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गुरुवार, 12 मार्च 2020

मुक्तक आईना

मुक्तक  
आईना
*
आईना देखने में लीन रही आई ना 
राह देख देख थके, ऐसी प्रीत भाई ना 
और जब आई बात हमको सुहाई ना 
संग ही ले आई घर छोड़ आई भाई ना 
*
आईना किससे कहे अपने मन की पीर 
किसे देख कहिए धरे अपने मन में धीर 
आईना वह जो करे नित सोलह सिंगार 
अपलक निरखे मन बसा अविचल जैसे पीर 
*
आईना जो देख रहा, वही तो दिखाता है 
जोड़-तोड़; हेर-फेर कर नहीं सिखाता है 
टूट भले जाए पर सत्य छोड़ता नहीं है -
आदमी तो है नहीं जो टके में बिकाता है 
*


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