चलभाष ०९८२६४९६९७५ / विजय विला, कालिंदी कुञ्ज, समीप अग्रवाल पब्लिक स्कुल, पिपलिहाना, रिंग रोड, इंदौर
उमा मिश्र 'प्रीति' preetimishra0873@gmail.com
उमाशंकर राय 'उत्साही', मेजर किराना स्टोर्स, गणेशगंज, रांझी, जबलपुर।
किरण श्रीवास्तव,
कुँवर प्रेमिल, ३१-३-१९४७, लघुकथा: अनुवांशिकी २००५ मांडवी प्रकाशन गाज़ियाबाद, कहानी: चिनम्मा, पाँचवा बूढ़ा २०११ मांडवी प्रकाशन गाज़ियाबाद, बाल उपन्यास: प्रदक्षिणा, व्यंग्य लेख: आम आदमी - नीम आदमी, कंचन छाया, एम.आई.जी.८ विजय नगर, जबलपुर ०७६१ ५००२२४४, चलभाष ९३०१८ २२७८२, ८९६२६ ९५७४०।
कृष्णा राजपूत, ९३२९६८५१३५।
गायत्री तिवारी,
गिरिधर गोपाल पांडे, नार्थ लक्ष्मी कॉलोनी, रानीताल, जबलपुर।
गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल', २९.११.१९६२, ९८२६०७२९१६।
गीता गीत, ३१-१२-१९६२, एम.ए.(समाजशास्त्र, हिंदी साहित्य), काव्य : कविता का नहीं है कोई गाँव, लघुकथा : जामुन का पेड़ प्रज्ञा प्रकाशन रायबरेली, १०५० सरस्वती निवास, शक्ति नगर, गुप्तेश्वर, जबलपुर, चलभाष ९८९३३०५९०७ ।
गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त, ७.८.१९५०, ८२२५०३६७२८।
गुरुनाम सिंह 'रीहल' स्व.
चंद्रशेखर तिवारी 'कोले', १०८ नेपियर टाउन जबलपुर।
छाया त्रिवेदी,२१.५.१९४९, एम.ए., एम.एड., एलएल.बी., कहानी: यशोदा हार गयी, संग्रह मन इकतारा मन बंजारा, लघुकथा: जुबैदा खाला की खीर, ११२९ नेपियर टाउन, शास्त्री पुल, बाल निकेतन मार्ग, जबलपुर ४८२००१, दूरभाष २४०३४३२, ९४७९६४४९०९।
छाया सक्सेना 'प्रभु', १५- ८-१९७१, बी.एससी., बी.एड., एम.ए., एम.फिल., १२ माँ नर्मदे नगर, फेज़ १ बिलहरी, जबलपुर ४८२०२०, चलभाष ९३०३४५५६६४, chhayasaxena2508@gmail.com ।
ज्योति मंगलानी, ३०-६-१९७१, बी.एच.एस.सी., ४७ ए.पी.आर. सोसायटी, कटंगा, जबलपुर, चलभाष ९६४४६२६१५४।
दिनेश नंदन तिवारी, ३-९-१९५५, साई सबूरी, ई ६ रामनगर, रामपुर, जबलपुर ४८२००८, ०७६१ २६६४८७०, ९४२४३०८५०५।
देवेंद्र तिवारी 'रत्नेश', डी ७ शक्ति गार्डन, सरस्वती कॉलोनी, जबलपुर, चलभाष ८८७८३३८६२४।
धीरेन्द्र बाबू खरे, १२-१२-१९५१/३०.६.१९५१, १००६ बाई का बगीचा, जबलपुर, ०७६१ २६२३४८३, ९४२५८६७६८४।
नीता कसार, २३५/२ बी, जे डी ए कॉलोनी, बाजनामठ, जबलपुर ४८२००३, चल. ८९८९९७६५९८।
पवन जैन, ५९३ संजीवनी नगर, जबलपुर ४८२००३, madhuneer1958@gmail.com ९४२५३२४९७८।
पुष्पा सक्सेना,
प्रकाश चंद्र जैन,
प्रदीप शशांक (ठाकुर प्रदीप कुमार सिंह), २७-६-१९५५, बी.कॉम., वह अजनबी २००९ अयन प्रकाशन दिल्ली, ३७/९ श्रीकृष्णं ईको सिटी, समीप श्रीराम कॉलेज, कटंगी मार्ग, माढ़ोताल, जबलपुर ०७६१ २६५१२८७, ९४२५८६०५४०।
प्रतुल श्रीवास्तव, ९४२५१५३६२९।
प्रभा पांडे 'पुरनम', २.१२.१९४७, एम.ए., एलएल.बी., काव्य पूजा के फूल, खुशबु का डेरा, १७०३ रतन कॉलोनी, गोरखपुर, जबलपुर ०७६१ २४१२५०४ /५ ।
प्रभा विश्वकर्मा 'शील', ५.७.१९६९, ५५७ गुलौआ चौक, नारायण नगर कॉलोनी, जबलपुर, चलभाष ९०९८००५७६९, ९९२६३५६३९०, ९०९८००५७६९ ।
प्रभात दुबे, ५-२-१९५०, बी.कॉम., १११ पुष्पांजलि स्कूल के सामने, शक्तिनगर, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२४३१०९८४।
प्रभात सिंह पटेल, १७२ शिव नगर, दमोह मार्ग, जबलपुर।
बसंत शर्मा,
भगवत दुबे, १८ अगस्त १९४३, काव्य: दधीचि-महाकाव्य, स्मृति गंधा, अक्षर मंत्र, हरीतिमा, रक्षाकवच, संकल्परथी, बजे नगाड़े काल के, वनपाँखी, जियो और जीने दो, विष कन्या, शंख नाद, प्रणय ऋचाएं, कांटे हुए किरीट, करुणा यज्ञ, साई की लीला अपार, माँ ममता की मूर्ति, जनक छंद की छवि छटा, हाइकू रत्न, गीत स्वाभिमान के, फागों में लोक रंग, तांका बांका छंद है, गौरव पुत्र, चिंतन के चौपाल, नवगीत- हिरन सुगंधों के, हम जंगल के अमलतास, भूखे भील गए, बालगीत - अक्कड़ बक्कड़, अटकन-चटकन, छुपन छुपाई, नन्हें नटखट, कर्म वीर, पारस मणि, हिंदी के अप्रतिम सर्जक, सुधियों के भुजपाश, लोक मंजरी, दोहा- शब्दों के संवाद, शब्द विहंग, हिंदी तुझे प्रणाम, साँसों के संतूर, बुंदेली दोहे, ग़ज़ल - चुभन, कसक, शिकन, घुटन, कहानी- दूल्हादेव, जसूजा सिटी, भेड़ाघाट मार्ग, जबलपुर, ९३००६१३९७५, ९९९३४००९५० ।
भारती नरेश पाराशर, एम.ए., एम.एस.डब्ल्यू., १५ स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया कॉलोनी, समीप हाथीताल रेलवे क्रॉसिंग, गोरखपुर, जबलपुर ४८२००१, चल. ८८३९२६६४३४।
मधु जैन, बी.एससी।, बी.एड., एक क़तरा रौशनी, २०१९, बोधि प्रकाशन जयपुर, ५९३ संजीवनी नगर, जबलपुर ४८२००३, madhuneer1958@gmail.com, ९४२५३२४९७८
मधुकर पराग, ६३६/६ पनहरा, टाइप आई, gcf जबलपुर।
मनीषा गौतम, ६ अक्टूबर १९६३, एम.ए. (राजनीति), इधर कुआँ उधर खाई २०१८, ७६५ नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, ०७६१ २४१४४१९।
मनोज शुक्ल, १६.८.१९५१, एम.कॉम., आशीष डीप, ५८ उत्तर मिलौनीगंज, जबलपुर ४८२००२, mkshukla48@gmail.com ९४२५८६२५५०।
मनोहर बिल्लोरे, जयप्रकाश नगर, अधारताल, जबलपुर।
मनोहर शर्मा 'माया', १७-८-१९३५ निधन १०-१२-२०१३, (लता-स्मृति, गंगानगर, गढ़ा, जबलपुर, ०७६१ २३७१०७०, चल. ९८२६६८७५६७)
ममता जबलपुरी, ३.९.१९६५, ९४०६७६०४८९।
महेश किशोर शर्मा, १०२० शक्ति नगर, गुप्तेश्वर, जबलपुर, दूरभाष: ०७६१ ४०१०३००, चलभाष :
मृदुल मोहन अवधिया, निधन १७-९-२०१४, (१८९९ देवताल, गढ़ा, जबलपुर)
मिथलेश बड़गैया,
मिथलेश नायक 'कमल', १९.१०.१९५२, एम.ए., बी.टी.सी., ८३९ पूर्वी घमापुर, जबलपुर, चलभाष ९३०००७७२८९।
