क्षणिका
*
आमंत्रण है तुम्हें पधारो कोरोना
थकते न मिटती रिश्वरखोरी
सुना कर रहे तुम बरजोरी
झटपट आओ,
इसे मिटाओ
सही न जाए कुछ कोरो ना
*
संजीव
१३.३.२०२०
९४२५१८३२४४
*
आमंत्रण है तुम्हें पधारो कोरोना
थकते न मिटती रिश्वरखोरी
सुना कर रहे तुम बरजोरी
झटपट आओ,
इसे मिटाओ
सही न जाए कुछ कोरो ना
*
संजीव
१३.३.२०२०
९४२५१८३२४४
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें