Saturday, April 18, 2009
दोहा गाथा सनातन : पाठ 13 बहुरूपी दोहा अमर
बहुरूपी दोहा अमर, सिन्धु बिंदु में लीन.
सागर गागर में भरे, बांचे कथा प्रवीण.
दोहा मात्रिक छंद है, तेईस विविध प्रकार.
तेरह-ग्यारह दोपदी, चरण समाहित चार.
विषम चरण के अंत में, 'सनर' सुशोभित खूब.
सम चरणान्त 'जतन' रहे, पाठक जाये डूब.
विषम चरण के आदि में, 'जगण' विवर्जित मीत.
दो शब्दों में मान्य है, यह दोहा की रीत.
छप्पय रोला सोरठा, कुंडलिनी चौपाइ.
उल्लाला हरिगीतिका, दोहा के कुनबाइ.
सुख-दुःख दो पद रात-दिन, चरण चतुर्युग चार.
तेरह-ग्यारह विषम-सम, दोहा विधि अनुसार.
द्रोह, मोह, आक्रोश या, योग, भोग, संयोग.
दोहा वह उपचार जो, हरता हर मन-रोग.
दोहा-यात्रा का अगला पड़ाव दोहा के २३ प्रकारों से परिचित होना का है। जो दोहा प्रेमी यात्रा के बीच में कहीं छूट गए वे फिर जुड़ सकते हैं। नए यात्रियों को पिछले पड़ावों की जानकारी ले लेना सुविधाजनक होगा। चलिए आने-जानेवालों के स्थान रखते हुए हम लगातार चलनेवालों को कुछ नया बताते रहें ताकि उनका रस-भंग न हो।
दोहा के २३ प्रकार लघु-गुरु मात्राओं के संयोजन पर निर्भर हैं। सम चरण में ११-११, विषम चरण में १३-१३ तथा दो पदों में २४-२४ मात्राओं के बंधन को मानते हुए २३ प्रकार के दोहे होना पिंगालाचार्यों की अद्भुत कल्पना शक्ति तथा गणितीय मेधा का जीवंत प्रमाण है. विश्व की किसी अन्य भाषा के पास ऐसी सम्पदा नहीं है।
छंद गगन के सूर्या दोहा की रचना के मानक समय-समय पर बदलते गए, भाषा का रूप, शब्द-भंडार, शब्द-ध्वनियाँ जुड़ते-घटते रहने के बाद भी दोहा प्रासंगिक रहा उसी तरह जैसे पाकशाला में पानी। दोहा की सरलता-तरलता ही उसकी प्राणशक्ति है. दोहा की संजीवनी पाकर अन्य छंद भी प्राणवंत हो जाते हैं। इसलिये दोहा का उपयोग अन्य छंदों के बीच में रस परिवर्तन, भाव परिवर्तन या प्रसंग परिवर्तन के लिए किया जाता रहा है। कबीर और तुलसी ने दोहा में शब्दों को उनके प्रचलित असमान्य अर्थों से हटकर भिन्नार्थों में सफलतापूर्वक प्रयोग किया है पर वह फिर कभी, अभी तो प्रकारों की बात करें। निम्न सारणी देखिये-
क्रमांक नाम गुरु लघु कुल कलाएं कुल मात्राएँ
- - २४ ० २४ ४८
- - २३ २ २५ ४८
१. भ्रामर २२ ४ २६ ४८
२. सुभ्रामर २१ ६ २७ ४८
३. शरभ २० ८ २८ ४८
४. श्येन १९ १० २९ ४८
५. मंडूक १८ १२ ३० ४८
६. मर्कट १७ १४ ३१ ४८
७. करभ १६ १६ ३२ ४८
८. नर १५ १८ ३३ ४८
९. हंस १४ २० ३४ ४८
१०. गयंद १३ २२ ३५ ४८
११. पयोधर १२ २४ ३६ ४८
१२. बल ११ २६ ३८ ४८
१३. पान १० २८ ३८ ४८
१४. त्रिकल ९ ३० ३९ ४८
१५. कच्छप ८ ३२ ४० ४८
१६. मच्छ ७ ३४ ४२ ४८
१७. शार्दूल ६ ३६ ४४ ४८
१८. अहिवर ५ ३८ ४३ ४८
१९. व्याल ४ ४० ४४ ४८
२०. विडाल ३ ४२ ४५ ४८
२१. श्वान २ ४४ ४६ ४८
२२. उदर १ ४६ ४७ ४८
२३. सर्प ० ४८ ४८ ४८