मीना भट्ट, ३०-४-१९५३, एम.ए., एलएल.बी., १३०८ कृष्णा हाइट्स, गवरीघाट मार्ग, जबलपुर ९४२४६६९७२२।
मुकुल तिवारी, १.७.१९६१, ९४२४८३७५८५।
मोहन यादव 'शशि', १-४-१९३७, काव्य कृति: सरोज १९५६, तलाश एक दाहिने हाथ की १९८३, राखी नहीं आई १९८५, हत्यारी रात १९८८, शक्ति साधना १९९२, दुर्गा महिमा १९९५, अमिय १९९६, बेटे से बेटी भली २०११, देश हसि तो सुनो जान है बेटियां २०१६, जगो बुंदेला जगे बुंदेली २०१९, गली २, शांति नगर, जबलपुर, २३४२३००,९४२४६ ५८९१९, ९३००७५५५९६ ।
मोहन लोधिया, ८.४.१९४६, १३५/१३६ मोहन निकेत, अवधपुरी कॉलोनी, नर्मदा मार्ग, जबलपुर, ०७६१ २६६१११४, ९८२७३०१९५९।
मोहन श्रीवास, ६८०/४ कमला नेहरू नगर जबलपुर।
मो. मोईनुद्दीन 'अतहर' स्व., १-६-१९४४, डिप्लोमा पॉलीटेक्निक, लघुकथा: काँटे ही काँटे १९८१, शैतान की चाल १९९०, कैक्टस २००१, वर्तमान का सच २००५, दृष्टि २००९ अयन प्रकाशन दिल्लीफूल और काँटे २०१२ अयन प्रकाशन दिल्लीमुखौटों के पार २०१३ अयन प्रकाशन दिल्लीग़ज़ल: चिलचिलाती चाँदनी १९८३, सदा-ए-वक़्त १९९६, वसील-ए-निजात १९९७, अता-ए-रूमी २००६, ना'त शरीफ: खुमार बाकी है २००७, स्मारिका अतहर के आयाम २००५। (१३०८ पसयाना, अजीजगंज, जबलपुर ०७६१ २४४३८३०, ९४२५८६०७०८)
मोहम्मद शहाबुद्दीन, १३०८ पसयाना, अजीजगंज, जबलपुर, ९३०३०३००९६।
यशोवर्धन पाठक, ६.५.१९५८, ०७६१२४२८२७१।  
रत्ना ओझा 'रत्न', ७.४.१९४७, २४०५/८ गाँधी नगर, न्यू कंचनपुर, अधारताल, जबलपुर, ०७६१ २६८०८१७, ९४७९८४७००६।
रमेश सैनी, २४५ ए एफ सी आई लाइन, त्रिमूर्ति नगर, दमोह नाका, जबलपुर।
रवींद्र खरे 'अकेला', १८-१२-१९५८, बी.एससी।, एम.ए., एम. कॉम., तृप्ति १९८४ समीर प्रकाशन जबलपुर, ।  
राकेश भ्रमर,
राजकुमार तिवारी 'सुमित्र', २५.१०.१९३८, ११२/११९ सराफा वार्ड, कोतवाली, जबलपुर ९३००१२१७०२।
राजकुमारी नायक, लघुकथा संग्रह यगाना २०१५, ४ रामपुर, आजाद चौक, मिलन कॉलोनी, जबलपुर
राजलक्ष्मी शिवहरे, २२-२-१९४९, एम.ए., पीएच.डी., सी १३ उच्च आय वर्ग, धन्वन्तरी नगर, जबलपुर, ९४२५१५४९६१, ९९२६८७०१०३।
राजीव गजानन आंवले, mpeb ।
राजीव वर्मा 'राजू', तिलहरी, जबलपुर।
राजेश चौकसे, २६ पारस कॉलोनी, जबलपुर।
राजेश पाठक 'प्रवीण', २९.९.१९६२, १५७ सनातन संगम, फूटाताल, जबलपुर, ९८२७२६२६०५।
रामप्रसाद 'अटल', हर्षालय, पुरानी बस्ती, रांझी, जबलपुर ४८२००५।
रामशंकर खरे,
लक्ष्मी शर्मा, १-५-१९४५, एम.ए.(हिंदी साहित्य), काव्य: अंतस की सीपियों के मोती, व्यथा पृथ्वी की, एक सूरज मेरे अंदर, मौन तोड़ो आज तुम, कन्या जन्म लेगी, क्षितिज के पार, समय के पंख, कहानी, गलियारे की धुप, तीसरा कोना, मन के चक्रवात, सुलगते प्रश्न, उपन्यास: कश्मीर का संताप, आदि शक्ति श्री सीता, अंतर्द्व्न्द, बाल साहित्य: आओ बच्चों देश को जाने, बच्चे मन के सच्चे, होनहार बच्चे कहानी, हम बच्चे हिंदुस्तान के नाटक, छू लो आसमान उपन्यास, बुंदेली: मेला घूमन निकरी गुइयाँ, मायको बिसरत नईयां, भोर को उजियारो, लघुकथा: मुखौटे, करेजे की पीर बुंदेली, १०२० शक्ति नगर, गुप्तेश्वर, जबलपुर, दूरभाष: ०७६१ ४०१०३००, चलभाष :
विजयकृष्ण ठाकुर स्व., व्यंग्य संग्रह: सांड कैसे कैसे, (साई निकेतन, १५२ शक्ति नगर, गुप्तेश्वर, जबलपुर)। 
श्याम सुंदर सुल्लेरे,   
विजय बजाज, २१९१ ऍफ़ इन्द्राणी अपार्टमेंट, मदनमहल, जबलपुर ४८२००१, दूरभाष ०७६१ - २४२६८२०, ५५२२३३३, चलभाष ०९८२६४९६९७५।
विजय तिवारी 'किसलय', ५.२.१९५८, एम.ए., एम.बी.ई.एच., विसुलोक २४१९ मधुवन कॉलोनी, उखरि मार्ग, जबलपुर ४८२००२, o १ २६४९३५०, ९४२५३२५३५३।
विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र', २८.७. १९५९१९५९, एम.टेक., ९४२५८०६२५२।
शशि कला सेन, १८-३-१९५६, बी.ए., ई १२ रामपुर कॉलोनी, जबलपुर चलभाष ९७५२६६८६७९, ८८२७९३८६८३।
श्री राम ठाकुर 'दादास्व., निधन २९-१२-२००८, मेरी १२१ लघुकथाएँ, २००७, अर्चना प्रकाशन, (३४ विवेकानंद नगर, यादव कॉलोनी, जबलपुर।)
शैलेन्द्र पांडेय, सरयू सौरभ, दीक्षितपुरा, जबलपुर।
शोभित वर्मा, एम.टेक.,
सनातन कुमार बाजपेयी, २९-४-१९३१, एम.ए. (हिंदी, इतिहास), साहित्य रत्न, कोविद, लघुकथा चीखती लपटें २०१`२, पुराना कछपुरा स्कूल, गढ़ा, जबलपुर ०७६१ २४२५१३७ ।
साधना वर्मा,
सिद्धेश्वरी सराफ 'शीलू', एच १०७ अंबा अपार्टमेंट, मरियम चौक, सिविल लाइन, जबलपुर ४८२००१, sarafsiddheshwari @gmail.com,९१-७३५४६७१६०५।
सुनीता मिश्रा 'सुनीत', २५-६-१९६१,एम.ए. (हिंदी साहित्य), ९८४ रामचरण विला, समीप अंडर ब्रिज, आमनपुर, नरसिंह वार्ड, मदनमहल, जबलपुर, ०७६१ २४२१४२४, ९४०६७४०७७७०, ९४२५८६५३०८।
सुमनलता श्रीवास्तव डॉ.,
सुरेंद्र सिंह पवार, २५.६.१९५७, बी.ई., एम.बी.ए., २०१ शास्त्री नगर, गढ़ा, जबलपुर ४८२००३, pawarss2506@gmail.com, ९३००१०४२९६, ७०००३८८३३२।
सुरेंद्र सिंह सेंगर स्व., १०९३ ओके चैरिटी, राइट टाउन, जबलपुर, ०७६१ २४१२७८४ ।
सुरेश कुशवाहा 'तन्मय', १-१-१९५०, एम.ए.(हिंदी, समाजशास्त्र), २२६ माँ नर्मदे नगर, बिलहरी, जबलपुर ४८२०२०, sureshnimadi@gmailcom, ९८९३२६६०१४।
सुरेश दर्पण, सुदर्शन टायर, बँधैया मोहल्ला, काली मंदिर का सामने, कटनी मार्ग जबलपुर, चलभाष ७०४७०४१५००, ९६३०४९४९२०।
सुषमा निगम,
संतोष नेमा, १५.७.१९६१, बी.कॉम., एलएल.बी., अमनदीप, ७८ अलोकनगर, अधारताल, जबलपुर nemasantoshkumar@gmailcom, ९३००१०१७९९।
संध्या जैन 'श्रुति', १.१०.१९६०, पीएच.डी., ई १७ कुचैनी विहार, समीप मैट्रो अस्पताल, दमोह नाका, जबलपुर ४८२००२, ९८२७५४२२१०।
८०. हरिशंकर परसाई स्व.,
हेमंत कुमार भावे, आमनपुर, जबलपुर।
*


