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मंगलवार, 3 मार्च 2020

कला त्रयोदशी छंद

छंद सलिला
२९ मात्रिक महायौगिक जातीय, कला त्रयोदशी छंद
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विधान :
प्रति पद प्रथम / विषम चरण १६ कला (मात्रा)
प्रति पद  द्वितीय / सम चरण १३ कला
नामकरण संकेत: कला १६,   त्रयोदशी तिथि १३
यति  १६ -  १३ पर, पदांत गुरु ।
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लक्षण छंद:
कला कलाधर से गहता जो, शंकर प्रिय तिथि साथी। 
सोलह-तेरह पर यति सज्जित, फागुन भंग सुहाती।।
उदाहरण :
शिव आभूषण शशि रति-पति हँस, कला सोलहों धारता।
त्रयोदशी पर व्रत कर  चंदा,  बाधा-संकट टारता।।
तारापति रजनीश न भूले, शिव सम देव न अन्य है।
कालकूट का ताप हर रहा, शिव सेवा कर धन्य है।।
२२.४.२०१९
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मुक्तक
छंद कला त्रयोदशी
संजीव 'सलिल'
सरहद पर संकट का हँसकर, जो करता है सामना।
उसकी कसम तिरंगा कर में, सर कटवाकर थामना।।
बड़ा न कोई छोटा होता, भला-बुरा पहचानना-
वह आदम इंसान नहीं जो, करे किसी का काम ना।। 
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मुक्तक 
छंद कला त्रयोदशी 
राकेश मिश्र 
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घाटी - घाटी पर्वत-पर्वत , गीत सुनाता कौन है ।
पड़ी सुसुप्त भावनाओं को, आन जगाता कौन है,
करता कौन सुवासित पवनें, आकर के मधुमास में,
धरती माता के आँचल पर, सुमन सजाता कौन है ।

फूलों के अंगों में खुशबू , रंग घोलता कौन है ।
चिड़ियों के कंठों से मधुरिम, बोल बोलता कौन है ।
सघन निराशा के अंधड़ में, अनजानी सी राह में,
तिमिर हटाकर नव-आशा के, द्वार खोलता कौन है ।

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