इस लम्बी सूची को देखकर घबराइये मत। यह देखिये कि आचार्यों ने कसी गणितज्ञ की तरन समस्त संभावनायें तलाश कर दोहे के २३ प्रकार बताये। दोहे के दो पदों में २४ गुरु होने पर लघु के लिए स्थान ही नहीं बचता। सम चरणों के अंत में लघु हुए बिना दोहा नहीं कहा जा सकता।
२३ गुरु होने पर हर पद में केवल एक लघु होगा जो सम चरण में रहेगा। तब विषम चरण में लघु मात्र न होने से दोहा कहना संभव न होगा। आप ने जो दोहे कहे हैं या जो दोहे आपको याद हैं वे इनमें से किस प्रकार के हैं, रूचि हो तो देख सकते हैं। क्या आप इन २३ प्रकारों के दोहे कह सकते हैं? कोशिश करें...कठिन लगे तो न करें...मन की मौज में दोहे कहते जाएँ...धीरे-धीरे अपने आप ही ये दोहे आपको माध्यम बनाकर बिना बताये, बिना पूछे आपकी कलम से उतर आयेंगे। क्या आप इन दोहों से मिलाना चाहते हैं? यदि हाँ तो झटपट दो-दो दोहे लिख लाइए और उनके प्रकार भी बताइये। हम चटपट सभी २३ प्रकार के दोहों से आपकी भेंट कराएँगे।
बिदा होने के पूर्व दोहा का एक और किस्सा सुन लीजिये।
साखी से सिख्खी हुआ...
कबीर ने दोहा को शिक्षा देने का अचूक अस्त्र बना लिया. शिक्षा सम्बन्धी दोहे साखी कहलाये. गुरु नानकदेव ने दोहे को अपने रंग में रंग कर माया में भरमाई दुनिया को मायापति से मिलाने का साधन बना दिया. साखी से सिख्खी हुए दोहे की छटा देखिये।
पहले मरण कुबूल कर, जीवन दी छंड आस.
हो सबनां दी रेनकां, आओ हमरे पास..
सोचै सोच न होवई, जे सोची लखवार.
चुप्पै चुप्प न होवई, जे लाई लिवतार..
इक दू जीभौ लख होहि, लाख होवहि लख वीस.
लखु लखु गेडा आखिअहि, एकु नामु जगदीस..
आप में से जो भी इन सिख्खियों को खडी बोली के दोहे में कहेगा उसे उपहार में दोहा मिलेगा। तब तक के लिए नमन..
दोहा वह उपचार जो, हरता हर मन-रोग.
.........
waah
प्रणाम
आज मैंने लपक कर बहुत ही उत्सुकता से इस बार आपकी दोहो के रूपों की सूची देखी और सांस थम गयी कुछ देर के लिये. डर लगने लगा और असहाय समझने लगी अपने आप को.
दोहों में इतनी varieties! इस बार जरूर सबके दिमाग का कचूमर निकल जायेगा या फिर हम सब इधर-उधर ताकने लगेंगे. अपुन तो कुछ शब्दों का अर्थ ही नहीं समझ रहे हैं तो फिर इन सीखों को खड़ी बोली में कैसे लिख पाऊंगी. जैसे कि:
सवनं, रेनका, लखवार,लिवतार, जीभौ, लखु-लखु, गेडा और आखिआई.
इनका अर्थ जानना जरूरी है मेरे लिये. वर्ना मैं असमर्थ महसूस कर रही हूँ.
पहले इन्हें समझना ,,,,फिर खड़े बोली के शब्द ढूँढने दोनों ही काम मुश्किल हैं.....
नीलम जी कर सकती हैं,,,
उन्हें कई तरह की बोलियों में लिखते देखा है,,,इस मामले में उस्ताद हैं वे ,,,,,
पर उनसे शायद दोहा ना लिखा जाए
धन्यवाद आपका आपने इतनी महत्वपूर्ण जानकारी दी दोहों के बारे में. ,
सुरिन्दर रत्ती
i am in bhopal till 22nd. after reaching udaipur i will do homework.