कटनी
रमाकांत निगम
सतना
अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान " प्रधान संपादक-शब्द शिल्पी पत्रिका एवं प्रकाशन, श्रीराम गली, दीपशिखा स्कूल के पास, मारुति नगर, सतना, म.प्र. चलभाष : ९४७९४११४०७


*****************


हिंदी वर्णक्रमानुसार [परिचय व लघुकथाएं ]
अ. दिवंगत लघुकथाकार :
अविनाश दत्तात्रेय कस्तूरे, १४४१ गंगा नगर, गढ़ा, जबलपुर।
गायत्री तिवारी, २७-१२-१९४७, (११२/११९ सराफा वार्ड, कोतवाली, जबलपुर ९३००१२१७०२)
गुरुनाम सिंह रीहल, १२-१२-१९५१, निधन १५-७-२०१४, बी.ए., व्यंग्य असली-नकली मांडवी प्रकाशन गाज़ियाबाद, लघुकथा: तलाश २००७। (सहृदय निवास १५५२ महानद्दा, जबलपुर ०७६१ २४२१५५१ )
मनोहर शर्मा 'माया', १७-८-१९३५ निधन १०-१२-२०१३, (लता-स्मृति, गंगानगर, गढ़ा, जबलपुर, ०७६१ २३७१०७०, चल. ९८२६६८७५६७)
मृदुल मोहन अवधिया, निधन १७-९-२०१४, (१८९९ देवताल, गढ़ा, जबलपुर)
मो. मोईनुद्दीन 'अतहर', १-६-१९४४, डिप्लोमा पॉलीटेक्निक, लघुकथा: काँटे ही काँटे १९८१, शैतान की चाल १९९०, कैक्टस २००१, वर्तमान का सच २००५, दृष्टि २००९ अयन प्रकाशन दिल्लीफूल और काँटे २०१२ अयन प्रकाशन दिल्लीमुखौटों के पार २०१३ अयन प्रकाशन दिल्लीग़ज़ल: चिलचिलाती चाँदनी १९८३, सदा-ए-वक़्त १९९६, वसील-ए-निजात १९९७, अता-ए-रूमी २००६, ना'त शरीफ: खुमार बाकी है २००७, स्मारिका अतहर के आयाम २००५। (१३०८ पसयाना, अजीजगंज, जबलपुर ०७६१ २४४३८३०, ९४२५८६०७०८)  
रवींद्र खरे 'अकेला', १८-१२-१९५८, बी.एससी।, एम.ए., एम. कॉम., तृप्ति १९८४ समीर प्रकाशन जबलपुर, । 
विजयकृष्ण ठाकुर, व्यंग्य संग्रह: सांड कैसे कैसे, (साई निकेतन, १५२ शक्ति नगर, गुप्तेश्वर, जबलपुर)। 
श्याम सुंदर सुल्लेरे,   
श्री राम ठाकुर 'दादा', निधन २९-१२-२००८, मेरी १२१ लघुकथाएँ, २००७, अर्चना प्रकाशन, (३४ विवेकानंद नगर, यादव कॉलोनी, जबलपुर।) 
९. हरिशंकर परसाई 

आ. सृजनरत लघुकथाकार:

अखिलेश खरे, ३०.६.१९७१, बड़ा कछारगाँव, द्वारा मझगवाँ सरौली, कटनी, ४८३३३४, sumitkhare2003@gmail.com, ९७५२८६३३६९।
अनुराधा गर्ग -दीप्ति', २९.४.१९६०, ०७६१ २६४३८०२।
अरुण भटनागर,
अरुण यादव, २.६.१९६९, १४२ यादव मोहल्ला, रामपुर, जबलपुर, ०७६१ २६६३६३७, ९९२६६५८५२७ ।
अर्चना मलैया, १८.६.१९५८, चंद्रिका टॉवर्स, मॉडल रोड, जबलपुर, दूरभाष ०७६१ १४००६७२३, चलभाष ९९७७२५०३४१।
अर्चना राय, बी.एससी., आदर्श होटल, पंचवटी, भेड़ाघाट, जबलपुर ४८३०५३, चलभाष ९९८१९८९८७३, ईमेल archana.rai1977@gmail.com ।
अविनाश दत्तात्रेय कस्तूरे, १४४१ गंगा नगर, गढ़ा, जबलपुर।
अशोक श्रीवास्तव 'सिफर', १०-७-१९६०, बी.टेक., ३५ नरसिंह वार्ड, गुलजार होटल के पीछे, महानद्दा, जबलपुर चलभाष ९४२५१६४८९६।
अशोक कुमार श्रीवास्तव, गौरैयाघाट, मंडला मार्ग, जबलपुर।
अशोक श्रीवास्तव 'सिफर'
आनंद मोहन अवस्थी
आरोही श्रीवास्तव
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल',
आरोही श्रीवास्तव, २२-७-१९९०, बी.कॉम., सी.ए., बी १ अभिषेक अपार्टमेंट, शास्त्री पुल, नेपियर नेपियर टाउन, जबलपुर akar.arohi@gmail.com ०७६१ २४२८७४५ ।
आशा भाटी, ९-९-१९५४, कंचन छाया, एम.आई.जी.८ विजय नगर, जबलपुर ०७६१ ५००२२४४, चलभाष ९३०१८२२७८२, ९३०११२३९५८।
आशा वर्मा,
ओंकार ठाकुर, ३४६ त्रिमूर्ति नगर, दमोह मार्ग, जबलपुर।
ओमप्रकाश बजाज, १९ मई १९३०, २१९१ ऍफ़ इन्द्राणी अपार्टमेंट, मदनमहल, / बी २ गगन विहार, गुप्तेश्वर,जबलपुर ४८२००१, दूरभाष ०७६१ - २४२६८२०, ५५२२३३३, चलभाष ०९८२६४९६९७५ / विजय विला, कालिंदी कुञ्ज, समीप अग्रवाल पब्लिक स्कुल, पिपलिहाना, रिंग रोड, इंदौर
उमा मिश्र 'प्रीति' preetimishra0873@gmail.com

