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मंगलवार, 31 मार्च 2020

विमर्श : लघुकथा

विमर्श :
लघुकथा
पवन जैन, जबलपुर
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सामान्यतः कुछ रचनाकार एक छोटी रचना को लघुकथा मानते हैं, जबकि हर छोटी रचना लघुकथा नहीं होती है। लघुकथा गद्य साहित्य की लोकप्रिय एवं प्रतिष्ठित विधा है।इस संबंध में डाॅ अशोक भाटिया के आलेख लघुकथा: लघुता में प्रभुता के कुछ अंश प्रस्तुत हैं :

लघुकथा कथा परिवार की सबसे छोटी इकाई है।लघुकथा का आकार उसके विषय की जरूरत के हिसाब से तय होता है। लघुकथा में आमतौर पर यथार्थ के किसी एक पल, एक स्थिति, एक सूक्ष्म पहलू को लेकर रचना में ढाला जाता है, इसलिए उसका स्वरूप संरचना भी उसी प्रकार बनती है। घटनाओं, स्थितियों, पात्रों की संख्या लघुकथा में आमतौर पर अधिक नहीं होती।
विष्णु प्रभाकर ने कहा है: "लघुकथा मानव -जीवन के यथार्थ के किसी पक्ष की, छोटे आकार में कही कथा-रचना है।"
लघुकथा ने दृष्टांत, रूपक, लोक कथा, बोध कथा, नीति कथा, व्यंग्य, चुटकुले , संस्मरण जैसी अनेक मंजिलें पार करते हुए वर्तमान रूप पाया है। वह अब किसी तत्व को समझाने, उपदेश देने, स्तब्ध करने, गुदगुदाने और चौंकाने का काम नहीं करती, बल्कि आज के यथार्थ से जुड़ कर हमारे चिंतन को धार देती है।

भगीरथ परिहार ने कहा है "घटना या सत्य कथा लघुकथा नहीं है, सुने सुनाए किस्से और संस्मरण भी लघुकथा नहीं है। लघुकथा एक लघु विधा है लेकिन इसके लिए इतनी ही घनीभूत एकाग्र, जीवंत तथा गहरी संवेदना की आवश्यकता है।"

बलराम अग्रवाल ने परिंदों के दरमियां मे बताया है किः "लघुकथा में 'क्षण' सिर्फ समय की इकाई को ही नहीं कहते, संवेदना की एकान्विति को भी 'क्षण' कहते हैं। उस एकान्विति को आप यों समझ लीजिए कि पात्र को उसकी तत्समय की चिंता से, भावभूमि से दूसरी चिंता में, दूसरी भावभूमि में प्रविष्ट नहीं करना चाहिए।"

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