दो दोहे लिख रही हूँ, दोहे के २३ प्रकार तो देख लिए किन्तु समझ नहीं आया कि इनका वर्गीकरण किस आधार पर किया गया है? इस लिए इन दोहों का प्रकार नहीं बता सकती... :(
१) दोहा सत्य के करीब है, छिपा ह्रदय में सत्य
मिथ्या जग संसार यह , अजब कराये नृत्य .
२) देख ता-थैया जग की, फिर भी समझ ना आई,
लालच की लौ ना बुझे, हो चाहे रुसवाई.
आपके दिये हुए दोहों को खड़ी बोली में लिखने की कोशिश की है.....
एक जीभ से लाख बनें , लाख से लाख बीस,
उन लाखों से उच्चारिये , एक नाम जगदीस.
सोचा सत्य नहीं होता , जो सोचो लाखों बार,
शान्ति नहीं देती चुप्पी, चाहे हो समाहार .
(समाहार - एकाग्रता )
तीसरे को अनुवादित नहीं कर पाई....
पूजा अनिल
१२. बल ११ - २६ - ३७ - ४८
१६. मच्छ ७ - ३४ - ४१ - ४८
१७. शार्दूल ६ - ३६ - ४२ - ४८
Wednesday, April 22, 2009
दोहा गाथा सनातन : गोष्ठी 13- दोहा सागर है अगम
दोहा सागर है अगम, कहीं न मिलती थाह.
उतनी गहराई मिले, जितना लो अवगाह.
रश्मि प्रभा जी-श्याम जी, स्वागत कर स्वीकार.
उपकृत हमको कीजिये, कुछ दोहे उच्चार..
डॉ. श्याम गुप्ता जी!
आपने बिलकुल सही कहा है, गोष्ठी १२ के प्रथम दोहे के तृतीय चरण में १३ के स्थान पर १४ मात्राएँ हैं. दोहा है-
दोहा दे शुभकामना, रहिये सदा प्रसन्न.
कीर्ति सफलता लाई है, बैसाखी आसन्न..
आँखों में तकलीफ के कारण जैसे-तैसे इस सामग्री को टंकित किया...चूक हुई, पूरी कक्षा और युग्म परिवार के प्रति खेद व्यक्त करता हूँ, भविष्य में अधिक सजग रहने का प्रयास होगा. तीसरे चरण को इस तरह १३ मात्राओं में रखा जा सकता है-
'लाई है यश-सफलता', शेष दोहा पूर्व की तरह.
शन्नो जी! आपको साधुवाद...निरंतर प्रयास करने और द्रुत गति से छंद पर अधिकार पाने के प्रयास के लिए. आये! आपकी पंक्तियों का मंथन करें.
दुखी बहुत ही मन हुआ, समझ ना कुछ आया
जब मिला आपका साथ, तब जरा लिख पाया
आदत गिनती की पड़ी, मनु का कहना मान
बूँद-बूँद पी ज्ञान की, अब आई मुसकान.
उक्त पंक्तियों में १३-१३ मात्रा हैं. यह दोहा का विधान है किन्तु प्रथम दो पंक्तियों में दीर्घ पदांत है जो दोहे में वर्जित है. इन्हें देख लीजिये. अंतिम दो पंक्तियाँ दोहा हैं और त्रुटिरहित हैं.
पाया मैंने बस तनिक, मुझे बहुत ना ज्ञान
मैं छोटी सी कंकरी, आप ज्ञान की खान
आप ज्ञान की खान, चमकते हीरे जिसमे
तुलना कोई करे, हो सके साहस किसमें
रहे सभी के साथ, 'शन्नो' को भी बताया
साथ आपका मिला, हमने बहुत ही पाया.
प्रथम ४ पंक्तियाँ बिलकुल सही हैं. अंतिम दो पंक्तियों विशेषकर अंतिम चरण को शायद आप परिवर्तित करना चाहें 'हमने बहुत ही पाया' पद के भाव को आप सी प्रतिभावान कवयित्री बेहतर तरीके से व्यक्त कर सकती है. कृपया एक प्रयास और...
कुंडली:
खड़ी हुई रसोई में, मैं करती थी कुछ काम
उसी समय याद आया, एक गाने का नाम
एक गाने का नाम, जिसमे आँसू भरे तराने
मूड में कुछ आकर, लगी मैं उसको गाने
मनु की बातें पढीं, 'शन्नो' बहुत हँस पड़ी
आज्ञा पा 'सलिल'की, मैं कुंडली लिखूं खड़ी.
रोला:
किया किचन में काम, लगी मैं गाने गाना
मनु ने जान तुंरत, शुरू कर दिया खिझाना
हंसी में फंसकर, फिर गयी किचन को भूल
ही, ही, ही मैं हंसी, मैं भी कैसी हूँ फूल.
इन दोनों रचनाओं में आपने प्रत्युत्पन्नमतित्व का परिचय दिया है, बधाई। यह गुण जिस कवि में हो वह हमेशा सराहा जाता है. आप रचना लिखने के बाद शीघ्रता न कर एक बार दोहरा लें तो वे बिलकुल सही हो जायेंगी.
रही रसोई में खडी, मैं करती कुछ काम
आया याद उसी समय, एक गीत का नाम
एक गीत का नाम, थे अश्रु भरे तराने
मस्ती में आ गयी, लगी मैं उसको गाने
मनु की बातें पढीं, हँस पड़ी 'शन्नो' बरबस.
बात 'सलिल' की मान, कुंडली लिखी मिले जस..
रोला:
किया किचन में काम, लगी मैं गाने गाना
मनु ने जान तुंरत, शुरू कर दिया खिझाना
फँसी हँसी में 'शन्नो', गयी किचन को भूल
ही, ही, ही मैं हँसी, लगी फूल या फूल.
तपन शर्मा said...
मात्रा का नहीं है भय, करूँ हमेशा जोड़
शब्दों का न ज्ञान मुझे, मैं शिल्प न दूँ तोड़..
रामचरित लो खोल, सोरठा देखने के लिये
जी भर कर लो बोल, हैं अनेकों उदाहरण
तपन जी! शुभकामनाएँ...दोहा लेखन का सफ़र बिना किसी हिचक के प्रारंभ कर दें, उक्त में किये जा रहे संशोधनों को समझें और तद्नुसार लिखें.
मात्रा का भय नहीं है ,करुँ हमेशा जोड़.
ज्ञान न शब्दों का मुझे, शिल्प न दूं मैं तोड़..
देख सोरठा छंद, रामचरित मानस उठा.
पा जी भर आनंद, हैं अनेकों उदाहरण
पूजा जी!
दोहा सत के निकट, ज्यों-, छिपा ह्रदय में सत्य
मिथ्या जग संसार यह , अजब कराये नृत्य .
ता-ता-थैया जगत की, समझ न आती रीत.
लालच की लौ ना बुझे, रुसवा हो मन मीत..
गुरु नानक देव के दोहों को अनूदित करने के प्रयास के लिए आप साधुवाद की पात्र हैं. मैंने इन्हें इस तरह किया है-
पहले मरण कुबूल कर, जीवन दी छंड आस.
हो सबनां दी रेनकां, आओ हमरे पास..
मृत्यु प्रथम स्वीकार कर, जीवन की तज आस.
सबकी जाग्रति हो सके,आओ मेरे पास..
सोचै सोच न होवई, जे सोची लखवार.
चुप्पै चुप्प न होवई, जे लाई लिवतार..
नहीं सोचने से मिले. सोचो लाखों बार.
हो कदापि वह चुप नहीं, कोशिश करो हजार..
इक दू जीभौ लख होहि, लख होवहि लख वीस.
लखु लखु गेडा आखिअहि, एकु नामु जगदीस..
जीभ एक-दो लाख या, बीसों लाखों बार.
बाद अनंतों चक्र के,हो जगदीश उचार..
जुड़े सुरिंदर जी नमन, रत्ती-रत्ती ज्ञान.
तब मिलता जब कर सकें, नित्य निरंतर ध्यान.
दोहा लेखन के कला दोहाकार की सामर्थ्य को निरंतर कसौटी पर कसती है. 'दोहा मंजरी' के रचनाकार श्री गजाधर कवि ने दोहा के २३ प्रकारों का वर्णन एक छंद में कर अपने नैपुण्य का परिचय दिया है-
भ्रमर सुभ्रामर शरभ श्येन मंडूक बखानहु.
मरकत करभ सु और नरहि हंसहि परिमानहु..
गनहु गयंद सु और पयोधर बल अवरेखहु.
वानर त्रिकल प्रतच्छ, कच्छपहु मच्छ विसेखहु.
शार्दूल अहिबरहु व्यालयुत वर विडाल अरु.अश्व्गनि
उद्दाम उदर अरु सर्प शुभ तेइस विधि दोहा करनि.