जियो और जीने दो 
आज की युवा पीढ़ी अपने अभिमान व्यक्ति अंधी हो गई है कि वह बुजुर्गों बड़ों का यह आज भी भूल गई है जबलपुर से भोपाल जा रहे डिब्बे में एक लड़का आकर बैठ गए जिन्होंने एक यात्री को बहुत परेशान किया,एक बुजुर्ग बैठे थे। उनके साथ बहुत बदतमीजी कर रहे थे और उन्हें बहुत परेशान कर रहे थे पर वह सज्जन पुरुष थे और शांति से बैठे थे अपने मन में राम राम का जाप कर रहे थे। रात्री के लगभग ग्यारह बजे अचानक लड़के को मिर्गी का दौरा पड़ा, वह तड़पने लगा उस डिब्बे में कोई यात्री उसकी मदद के लिए नहीं आया।  तब कुछ देर बाद वह सज्जन पुरुष आए और अपने बाइक से कुछ दवाइयां निकाली और उसे पानी पिलाया थोड़ी देर के बाद उसकी हालत ठीक हो गई और सभी ने अपनी हरकतों के लिए क्षमा मांगी। बुजुर्गों के पास अनुभव है हमें उनकी इज्जत करनी चाहिए उनके कारण ही हम हैं।
*
उमाशंकर राय 'उत्साही', मेजर किराना स्टोर्स, गणेशगंज, रांझी, जबलपुर।
किरण श्रीवास्तव,
कुँवर प्रेमिल, ३१-३-१९४७, लघुकथा: अनुवांशिकी २००५ मांडवी प्रकाशन गाज़ियाबाद, कहानी: चिनम्मा, पाँचवा बूढ़ा २०११ मांडवी प्रकाशन गाज़ियाबाद, बाल उपन्यास: प्रदक्षिणा, व्यंग्य लेख: आम आदमी - नीम आदमी, कंचन छाया, एम.आई.जी.८ विजय नगर, जबलपुर ०७६१ ५००२२४४, चलभाष ९३०१८ २२७८२, ८९६२६ ९५७४०।
कृष्णा राजपूत, ९३२९६८५१३५।
गायत्री तिवारी,
गिरिधर गोपाल पांडे, नार्थ लक्ष्मी कॉलोनी, रानीताल, जबलपुर।
गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल', २९.११.१९६२, ९८२६०७२९१६।
गीता गीत, ३१-१२-१९६२, एम.ए.(समाजशास्त्र, हिंदी साहित्य), काव्य : कविता का नहीं है कोई गाँव, लघुकथा : जामुन का पेड़ प्रज्ञा प्रकाशन रायबरेली, १०५० सरस्वती निवास, शक्ति नगर, गुप्तेश्वर, जबलपुर, चलभाष ९८९३३०५९०७ ।
गुप्तेश्वर द्वारका गुप्त, ७.८.१९५०, ८२२५०३६७२८।
गुरुनाम सिंह 'रीहल' स्व.
चंद्रशेखर तिवारी 'कोले', १०८ नेपियर टाउन जबलपुर।
छाया त्रिवेदी,२१.५.१९४९, एम.ए., एम.एड., एलएल.बी., कहानी: यशोदा हार गयी, संग्रह मन इकतारा मन बंजारा, लघुकथा: जुबैदा खाला की खीर, ११२९ नेपियर टाउन, शास्त्री पुल, बाल निकेतन मार्ग, जबलपुर ४८२००१, दूरभाष २४०३४३२, ९४७९६४४९०९।
छाया सक्सेना 'प्रभु', १५- ८-१९७१, बी.एससी., बी.एड., एम.ए., एम.फिल., १२ माँ नर्मदे नगर, फेज़ १ बिलहरी, जबलपुर ४८२०२०, चलभाष ९३०३४५५६६४, chhayasaxena2508@gmail.com ।
ज्योति मंगलानी, ३०-६-१९७१, बी.एच.एस.सी., ४७ ए.पी.आर. सोसायटी, कटंगा, जबलपुर, चलभाष ९६४४६२६१५४।
दिनेश नंदन तिवारी, ३-९-१९५५, साई सबूरी, ई ६ रामनगर, रामपुर, जबलपुर ४८२००८, ०७६१ २६६४८७०, ९४२४३०८५०५।
देवेंद्र तिवारी 'रत्नेश', डी ७ शक्ति गार्डन, सरस्वती कॉलोनी, जबलपुर, चलभाष ८८७८३३८६२४।
धीरेन्द्र बाबू खरे, १२-१२-१९५१/३०.६.१९५१, १००६ बाई का बगीचा, जबलपुर, ०७६१ २६२३४८३, ९४२५८६७६८४।
नीता कसार, २३५/२ बी, जे डी ए कॉलोनी, बाजनामठ, जबलपुर ४८२००३, चल. ८९८९९७६५९८।
पवन जैन, ५९३ संजीवनी नगर, जबलपुर ४८२००३, madhuneer1958@gmail.com ९४२५३२४९७८।
पुष्पा सक्सेना,
प्रकाश चंद्र जैन,
प्रदीप शशांक (ठाकुर प्रदीप कुमार सिंह), २७-६-१९५५, बी.कॉम., वह अजनबी २००९ अयन प्रकाशन दिल्ली, ३७/९ श्रीकृष्णं ईको सिटी, समीप श्रीराम कॉलेज, कटंगी मार्ग, माढ़ोताल, जबलपुर ०७६१ २६५१२८७, ९४२५८६०५४०।
प्रतुल श्रीवास्तव, ९४२५१५३६२९।
प्रभा पांडे 'पुरनम', २.१२.१९४७, एम.ए., एलएल.बी., काव्य पूजा के फूल, खुशबु का डेरा, १७०३ रतन कॉलोनी, गोरखपुर, जबलपुर ०७६१ २४१२५०४ /५ ।
प्रभा विश्वकर्मा 'शील', ५.७.१९६९, ५५७ गुलौआ चौक, नारायण नगर कॉलोनी, जबलपुर, चलभाष ९०९८००५७६९, ९९२६३५६३९०, ९०९८००५७६९ ।
प्रभात दुबे, ५-२-१९५०, बी.कॉम., १११ पुष्पांजलि स्कूल के सामने, शक्तिनगर, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२४३१०९८४।
प्रभात सिंह पटेल, १७२ शिव नगर, दमोह मार्ग, जबलपुर।
बसंत शर्मा
१ पहली बार
*
सेठ रामलाल बड़ा सा बैग लेकर तेजी से घर से निकले. एक खाली रिक्शे को अपनी ओर आते देखकर उनकी बांछें खिल गयी. रिक्शे में बैठ कर मंजिल की ओर चल दिए, रिक्शे वाले से उन्होंने नोट बंदी के असर के बारे वार्ता शुरू की और धीरे-धीरे उससे दोस्ती का प्रयास करने लगे. थोड़ी देर बाद बोले, अरे भाई हमारी कुछ मदद कर दो.
रिक्शेवाला बोला, हाँ साहब! कहिये मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?.
सेठ जी बोले, इस बैग में २ लाख रुपये के हजार-पाँच सौ के पुराने नोट हैं. तुम इन्हें अपने जन-धन खाते में जमा कर लो. बीस हजार रुपये कमीशन काटकर मुझे चैक दे देना. मैं अपने खाते में जमा कर लूँगा.
रिक्शेवाला बोला, सेठ जी हमारा काम तो रोज कमाने-खाने से ही चल जाता है. कमीशन खाने और पचाने की आदत होती तो मैं रिक्शे की अगली सीट पर क्यों बैठा होता?
बैग में पड़े हजारों के नोट भुनभुना रहे थे और रिक्शेवाले की जेब में दस का नोट मंद-मंद मुस्कुरा रहा था, जिन्दगी में पहली बार……
*
२ गले में रस्सी 
आँगन में बिछी हुई खाट पर सोते हुए कलुआ  के मुख पर, सूरज की पहली किरण ने जैसे ही दस्तक दी, कलुआ की नींद खुल गयी. उसने आँगन में बंधी गाय का दूध निकालने के लिए बछड़े को रस्सी से खोला, बछड़ा तुरत अपनी माँ के थन से जा लगा, उसके मुंह में दो चार बूँद ही गयी थी कि कलुआ ने उसे हटा कर पुन: रस्सी से बाँध दिया और बाल्टी लेकर गाय का दूध निकालने लगा.
उसी समय कलुआ का छोटा बेटा वहाँ आकर दूध पीने की जिद करने लगा, कलुआ उसे भी गाय के थन से सीधे ही दूध पिलाने लगा, गाय माता उसे भी दूध उसी तरह पिला रही थी, जैसे उसने अपने बछड़े को पिलाया था.   
उधर पास में रस्सी से बंधा नवजात बछड़ा ये सोच रहा था  कि मेरे गले में ये रस्सी क्यों है ?
*
सूझ
एक सरकारी कार्यालय में साहब की नयी पदस्थापना हुई ही थी कि मोदी जी का स्वच्छता अभियान शुरू हो गया. उन्होंने देखा देखा कि बाहर लोग एक कोने में पान खाकर थूक देते हैं, जिससे दीवार बहुत गन्दी दिखती है.
उन्होंने वहाँ गमले में तुलसी का पौधा लगवा कर रख दिया.
अब लोग वहाँ नहीं थूकते.
*

