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बुधवार, 4 मार्च 2020

कृति चर्चा : भारतीय कला में सलिल-क्रीड़ाएं एवं सद्य: स्नाता नायिका


Bhartiya kala mein salil kreedayein evam sadyah snata nayika book review

इस हफ्ते की किताब

भारतीय कला में सलिल-क्रीड़ाएं एवं सद्य: स्नाता नायिका

अंकिता बंगवाल
इस पुस्तक में सलिल क्रीड़ा एक उत्सव की तरह है, जिसके परिवेश में नायिकाओं के सौंदर्य पर बात हुई है। लेकिन इस उत्सव में अपनी संस्कति की कई कथा भी हैं।

भारतीय परंपरा  में वास्तुकला के अभिन्न अवयव मूर्तिकला और चित्रकला का स्वतंत्र अस्तित्व है और इनका निरूपण वास्तुकला के अंतर्गत ही होता रहा है। भारतीय परंपरा में मूर्तियों का निर्माण आध्यात्मिक और धार्मिक भावनाओं को अंतर्निहित करते हुए किया जाता रहा है, लेकिन पाश्चात्य मूर्तियों का सृजन सौंदर्य की भावन से ओत-प्रोत है। प्रकृति की अद्भुत देन है सौंदर्य। और सौंदर्य का धर्म है आकर्षण। वहीं, भारतीय वाङ्मय, मूर्तियों, चित्रों में आदिकाल में स्नान करती नायिकाएं, जल-क्रीड़ा करते देव, गंधर्व, किन्नर और अप्सराएं दृष्टिगोचर हैं। मध्यकालीन और परवर्तीकाल के चित्रों में भी राधा-कृष्ण का जल-विहार, जिसे हम सलिल-क्रीड़ा कहते हैं, प्रमुखता से प्रकट होता रहा है। इसी क्रम में सलिल क्रीड़ाओं और सद्य: स्नाता पर प्रकाश डालने का एक अद्भुत प्रयास डॉ. क्षेत्रपाल गंगवार और संजीव कुमार सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘भारतीय कला में सलिल क्रीड़ाएं एवं सद्यस्नाता नायिका’ में दिखता है। 

यह हिन्दी में लिखी गई...

यह हिन्दी में लिखी गई एक कला पुस्तक है, जो मूल अनुसंधान पर आधारित है , जिसे राष्ट्रीय संग्रहालय द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक में जल क्रीड़ाओं का बखूबी वर्णन किया गया है। कला का यह रूप पुरातन काल से ही भारतीय कला का हिस्सा रहा है। साहित्यिक स्रोत और पुरातात्विक साक्ष्य यह सिद्ध करते हैं कि यह हमेशा से ही हमारा प्रिय विषय रहा है। संस्कृत काव्य में सलिल क्रीड़ाओं का विशेष उल्लेख है। ऋग्वेद में उषा का वर्णन सौंदर्य-संपन्न सद्य:स्नाता के रूप में किया गया है। वहीं, वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण में माहिष्मती-नरेश अर्जुन का रानियों के साथ नर्मदा में जल-क्रीड़ा का वर्णन भी है, जहां अर्जुन सहस्रों हथिनियों के मध्य गजराज के समान शोभायमान थे।


कालिदास ने मेघदूत में...

कालिदास ने मेघदूत में जल-क्रीड़ा का उल्लेख मात्र करते हुए कहा है कि उज्जयिनी में महाकाल मंदिर के निकट जल-विहार करती युवतियों की शरीर-सुगंध से वायु भी सुगंधित हो जाती थी। अयोध्या-नरेश कुश, राजा अग्निवर्ण, राजशेखर, कलचुरि शासक विजयसिंह, भागवतपुराण हों या ग्यारहवीं शताब्दी में सोमदेव, सभी ने कहीं न कहीं जल-क्रीड़ाओं का वर्णन किया है। वहीं, अपनी चित्रकारी के रूप में भी कई चित्रकारों ने इसका उल्लेख किया है। हिंदी काव्य में भी देव, विश्वनाथ सिंह, रघुराज सिंह, चाचा हित वृंदावनदास, खुमान आदि ने अष्टायाम काव्यों में नायक-नायिकाओं की दिनचर्या के अंतर्गत उनके मृगया तथा वन विहार के साथ जल-विहार का वर्णन है। इसी तरह मूर्ति कला में नायिकाओं की भाव-भंगिमा को मूर्तिकारों ने अपने कौशल से जीवंत रूप दिया है। सलिल क्रीड़ा जैसे विषय पर सभी सामग्रियों और जानकारियों को जुटाना मेहनत का काम जरूर है।

लेखक - क्षेत्रपाल गंगवार, संजीव कुमार सिंह, प्रकाशन - राष्ट्रीय संग्राहलय, नई दिल्ली, मूल्य - 240 रुपये

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