दोहा की चौपाल में आज हम आपको मिलवा रहे हैं एक अंग्रेज से. चकराइये मत, वे आपको दोहा तो सुनायेंगे पर अंगरेजी में नहीं हिन्दी में ही सुनायेंगे. इन महाशय क नाम है श्री फ्रेडरिक पिंकोट जो संवत १९४३ में भारत में थे. वे भारत में बाल शिक्षा के क्षेत्र में पुस्तक लिखनेवाले तथा उस समय के श्रेष्ठ साहित्यकारों से पत्राचार में दोहा-सोरठा का प्रयोग करनेवाले प्रथम अंग्रेज थे. श्री पिंकोट ने इंग्लैंड लौटकर नगरी तथा कैथी लिपि में 'बाल-दीपक' (४भाग) तथा 'विक्टोरिया चरित' पुस्तकें लिखीं. ये पुस्तकें खड्गविलास प्रेस बांकीपुर से मुद्रित हुईं थीं. श्री पिंकोट ने बाबू कार्तिक प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र कों गद्य-पद्य में कई पत्र लिखे. दोहा-सोरठा के अद्भुत शैल्पिक सौंदर्य पर मुग्ध श्री पिंकोट रचित निम्न सोरठा तथा दोहा स्मरण कर हम उन्हें नमन करेंगे...इन छंदों कों कठिन पानेवाले सोचें कि हिन्दी न जाननेवाले इस अंग्रेज ने पहले हिंदी और फिर छंद-पिंगल कैसे सीखा होगा? क्या हमारी कठिनाई इससे भी अधिक है या हमारे प्रयास कम हैं? श्री पिंकोट ने पत्र का उत्तर न मिलने पर स्नेह-सिक्त शिकायत सोरठा रचकर की -
बैस वंस अवतंस, श्री बाबू हरिचंद जू.
छीर-नीर कलहंस, टुक उत्तर लिख दे मोहि.
श्रीयुत सकल कविंद, कुलनुत बाबू हरिचंद.
भारत हृदय सतार नभ, उदय रहो जनु चंद.
---शेष फिर
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या चुनाव में लीन हो बदल रहे भूगोल?
बदल रहे भूगोल, न इसको स्वर्ग बना दें.
जीते जी ही नहीं स्वर्ग की सैर करा दें.
'सलिल' डाल मत, अवसर चूक न अब हाथ से.
सारे श्रोता गोल हुए दोहा गाथा से.
अरे नहीं, मेरी तरफ से ऐसी बात नहीं है. दोहा के मैदान से अभी नहीं भाग रही हूँ. मैं भी जरा कुछ दोहा की सामिग्री जुटा लूं तब फिर से प्रकट हो जाऊंगी. यह कमेन्ट आपको तसल्ली देने के लिए है. दिमाग टटोलना होगा, हो सकता है कल तक कुछ भेजे में आ जाये. आज जरा कुछ अन्य कार्य में व्यस्त थी.
शन्नो जी हैं साथ तो,'सलिल'करे क्यों फ़िक्र?
साथ हूर लंगूर का, भी होता है ज़िक्र.
हा हा हा, ही ही ही, हू हू हू ...
(केवल हास्य के लिए, कृपया अन्यथा न लें...)
वाकई में आप हूर हैं,,,,,,,हा,,,हा,,,हा,,,,
ये अंग्रेज वाला दोहा समझ में तो कम आया पर ये जानकार ही मजा आ गया के एक अंग्रेज का लिखा हुआ है,,,,,,सच में कितना जतन किया होगा उसने,,,,,
शन्नो जी से भी ज्यादा,,,,,
ऐसी जानकारी के लिए धन्यवाद,,,,
और ये दोहा मैं ही नहीं समझ पा रहा हूँ या वाकई ये शब्द मुश्किल हैं,,,,,
शन्नो जी जैसी दृढ़ संकल्पी विदुषी के साथ सतत चलायमान सलिल...हूर और लंगूर ही तो हुए. प्रथम पंक्ति में जिस क्रम में उल्लेख है द्वितीय पंक्ति में उसी क्रम में उपमा है. शन्नो जी से कभी मिलने का सौभग्य नहीं मिला पर युग्म पर उनके सृजन-संसार का सौन्दर्य देख अभिभूत हूँ, सौन्दर्यमयी को हूर ही कहेंगे न? सलिल अर्थात जल-धार कभी स्थिर न रहनेवाली...सदा गतिमय...चंचल और चंचलता ही लंगूर की विशिष्टता है...सो मतिमयी और गतिमय की जोड़ी हूर और लंगूर हुई कि नहीं?...हास्य इसलिए कि जिसे स्नेहीजन 'आचार्य' कहकर सराहते हैं वह तो अपनी औकात जान ले कि वह सिर्फ लंगूर है, कहीं प्रशसा पाकर खुद को कुछ समझने न लगे... यह दोहा खुद मुझे आइना दिखा रहा है...अस्तु. इसे पढ़कर कक्ष का गाम्भीर्य भूल कर ठहाका लगायें यही भाव है इस दोहे के उतरने का...इसे रोकता तो सत्य को सर्व के पास जाने से रोकने का पातक लगता... अतः, तेरा तुझको अर्पण की भावना के साथ...हा..हा..