कासे कहूं? 
चार मित्र, रामलाल, श्यामलाल, गेंदालाल और गरीबदास कार्यालय से छुट्टी होने पर पैदल अपनी कॉलोनी की ओर एक साथ निकले. चलते-चलते रामलाल बोला- 'यार! ये बॉस भी बहुत पकाता है दिन भर, खुद कुछ भी नहीं करता और हमें दिन भर कोमा और फुलस्टॉप ठीक करने में लगाए रहता है.' उसी समय रामलाल का घर आ गया और रामलाल अपने घर में चला गया. श्यामलाल बोला- 'ये रामलाल भी खूब फेंकता है खुद भी तो कुछ नहीं करता, दिन भर मैडम से बतियाता रहता है.' तब तक श्यामलाल का भी घर आ गया, वह भी अपने घर निकल लिया. 
अब कमान गेंदालाल ने थामी और बोला ये रामलाल और श्यामलाल दोनों को बुराई करने में बड़ा आनंद आता है, कभी बॉस की और कभी मैडम की. शायद तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है कि “परनिंदा सम रस जग नाहीं”. ये दोनों खुद भी तो कोई काम नहीं करते दिन भर किसी न किसी ग्राहक को पकड़ कर बस चाय और समोसे ही मंगवाते रहते हैं. तब तक गैंदा लाल का घर आ चुका था, सो वह भी यह जा, वह जा. 
अब गरीबदास सोच रहा था 'दुखवा मैं कासे कहूं '
*
५ फर्क तो पड़ता है 
आज सुबह का अख़बार जब पढ़ा, तो अवाक रह गया मैं. आज ही तो हमारी नगर पालिका के चुनावों का परिणाम आया था. कौन कौन से अवगुण नहीं थे यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ करते उस मलखान में, जो मात्र एक वोट से चुनाव जीत गया था. रामलाल जी जो कोमल ह्रदय और सद्गुणों की खान थे चुनाव हार गए थे. अब तो पांच वर्ष तक बुराई को झेलने के अलावा कुछ विकल्प शेष न था.
दो दिन पहले ही तो मतदान हुआ था,  यह सोचकर कि क्या फर्क पड़ता है एक वोट से हम दोनों पति पत्नी वोट डालने नहीं गए थे. कुछ खास किया भी तो नहीं था उस दिन सिवाय टी वी पर क्रिकेट मैच देखने के. 
लेकिन आज समझ में आ गया है कि फर्क तो पड़ता है यार.
*
६ रोकती रह गई अम्मी 
रामू होली खेल रहा है, मैं भी जाता हूँ, सुनते ही अम्मी ने रोका, तो बालक सलीम, जो मोहल्ले में रोजाना रामू के साथ क्रिकेट खेलता था, होली के लाल, पीले, हरे, नीले, गुलाबी, केसरिया और न जाने कितने रंगों में रंगे उछलते कूदते नाचते गाते स्त्रियों, पुरुषों बच्चों, बड़ों और बूढों को देख, सोच में पड़ गया और उसने अम्मी से पूछा  कि जिस त्यौहार में सभी रंग शामिल हैं, उस त्यौहार को सारे लोग मिल कर क्यों नहीं मनाते?' 
अम्मी कुछ बोल पाती, उसके पहले ही रामू की आवाज आई, सलीम क्या कर रहा है, जल्दी आ. सुनते ही सलीम ने दौड़ लगा दी, रोकती रह गई अम्मी.
*
7 दर्द 
सड़क पर चारों तरफ पत्ते बिखरे पड़े हैं. सफाई वाली हाथ में झाड़ू लिए उन्हें इकठ्ठा कर के कचरे के ढेर में डालने जा रही है. एक पत्ता कहीं छूट गया था, किनारे पर. वह पत्ता मन में सोच रहा था कि मैं शाख से भी अलग हो गया और जिनके साथ अलग हुआ वे सब भी मुझे यहाँ अकेले छोड़ गए, कैसा भाग्य है मेरा?
उसी समय उसकी नजर पेड़ पर मुस्कुराती हुई नवकोपलों पर पड़ी. अब वह अपना सारा दर्द भूल चुका था. 
8 हम ही चले आये यहाँ
विजय सिंह जो अभी अभी आई ए एस की परीक्षा पास कर नये नये कलक्टर बने थे, दौरे पर निकले, मुख्य सड़क के किनारे किनारे बने हुए छोटे छोटे मकानों को देखकर उनके मन में एक प्रश्न कौंधा कि ये गाँव के लोग सड़क के किनारे ही मकान बना के क्यों रहने लग जाते हैं, तो तुरत ही उन्होंने मुख्य सड़क के किनारे गाड़ी लगा, अलाव पर ताप रहे बुधिया से पूछ ही लिया कि भैया ये बताओ कि तुम लोग सड़क के किनारे ही क्यों ये झोंपड़ी बना लेते हो? थोड़ा दूर क्यों नहीं बनाते?  बुधिया बोला क्या करें, रहते तो हम दूर ही थे, तरस गए थे, सड़क देखने को. साहब ये सड़क तो हमारे पास आ न पाई,  हम ही चले आये यहाँ.  
*
9 पापा गुड़िया कैसी लग रही है
पापा पापा देखो ये कौन है, नन्हीं सी आवाज, बाबूलाल जी  के कान में पड़ी तो वह चौंक गए, उनके सामने उनकी बेटी गुड़िया एक गुड़िया हाथ में लिए खड़ी-खड़ी मुस्कारा रही थी. बोले “”ये तो गुड़िया है और बड़ी ही प्यारी गुड़िया है”, 
“किसने दी है”, 
“मम्मा ने दी है” गुड़िया बोली और मुस्कुराते हुए वापस चली गयी. थोड़ी देर बाद फिर वही आवाज “पापा-पापा देखो, ये देखो”, “वही गुड़िया तो है बेटा इसमें नया क्या है”, बाबूलाल बोले.

नहीं पापा, ये वो नहीं है, अब मैंने इसे लाल चुनरी उढ़ा कर दुलहन बना दिया है, अब मैं इसकी शादी करूंगी और फिर विदा.  बाबूलाल इस बाल सुलभ प्रश्न को सुनकर ख्यालों में ऐसे खो गए कि वे यह भी नहीं सुन पाए कि गुड़िया कब से पूछ रही है कि पापा अब ये गुड़िया कैसी लग रही है.
*

