
इस हफ्ते की किताब
भारतीय कला में सलिल-क्रीड़ाएं एवं सद्य: स्नाता नायिका
इस पुस्तक में सलिल क्रीड़ा एक उत्सव की तरह है, जिसके परिवेश में नायिकाओं के सौंदर्य पर बात हुई है। लेकिन इस उत्सव में अपनी संस्कति की कई कथा भी हैं।
भारतीय परंपरा में वास्तुकला के अभिन्न अवयव मूर्तिकला और चित्रकला का स्वतंत्र अस्तित्व है और इनका निरूपण वास्तुकला के अंतर्गत ही होता रहा है। भारतीय परंपरा में मूर्तियों का निर्माण आध्यात्मिक और धार्मिक भावनाओं को अंतर्निहित करते हुए किया जाता रहा है, लेकिन पाश्चात्य मूर्तियों का सृजन सौंदर्य की भावन से ओत-प्रोत है। प्रकृति की अद्भुत देन है सौंदर्य। और सौंदर्य का धर्म है आकर्षण। वहीं, भारतीय वाङ्मय, मूर्तियों, चित्रों में आदिकाल में स्नान करती नायिकाएं, जल-क्रीड़ा करते देव, गंधर्व, किन्नर और अप्सराएं दृष्टिगोचर हैं। मध्यकालीन और परवर्तीकाल के चित्रों में भी राधा-कृष्ण का जल-विहार, जिसे हम सलिल-क्रीड़ा कहते हैं, प्रमुखता से प्रकट होता रहा है। इसी क्रम में सलिल क्रीड़ाओं और सद्य: स्नाता पर प्रकाश डालने का एक अद्भुत प्रयास डॉ. क्षेत्रपाल गंगवार और संजीव कुमार सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘भारतीय कला में सलिल क्रीड़ाएं एवं सद्यस्नाता नायिका’ में दिखता है।
भारतीय परंपरा में वास्तुकला के अभिन्न अवयव मूर्तिकला और चित्रकला का स्वतंत्र अस्तित्व है और इनका निरूपण वास्तुकला के अंतर्गत ही होता रहा है। भारतीय परंपरा में मूर्तियों का निर्माण आध्यात्मिक और धार्मिक भावनाओं को अंतर्निहित करते हुए किया जाता रहा है, लेकिन पाश्चात्य मूर्तियों का सृजन सौंदर्य की भावन से ओत-प्रोत है। प्रकृति की अद्भुत देन है सौंदर्य। और सौंदर्य का धर्म है आकर्षण। वहीं, भारतीय वाङ्मय, मूर्तियों, चित्रों में आदिकाल में स्नान करती नायिकाएं, जल-क्रीड़ा करते देव, गंधर्व, किन्नर और अप्सराएं दृष्टिगोचर हैं। मध्यकालीन और परवर्तीकाल के चित्रों में भी राधा-कृष्ण का जल-विहार, जिसे हम सलिल-क्रीड़ा कहते हैं, प्रमुखता से प्रकट होता रहा है। इसी क्रम में सलिल क्रीड़ाओं और सद्य: स्नाता पर प्रकाश डालने का एक अद्भुत प्रयास डॉ. क्षेत्रपाल गंगवार और संजीव कुमार सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘भारतीय कला में सलिल क्रीड़ाएं एवं सद्यस्नाता नायिका’ में दिखता है।
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