आपकी कक्षा से किसी ने भी पलायन नहीं किया है, बस भोपाल यात्रा पर थी, अभी-अभी ही आयी हूँ। शीघ्र ही अपना होमवर्क पूरा करके आपको प्रस्तुत करूँगी।
मनु की ही, ही से लगे, मुझसे हुआ कसूर
मुझसे हुआ कसूर, बनाई मेरी गाथा
सोच रही मैं यहाँ, पकडे हाथ में माथा
मिला युग्म का साथ, 'शन्नो' भी लिखती रही
इतनी तारीफ की, मैं तो हूँ काबिल नहीं.
अब आप को शिकायत नहीं होगी कि कक्षा से सब क्यों गोल हो गये. सब लोग धीरे-धीरे आ रहे हैं. लीजिये मैं फिर परेशान करने आ गयी. आशा है की मनु जी को कोई तकलीफ नहीं पहुँचेगी मेरे इस दोबारा के आगमन से. आज एक कुंडलिनी भेज चुकी हूँ. एक और भेजे में आ गयी तो वह भी आप देख लीजिये, please.
नेह बिन सूना जीवन, सारा जग निस्सार
दुख बांटे से न बंटे, नेह करे कम भार
नेह करे कम भार, तो बन मेघ सब बरसो
मिले नेह का नीर, न फिर तुम उसको तरसो
शन्नो कहे अधीर, सावन का बन कर मेह
सींच मुरझाया मन, भर दे उसमें कुछ नेह.
मैंने मजाक किया था,,,,,, ( अब यहाँ पर मजाक किस से करून,,? )
आपने सही कहा के शन्नो जी ने इतनी जल्दी ही जो दोहे में जानकारी हासिल की है वो अपने आप में एक बड़ी बात है,,,,,,,,शुरू में कैसे कहा था के डरते डरते क्लास में झांका है बस,,,,,,
और आज हमारी मोनिटर बना दी गयीं,,,,,,,,,,
नहीं,,,मोनिटर तो बाल उद्यान की हैं,,,यहाँ तो कक्षा-नायिका हैं ,,,
पर हैं विनम्र,,,,इसमें दो राय नहीं,,,,,
और बहुत मेहनती भी,,,
par wo angrej waalaa dohaa samjhaayen,,,,
chaahe aap ,,,chaahe dohaa naayikaa,,,,,
एक कुण्डली प्रस्तुत है -
सूरज ढलता देख के, चन्दा ढाँढस देय
दर्पण आँखों में चुभे, बिटिया यौवन देय
बिटिया यौवन देय, समय जब पीछे छूटे
अपने से जज्बात, सरल मन स्रोता फूटे
मावस की हो रात, बने तब बिटिया धीरज
बादल चाहे छाय, निकलता देखो सूरज।
इस दोहे को लिखा पर बाद में मन संतुष्ट नहीं हुआ तो इसकी जरा क़तर-ब्योंत की. अब यहाँ आपकी सेवा में उपस्थित है आप की दया-दृष्टि के लिये.
मिल बैठें हैं 'सलिल'मनु, दोहा आयें रास
आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास
ओटन लगे कपास, यहाँ दोहे की कक्षा
अँधा बैठ सोच रहा, कर ईश्वर रक्षा
डर गयी अब शन्नो, बन बैठे मनु बीरबल
अब खिचड़ी पकेगी, दोनों साथ बैठे मिल.