भगवत दुबे, १८ अगस्त १९४३, काव्य: दधीचि-महाकाव्य, स्मृति गंधा, अक्षर मंत्र, हरीतिमा, रक्षाकवच, संकल्परथी, बजे नगाड़े काल के, वनपाँखी, जियो और जीने दो, विष कन्या, शंख नाद, प्रणय ऋचाएं, कांटे हुए किरीट, करुणा यज्ञ, साई की लीला अपार, माँ ममता की मूर्ति, जनक छंद की छवि छटा, हाइकू रत्न, गीत स्वाभिमान के, फागों में लोक रंग, तांका बांका छंद है, गौरव पुत्र, चिंतन के चौपाल, नवगीत- हिरन सुगंधों के, हम जंगल के अमलतास, भूखे भील गए, बालगीत - अक्कड़ बक्कड़, अटकन-चटकन, छुपन छुपाई, नन्हें नटखट, कर्म वीर, पारस मणि, हिंदी के अप्रतिम सर्जक, सुधियों के भुजपाश, लोक मंजरी, दोहा- शब्दों के संवाद, शब्द विहंग, हिंदी तुझे प्रणाम, साँसों के संतूर, बुंदेली दोहे, ग़ज़ल - चुभन, कसक, शिकन, घुटन, कहानी- दूल्हादेव, जसूजा सिटी, भेड़ाघाट मार्ग, जबलपुर, ९३००६१३९७५, ९९९३४००९५० ।
भारती नरेश पाराशर, एम.ए., एम.एस.डब्ल्यू., १५ स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया कॉलोनी, समीप हाथीताल रेलवे क्रॉसिंग, गोरखपुर, जबलपुर ४८२००१, चल. ८८३९२६६४३४।
मधु जैन, बी.एससी।, बी.एड., एक क़तरा रौशनी, २०१९, बोधि प्रकाशन जयपुर, ५९३ संजीवनी नगर, जबलपुर ४८२००३, madhuneer1958@gmail.com, ९४२५३२४९७८
मधुकर पराग, ६३६/६ पनहरा, टाइप आई, gcf जबलपुर।
मनीषा गौतम, ६ अक्टूबर १९६३, एम.ए. (राजनीति), इधर कुआँ उधर खाई २०१८, ७६५ नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, ०७६१ २४१४४१९।
मनोज शुक्ल, १६.८.१९५१, एम.कॉम., आशीष डीप, ५८ उत्तर मिलौनीगंज, जबलपुर ४८२००२, mkshukla48@gmail.com ९४२५८६२५५०।
मनोहर बिल्लोरे, जयप्रकाश नगर, अधारताल, जबलपुर।
मनोहर शर्मा 'माया', १७-८-१९३५ निधन १०-१२-२०१३, (लता-स्मृति, गंगानगर, गढ़ा, जबलपुर, ०७६१ २३७१०७०, चल. ९८२६६८७५६७)
ममता जबलपुरी, ३.९.१९६५, ९४०६७६०४८९।
महेश किशोर शर्मा, १०२० शक्ति नगर, गुप्तेश्वर, जबलपुर, दूरभाष: ०७६१ ४०१०३००, चलभाष :
मृदुल मोहन अवधिया, निधन १७-९-२०१४, (१८९९ देवताल, गढ़ा, जबलपुर)
मिथलेश बड़गैया,
मिथलेश नायक 'कमल', १९.१०.१९५२, एम.ए., बी.टी.सी., ८३९ पूर्वी घमापुर, जबलपुर, चलभाष ९३०००७७२८९।
मीना भट्ट, ३०-४-१९५३, एम.ए., एलएल.बी., १३०८ कृष्णा हाइट्स, गवरीघाट मार्ग, जबलपुर ९४२४६६९७२२।
मुकुल तिवारी, १.७.१९६१, ९४२४८३७५८५।
आत्मजा - श्रीमती माया पण्डित हरिकृष्ण त्रिपाठी।  प्रकाशित पुस्तकें -- (१)अतीत से आज प्रयोजन मूलक हिन्दी । (२)अवशिष्ट रसायन प्रदूषण और पर्यावरण (३)अनुसंधान चिंतन आलेख। लघुकथा -- अभियान पटल/प्रसंग पटल /फेसबुक में /समाचार पत्रों में प्रकाशित। पता - बालमुकुंद त्रिपाठीमार्ग,दीक्षितपुरा जबलपुर,म.प्र. मो.९४२४८३७५८५। 
छलवा
मीनल रोज बाजार से सामान लेकर आती थी।रास्ते में मिलने वाले भिखारी को वह कुछ न कुछ दे देती थी।मीनल को भिखारी के प्रति बहुत ही दया आती थी।एक दिन मीनल दोपहर के समय बाजार गई उसने देखा कि वह भिखारी तो अच्छा भला चल रहा है । मीनल ने भिखारी से कहा अरे तुम तो लगड़े नहीं हो ठीक हो।अच्छे से चल रहे हो।भिखारी ने कहा हां मां जी क्या करू बाल बच्चों के पेट पालने के लिए यही मेरा काम धंधा है। 
*
पछतावा 
निधिम एक होनहार छात्रा थीं।अपनें परिवारों में निधिम प्रथम संतान थी।प्रत्येक काम काज में भी निधिम प्रथम रहती थी। पालन पोषण भी बहुत हि  संस्कारी परिवार में हुआ था।निधीम खूबसूरत मिलनसार मृदुभाषी भी थी। वह घर के कामकाज में भी बहुत होशियार थी। निधिम को पता ही नहीं चला कि कब उसकी पढाई पूर्ण हो गई।शासकीय नौकरी के अनेंक अवसर प्राप्त हुए किन्तु वह पारिवारिक कारणों से शासकीय सेवाओं में नहीं जा सकी। जहां विवाह हुआ वहां यही शर्त थी कि नौकरी वाली वधु चाहिए है।परिवार जनों नें यह कहकर विवाह कर दिया कि इतनी पढ़ी लिखी लड़की है नौकरी तो लग ही जाएगी। दोनों पक्षों की राह सलाह के बाद विवाह हो गया। कुछ समय पश्चात ही नौकरी नहीं लगनें के कारण पारिवारिक विवाद होने लगा जिसके कारण निधिम शहर के ही अशासकीय संस्थान में नौकरी करनें लगी।सेवानिवृत्ति के पास पहुंच कर निधिम को पछतावा होने लगा कि काश पढ़ाई पूर्ण करनें के पश्चात ही शासकीय सेवाओं में चली गई होती तो जीवन कुछ अलग ही  होता। निधिम ने मन को समझाया अब पछताय का होत जब चिड़िया चुग गई खेत।
*
धनलक्ष्मी का प्रताप 
माला का विवाह सभ्रांत परिवार में हुआ था किन्तु माला के पति महेश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। विवाह के कुछ समय पश्चात् माला और महेश को पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई।आगे भी परिवार बढ़ाने के अवसर आए किंतु आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से परिवार नहीं बढ़ाया।अर्थाभाव के कारण माला ने एक अन्य शहर में नौकरी करना शुरू कर दिया।इससे नाराज होकर पति एवं ससुराल पक्ष के लोगों ने माला से रिश्ता तोड़ लिया पति ने दूसरा विवाह कर लिया।पुत्री को भी मां माला से मिलने नहीं देते थे। पुत्री कभी मिल भी जाए तो वह माला को दुत्कार कर भगा देती थी।माला बहुत दुखी एवं निराश रहती थी।समाज परिवार की प्रताड़ना अलग सहती।समय धीरे धीरे बीतता गया।माला ने अपने आप को आर्थिक सम्पन्न एवं समाज में प्रतिष्ठत महिला बनाया। यहां पुत्री भी बड़ी हो गई उसका भी विवाह हो गया।अब माला जब भी अपनी पुत्री से मिलने जाती तो सोने के गहने अच्छे कपड़े लेे जाती पुत्री एवं ससुराल वालों को देती।अब पुत्री एवं ससुराल वाले बहुत खुश होकर माला को सम्मान आदर     सत्कार के साथ अपने घर में ठहराते। माला भी हतप्रभ एवं आश्चर्यचकित हो जाती।
मोहन यादव 'शशि', १-४-१९३७, काव्य कृति: सरोज १९५६, तलाश एक दाहिने हाथ की १९८३, राखी नहीं आई १९८५, हत्यारी रात १९८८, शक्ति साधना १९९२, दुर्गा महिमा १९९५, अमिय १९९६, बेटे से बेटी भली २०११, देश हसि तो सुनो जान है बेटियां २०१६, जगो बुंदेला जगे बुंदेली २०१९, गली २, शांति नगर, जबलपुर, २३४२३००,९४२४६ ५८९१९, ९३००७५५५९६ ।
मोहन लोधिया, ८.४.१९४६, १३५/१३६ मोहन निकेत, अवधपुरी कॉलोनी, नर्मदा मार्ग, जबलपुर, ०७६१ २६६१११४, ९८२७३०१९५९।
मोहन श्रीवास, ६८०/४ कमला नेहरू नगर जबलपुर।
मो. मोईनुद्दीन 'अतहर' स्व., १-६-१९४४, डिप्लोमा पॉलीटेक्निक, लघुकथा: काँटे ही काँटे १९८१, शैतान की चाल १९९०, कैक्टस २००१, वर्तमान का सच २००५, दृष्टि २००९ अयन प्रकाशन दिल्लीफूल और काँटे २०१२ अयन प्रकाशन दिल्लीमुखौटों के पार २०१३ अयन प्रकाशन दिल्लीग़ज़ल: चिलचिलाती चाँदनी १९८३, सदा-ए-वक़्त १९९६, वसील-ए-निजात १९९७, अता-ए-रूमी २००६, ना'त शरीफ: खुमार बाकी है २००७, स्मारिका अतहर के आयाम २००५। (१३०८ पसयाना, अजीजगंज, जबलपुर ०७६१ २४४३८३०, ९४२५८६०७०८)
मोहम्मद शहाबुद्दीन, १३०८ पसयाना, अजीजगंज, जबलपुर, ९३०३०३००९६।
यशोवर्धन पाठक, ६.५.१९५८, ०७६१२४२८२७१।  
रत्ना ओझा 'रत्न', ७.४.१९४७, २४०५/८ गाँधी नगर, न्यू कंचनपुर, अधारताल, जबलपुर, ०७६१ २६८०८१७, ९४७९८४७००६।
रमेश सैनी, २४५ ए एफ सी आई लाइन, त्रिमूर्ति नगर, दमोह नाका, जबलपुर।
रवींद्र खरे 'अकेला', १८-१२-१९५८, बी.एससी।, एम.ए., एम. कॉम., तृप्ति १९८४ समीर प्रकाशन जबलपुर, ।  
राकेश भ्रमर,
राजकुमार तिवारी 'सुमित्र', २५.१०.१९३८, ११२/११९ सराफा वार्ड, कोतवाली, जबलपुर ९३००१२१७०२।
राजकुमारी नायक, लघुकथा संग्रह यगाना २०१५, ४ रामपुर, आजाद चौक, मिलन कॉलोनी, जबलपुर
राजलक्ष्मी शिवहरे, २२-२-१९४९, एम.ए., पीएच.डी., सी १३ उच्च आय वर्ग, धन्वन्तरी नगर, जबलपुर, ९४२५१५४९६१, ९९२६८७०१०३।
राजीव गजानन आंवले, mpeb ।
राजीव वर्मा 'राजू', तिलहरी, जबलपुर।
राजेश चौकसे, २६ पारस कॉलोनी, जबलपुर।
राजेश पाठक 'प्रवीण', २९.९.१९६२, १५७ सनातन संगम, फूटाताल, जबलपुर, ९८२७२६२६०५।
रामप्रसाद 'अटल', हर्षालय, पुरानी बस्ती, रांझी, जबलपुर ४८२००५।
रामशंकर खरे,
लक्ष्मी शर्मा, १-५-१९४५, एम.ए.(हिंदी साहित्य), काव्य: अंतस की सीपियों के मोती, व्यथा पृथ्वी की, एक सूरज मेरे अंदर, मौन तोड़ो आज तुम, कन्या जन्म लेगी, क्षितिज के पार, समय के पंख, कहानी, गलियारे की धुप, तीसरा कोना, मन के चक्रवात, सुलगते प्रश्न, उपन्यास: कश्मीर का संताप, आदि शक्ति श्री सीता, अंतर्द्व्न्द, बाल साहित्य: आओ बच्चों देश को जाने, बच्चे मन के सच्चे, होनहार बच्चे कहानी, हम बच्चे हिंदुस्तान के नाटक, छू लो आसमान उपन्यास, बुंदेली: मेला घूमन निकरी गुइयाँ, मायको बिसरत नईयां, भोर को उजियारो, लघुकथा: मुखौटे, करेजे की पीर बुंदेली, १०२० शक्ति नगर, गुप्तेश्वर, जबलपुर, दूरभाष: ०७६१ ४०१०३००, चलभाष :
विजयकृष्ण ठाकुर स्व., व्यंग्य संग्रह: सांड कैसे कैसे, (साई निकेतन, १५२ शक्ति नगर, गुप्तेश्वर, जबलपुर)। 
श्याम सुंदर सुल्लेरे,   
विजय बजाज, २१९१ ऍफ़ इन्द्राणी अपार्टमेंट, मदनमहल, जबलपुर ४८२००१, दूरभाष ०७६१ - २४२६८२०, ५५२२३३३, चलभाष ०९८२६४९६९७५।
विजय तिवारी 'किसलय', ५.२.१९५८, एम.ए., एम.बी.ई.एच., विसुलोक २४१९ मधुवन कॉलोनी, उखरि मार्ग, जबलपुर ४८२००२, o १ २६४९३५०, ९४२५३२५३५३।
विवेकरंजन श्रीवास्तव 'विनम्र', २८.७. १९५९१९५९, एम.टेक., ९४२५८०६२५२।
शशि कला सेन, १८-३-१९५६, बी.ए., ई १२ रामपुर कॉलोनी, जबलपुर चलभाष ९७५२६६८६७९, ८८२७९३८६८३।
श्री राम ठाकुर 'दादास्व., निधन २९-१२-२००८, मेरी १२१ लघुकथाएँ, २००७, अर्चना प्रकाशन, (३४ विवेकानंद नगर, यादव कॉलोनी, जबलपुर।)
शैलेन्द्र पांडेय, सरयू सौरभ, दीक्षितपुरा, जबलपुर।
शोभित वर्मा, एम.टेक.,
सनातन कुमार बाजपेयी, २९-४-१९३१, एम.ए. (हिंदी, इतिहास), साहित्य रत्न, कोविद, लघुकथा चीखती लपटें २०१`२, पुराना कछपुरा स्कूल, गढ़ा, जबलपुर ०७६१ २४२५१३७ ।
साधना वर्मा,
सिद्धेश्वरी सराफ 'शीलू', एच १०७ अंबा अपार्टमेंट, मरियम चौक, सिविल लाइन, जबलपुर ४८२००१, sarafsiddheshwari @gmail.com,९१-७३५४६७१६०५।
सुनीता मिश्रा 'सुनीत', २५-६-१९६१,एम.ए. (हिंदी साहित्य), ९८४ रामचरण विला, समीप अंडर ब्रिज, आमनपुर, नरसिंह वार्ड, मदनमहल, जबलपुर, ०७६१ २४२१४२४, ९४०६७४०७७७०, ९४२५८६५३०८।
सुमनलता श्रीवास्तव डॉ.,
सुरेंद्र सिंह पवार, २५.६.१९५७, बी.ई., एम.बी.ए., २०१ शास्त्री नगर, गढ़ा, जबलपुर ४८२००३, pawarss2506@gmail.com, ९३००१०४२९६, ७०००३८८३३२।

जन्म : २५-६-१९५७, सागर।
आत्मज : (स्व.) श्रीमती शांति देवी/(स्व.) श्री नृपति सिंह पंवार, जीवन संगिनी –श्रीमती मीना पंवार शिक्षा : एम.बी.ए. (मानव संसाधन), बी.ई.(सिविल), पत्रकारिता में डिप्लोमा संप्रति : मध्यप्रदेश शासन के नर्मदा घाटी विकास विभाग से कार्यपालन यंत्री पद से सेवा निवृत(वर्ष 2017) प्रकाशित कृतियाँ—मालवा के शहीद कुंवर चैनसिंह, विदिशा के परिहार ( ठा. बलदेव सिंह परिहार का अभिनंदन ग्रन्थ ) परख (समीक्षा ग्रन्थ) उपलब्धियां – देश के लब्धप्रतिष्ठ पत्र-पत्रिकाओं में 100 से अधिक आलेख एवं समीक्षाएं प्रकाशित, इंस्टीट्युशन ऑफ़ इंजीनियर्स की पत्रिका “अभियंता बंधू”(2017) में प्रकाशित आलेख ‘रामसेतु- सेतु अभियांत्रिकी की उत्कृष्ट संरचना’ को अखिल भारतीय स्तर पर थर्ड बेस्ट पेपर एवार्ड, “रामायण संस्कृति” का दस वर्षों तक सहयोगी सम्पादन “परख” पर कादम्बरी संस्था का (वर्ष 2019) प्रतिष्ठित रमेश चन्द्र चौबे सम्मान सम्प्रति –अखिल भारतीय क्षत्रिय धर्म संरक्षण शोध एवं समन्वय संस्थान के राष्ट्रीय महा सचिव अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के महाकौशल के प्रांतीय संपर्क प्रमुख साहित्य संस्कार त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन संपर्क –201/शास्त्रीनगर,गढ़ा,जबलपुर(म.प्र.) मोबाईल 9300 104 296 /7000 388 332 email ---pawarss2506 @gmail.com
१. राछरी और टीका शोर-शराबा, हंसी-ठिठौली, ढोल-धमाके के साथ गीत-संगीत -----------पड़ोस में शादी का खुशनुमा माहौल रहा. जबकि मास्साब अपने घर में अकेले लंगड़ा बुखार से पीड़ित बिस्तर पर पड़े थे--- उनकी श्रीमती और बच्चे रिश्तेदारी में गये हुए थे. कहते हैं; लंगड़ा बुखार का सर्वाधिक प्रभाव घुटनों पर पड़ता है, कमजोरी इतनी आ जाती है कि उठा भी नहीं जाता हैं. सो यही दशा मास्साब की रही. अचानक जोर से दरवाजा पीटने का स्वर सुनकर मास्साब जैसे-तैसे बरामदे तक आये. दीवार पकड़कर खड़े हुए और दरवाजा खोला, तो सामने अपने पड़ोसी कुदऊं को पगिया बांधे देखा. उनके चेहरे पर पगरैत वाला रुआब देखते ही बनता था. किंचित शिकायती लहजे में वे बोले-‘अरे मास्साब! कितनी देर से दरवाजा खटखटा रहा था, क्या घोड़े बेचकर सो रहे थे?’ मास्साब ने अपनी मज़बूरी बताना चाही,-“लंगड़ा बुखार हो गया है, उठा-बैठा-चला नहीं जा रहा, घर पर कोई नहीं है,--- ---.” कुदऊं ने उनकी बात को अनसुना करते हुए कहा,-‘खबास से बुलौआ भिजवाया था, राछरी आ रही है, टीका कर लो!’ मास्साब ने कहा,-“बच्चे आ जायेंगे,तो व्यवहार भिजवा देंगे.” इस पर वे भड़क गये और बोले,-‘मास्साब! आप तो पढ़े-लिखे हैं. राछरी में दरवाजे से दूल्हा का बिना टीका के लौटना अपशगुन माना जाता है.’ इतनी बात चल ही रही थी कि “मोरे राम लखन से बनरा ---,” गातीं कोकिल-कंठी महिलाओं और गाजे-बाजे के साथ वर (दूल्हा) दरवाजे पर आ गया. मास्साब लगभग बरामदे के फर्श पर पड़े थे और कुदऊं दरवाजे पर खड़े टीका करवाने को अड़े थे. मौके की नजाकतता को पहिचानते हुए मास्साब घिसटते हुए कमरे में गये और पचास का एक नोट लाकर कुदऊं की हथेली पर धर दिया और बोले,-“मेरे से खड़े नहीं हुआ जाता, तुम्हीं टीका कर दो.” कुदऊं ने पचास रूपये का नोट हाथ में लेकर, दो-बार उलट-पलट कर देखा, फिर कंधे पर टंगे झोले में से एक पुरानी-सी डायरी निकाली .कुछ देर उसके पन्ने पलटने के बाद बोले,-‘इतना तो मैंने तुम्हारे भाई की शादी में किया था. ये तो व्यवहार लौटाया है, आपका क्या रहा?’ पड़ोसी की जली-कटी सुनकर बुखार से चिडचिडे मास्साब बोले,-“चलो! आपका व्यवहार लौटा दिया. हिसाब चुकता. अब हमें नहीं करना कोई व्यवहार.” थोडा भिनभिनाते हुए कुदऊं ने कहा,-‘यह तो ठीक है मास्साब, सोच लो, जब तुम्हारे लड़के की राछरी मेरे दरवाजे से बिना टीका के वापिस आयेगी. तब क्या? एक निर्णयात्मक स्वर में मास्साब ने घोषणा की,-“आज से हमारे परिवार में लड़के की शादी में राछरी तो निकलेगी परन्तु वह टीका करवाने किसी के दरवाजे पर नहीं जाएगी.”---------- वातावरण में देर तक कोरस गूंजता रहा, “शहर में शोर भारी है, मेरे बनरा की शादी है.” *
२. साहब के रिश्तेदार देशव्यापी लाकडाउन में कोरोना की दहशत के बीच घर-वापिसी की जद्दो- जहद रोकते-नियंत्रित करते देर रात थककर लौटे दरोगा जी चाहते थे कि कुछ देर आराम कर लें, परन्तु पड़ोस के दिबाले में टिमकी-झांझ-मजीरे की संगत में गाई जा रही भगत ‘राजा जगत रन खों चले हो मां’ के स्वर “ओ---छाँ, ओ----छाँ” के साथ मिलकर तीव्रतर होते जा रहे थे और नींद में व्यवधान से उनका पारा सातवे आसमान पर जा पहुंचा. उन्होंने अपनी थौंद पर पट्टेदार लुंगी लपेटी, टीशर्ट डाली और धाराप्रवाह गालियाँ बकते हुए घर से बाहर निकले तो उनके अर्दली ने पीछे से आकर रोक लिया, “नवरात्री में माता के भक्तों पर क्रोध उचित नहीं, साहब ! आप घर पर रहिये, मैं देखता हूँ.” अर्दली गया और दिबाले में चल रहीं भक्तें यकायक बंद हो गयीं. दरोगा जी चैन की नींद सो गये. सुबह उन्होंने अर्दली से पूछा, ‘रात में गम्मत कैसे बंद हुई थी ?’ तनिक मुस्कराते हुए अर्दली बोला, “कुछ विशेष नहीं साहब. मैंने वहां जाकर कहा कि साहब के एक रिश्तेदार आज ही दुबई से होकर आये हैं. वे जबारों के बीच मैय्या कैसे खेलती हैं, देखना चाहते हैं.---- आप लोग गाते रहिये,----मै उन्हें लेकर आता हूँ,”----- बस! फिर क्या था? पंडा के साथ सभी लोग फुर्र हो गये.----- वह तो माई के दरबार में अखंड जोत जल रही थी, उसी को संभारने के लिए मैं रात भर रुका रहा.”
*
३. मृत्यु भोज

एक सफेद कार्ड-शीट पर काली स्याही से छपा कार्ड प्राप्त हुआ. सतही तौर पर
तेरहवीं का कार्ड समझ उसे फाड़ते-फाड़ते उसमें छपी इबारत पढने लगा. लिखा
था—“कल मेरी धर्मपत्नी श्रीमती रामदुलारी सैनी की त्रयोदशी है. मेरी पत्नी के मृत्यु
का भोज नहीं होगा. हाँ, परसों शाम आप हमारे निवास पर भगवान जगन्नाथ का
प्रसाद लेने आप अवश्य आयें.” निवेदक में पडोसी सैनीजी का नाम था.
दूसरे दिन, बरामदे के प्रवेशव्दार पर उनकी धर्मपत्नी की फोटो रखी थी,
आगुन्तक उस मृतात्मा की सद्गति के लिए प्रार्थना कर रहे थे. समीप ही टेबिल
पर एक चांदी के रथ में भगवान जगन्नाथ, दाऊ बलभद्र और बहिन सभुद्रा के
विग्रह बिराजमान थे. सैनी जी स्वयं हर आने वाले को प्रसाद का पेकेट जिसमे दो
मालपुए थे तथा एक तुलसी का पौधा भेंट कर निवेदन कर रहे थे,- “ आप यह
पौधा अपने आँगन में रोपें, यही मेरी दिवंगत पत्नी के प्रति सच्ची श्रध्दांजलि होगी.”

इस मृत्युभोज में सम्मिलित होने का किसी को कोई मलाल नहीं था.
*
४. रामजानें
‘दादी! लगता है, कोई बड़ा आदमी गुजर गया.’
“हाँ बिटिया ! सेठ करोड़ीमल हैं.”
‘इनके पास तो बहुत पैसा रहा.’
“हाँ.”
‘तो इनके सर के नीचे कंडे का टिकोना क्यों लगा है?’
“रामजाने.”
५. नर्मदा मैया की जय
बरगी बाँध और उसकी नहरें बनकर तैयार हो गयीं.नहरों से पहली-पहली बार
सिंचाई के लिए पानी छोड़ा जाना था. नहर के सिंचाई क्षेत्र में ज्वार,बाजरा ,मक्का
की फसलें बोई गयीं थीं. किसानों को खेतों में रबी फसल लगाने के लिए प्रोत्साहित
किया जा रहा था.जमुनिया खेड़े के प्रधान कोंडी लाल राय से बात हुई तो वे
एकदम उबल पड़े, बोले,-“साहब! आप भ्रम में हो,आपकी नहरें-वहरें कुछ कां नहीं
देंगी. समझ लो, नर्मदा मैय्या कुँवारी हैं,उनको अब तक कोई नहीं बाँध पाया, न
सोनभद्र , न सहस्त्र बाहू, आपका बाँध कैसे बचेगा सो भगवान ही जानता है.”
‘दद्दू! आप ठीक कह रहे हैं,किन्तु नर्मदा मैया ने कृपा की और नहरों से पानी
आपके खेतों तक पहुँच गया तो.’

“देखेंगे.” उन्होंने बात टालने के लिए कह दिया.
नियत दिन जब जमुनिया की नहरों में जल बहने लगा तब बजे-गाजे के साथ
“नर्मदा मैया की जय” बोलते गाँव वालों के सबसे आगे खड़े थे प्रधान कोंडी लाल

राय.
*
सुरेंद्र सिंह सेंगर स्व., १०९३ ओके चैरिटी, राइट टाउन, जबलपुर, ०७६१ २४१२७८४ ।
सुरेश कुशवाहा 'तन्मय', १-१-१९५०, एम.ए.(हिंदी, समाजशास्त्र), २२६ माँ नर्मदे नगर, बिलहरी, जबलपुर ४८२०२०, sureshnimadi@gmailcom, ९८९३२६६०१४।
सुरेश दर्पण, सुदर्शन टायर, बँधैया मोहल्ला, काली मंदिर का सामने, कटनी मार्ग जबलपुर, चलभाष ७०४७०४१५००, ९६३०४९४९२०।
सुषमा निगम,
संतोष नेमा, १५.७.१९६१, बी.कॉम., एलएल.बी., अमनदीप, ७८ अलोकनगर, अधारताल, जबलपुर nemasantoshkumar@gmailcom, ९३००१०१७९९।
संध्या जैन 'श्रुति', १.१०.१९६०, पीएच.डी., ई १७ कुचैनी विहार, समीप मैट्रो अस्पताल, दमोह नाका, जबलपुर ४८२००२, ९८२७५४२२१०।
८०. हरिशंकर परसाई स्व.,
हेमंत कुमार भावे, आमनपुर, जबलपुर।
*


कटनी
रमाकांत निगम
सतना
अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान " प्रधान संपादक-शब्द शिल्पी पत्रिका एवं प्रकाशन, श्रीराम गली, दीपशिखा स्कूल के पास, मारुति नगर, सतना, म.प्र. चलभाष : ९४७९४११४०७


*****************

कोई टिप्पणी नहीं: