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रविवार, 19 जनवरी 2020

दोहा गाथा सनातन- पाठ ५ २८ जनवरी / ७ फरवरी २००९

Saturday, February 07, 2009

दोहा गाथा सनातन- पाठ 5 - दोहा भास्कर काव्य नभ


दोहा भास्कर काव्य नभ, दस दिश रश्मि उजास ‌
गागर में सागर भरे, छलके हर्ष हुलास ‌ ‌

आगामी पाठों में रस, भाव, संधि, बिम्ब, प्रतीक, शैली, अलंकार आदि काव्य तत्वों की चर्चा करने का उद्देश्य यह है कि पाठक दोहों में इन तत्वों को पहचानने और सराहने के साथ दोहा रचते समय इन तत्वों का समावेश कर सकें ‌

रसः काव्य को पढ़ने या सुनने से मिलनेवाला आनंद ही रस है। काव्य मानव मन में छिपे भावों को जगाकर रस की अनुभूति कराता है। भरत मुनि के अनुसार "विभावानुभाव संचारी संयोगाद्रसनिष्पत्तिः" अर्थात् विभाव, अनुभाव व संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। रस के ४ अंग स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव व संचारी भाव हैं-

स्थायी भावः मानव ह्र्दय में हमेशा विद्यमान, छिपाये न जा सकनेवाले, अपरिवर्तनीय भावों को स्थायी भाव कहा जाता है।
रस श्रृंगार हास्य करुण रौद्र वीर भयानक वीभत्स अद्भुत शांत वात्सल्य
स्थायी भाव रति हास शोक क्रोध उत्साह भय घृणा विस्मय निर्वेद संतान प्रेम

विभावः
किसी व्यक्ति के मन में स्थायी भाव उत्पन्न करनेवाले कारण को विभाव कहते हैं। व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति भी विभाव हो सकती है। ‌विभाव के दो प्रकार आलंबन व उद्दीपन हैं। ‌
आलंबन विभाव के सहारे रस निष्पत्ति होती है। इसके दो भेद आश्रय व विषय हैं ‌
आश्रयः जिस व्यक्ति में स्थायी भाव स्थिर रहता है उसे आश्रय कहते हैं। ‌शृंगार रस में नायक नायिका एक दूसरे के आश्रय होंगे।‌

विषयः जिसके प्रति आश्रय के मन में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न हो, उसे विषय कहते हैं ‌ "क" को "ख" के प्रति प्रेम हो तो "क" आश्रय तथा "ख" विषय होगा।‌

उद्दीपन विभाव- आलंबन द्वारा उत्पन्न भावों को तीव्र करनेवाले कारण उद्दीपन विभाव कहे जाते हैं। जिसके दो भेद बाह्य वातावरण व बाह्य चेष्टाएँ हैं। वन में सिंह गर्जन सुनकर डरनेवाला व्यक्ति आश्रय, सिंह विषय, निर्जन वन, अँधेरा, गर्जन आदि उद्दीपन विभाव तथा सिंह का मुँह फैलाना आदि विषय की बाह्य चेष्टाएँ हैं ।

अनुभावः आश्रय की बाह्य चेष्टाओं को अनुभाव या अभिनय कहते हैं। भयभीत व्यक्ति का काँपना, चीखना, भागना आदि अनुभाव हैं। ‌

संचारी भावः आश्रय के चित्त में क्षणिक रूप से उत्पन्न अथवा नष्ट मनोविकारों या भावों को संचारी भाव कहते हैं। भयग्रस्त व्यक्ति के मन में उत्पन्न शंका, चिंता, मोह, उन्माद आदि संचारी भाव हैं। मुख्य ३३ संचारी भाव निर्वेद, ग्लानि, मद, स्मृति, शंका, आलस्य, चिंता, दैन्य, मोह, चपलता, हर्ष, धृति, त्रास, उग्रता, उन्माद, असूया, श्रम, क्रीड़ा, आवेग, गर्व, विषाद, औत्सुक्य, निद्रा, अपस्मार, स्वप्न, विबोध, अवमर्ष, अवहित्था, मति, व्याथि, मरण, त्रास व वितर्क हैं।

रस
शृंगार संयोगः
तुमने छेड़े प्रेम के, ऐसे राग हुजूर
बजते रहते हैं सदा, तन मन में संतूर
---अशोक अंजुम, नई सदी के प्रतिनिधि दोहाकार

वियोगः
हाथ छुटा तो अश्रु से, भीग गये थे गाल ‌
गाड़ी चल दी देर तक, हिला एक रूमाल
चंद्रसेन "विराट", चुटकी चुटकी चाँदनी

हास्यः
आफिस में फाइल चले, कछुए की रफ्तार ‌
बाबू बैठा सर्प सा, बीच कुंडली मार
राजेश अरोरा"शलभ", हास्य पर टैक्स नहीं

व्यंग्यः
अंकित है हर पृष्ठ पर, बाँच सके तो बाँच ‌
सोलह दूनी आठ है, अब इस युग का साँच
जय चक्रवर्ती, संदर्भों की आग

करुणः
हाय, भूख की बेबसी, हाय, अभागे पेट ‌
बचपन चाकर बन गया, धोता है कप प्लेट
डॉ. अनंतराम मिश्र "अनंत", उग आयी फिर दूब

रौद्रः
शिखर कारगिल पर मचल, फड़क रहे भुजपाश ‌
जान हथेली पर लिये, अरि को करते लाश
सलिल

वीरः
रणभेरी जब जब बजे, जगे युद्ध संगीत ‌
कण कण माटी का लिखे, बलिदानों के गीत
डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा "यायावर", आँसू का अनुवाद

भयानकः
उफनाती नदियाँ चलीं, क्रुद्ध खोलकर केश ‌
वर्षा में धारण किया, रणचंडी का वेश
आचार्य भगवत दुबे, शब्दों के संवाद

वीभत्सः
हा, पशुओं की लाश को, नोचें कौए गिद्ध ‌
हा, जनता का खून पी, नेता अफसर सिद्ध
सलिल

अद्भुतः
पांडुपुत्र ने उसी क्षण, उस तन में शत बार ‌
पृधक पृधक संपूर्ण जग, देखे विविथ प्रकार
डॉ. उदयभानु तिवारी "मधुकर", श्री गीता मानस

शांतः
जिसको यह जग घर लगे, वह ठहरा नादान ‌
समझे इसे सराय जो, वह है चतुर सुजान
डॉ. श्यामानंद सरस्वती "रौशन", होते ही अंतर्मुखी

वात्सल्यः
छौने को दिल से लगा, हिरनी चाटे खाल ‌
पान करा पय मनाती, चिरजीवी हो लाल
सलिल

भक्तिः
दूब दबाये शुण्ड में, लंबोदर गजमुण्ड ‌
बुद्धि विनायक हे प्रभो!, हरो विघ्न के झुण्ड
भानुदत्त त्रिपाठी "मधुरेश", गोहा कुंज

17 कविताप्रेमियों का कहना है :

Shailesh Jamloki का कहना है कि -
दोहो के इतने सुन्दर उदहारण एक अच्छे व्याख्यान के बाद पढ़ कर मन हर्षित हो गया

बहुत अच्छा लगा..

सादर
शैलेश
Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -
वाह गजब का ज्ञान है, मैंने छंद के बारे में काफी पढ़ा है, दोहे के बारे में भी, दोहे लिखता भी हूँ......... पर एक बात है की वो सब तो दस प्रतिशत ही था असली चीज़, इतने विस्तार से तो अब आई है.... हिंद युग्म इसे लिए बधाई का ही नहीं नमन का पात्र है....... लीजिये इतनी देर में एक दोहा भी आ गया:

हिंद युग्म की भेंट है, सब कवियों को आज
दोहा लिखना सीखिए, छंदों का सरताज
manu का कहना है कि -
आचार्य को प्रणाम,
इस पाठ में क्यूंकि गिनती नही है...इसलिए ये मेरे जैसे के लिए बहुत ही मजेदार है....बस दोहे है ..बिना जमा घटा किए ...मजा अ गया.......और एक बात जो मैं कुछ दिन से बके जा रहा हूँ..........

कविता को ही काटता, ले कविता की आड़ ,
कवि कहाँ करते हैं यूँ, कविता से खिलवाड़....

छंद, लेय और भाव बिन,कविता है बेजान
जीवन-राग नकार रहा, कैसा है नादान ,
manu का कहना है कि -
amaa miyaan,
pahle kamment to main de rahaa thaa.......ek aur dohaa bannaane baitha aur aap aa gaye......kyaa haseen itefaaq hai....
isme bhi mazaa a gayaa.........

manu.....
विश्व दीपक का कहना है कि -
salil ji,
aapne bahut hi upyogi jaankaari di hai.

ras ke chaar angon ke baare mein jaanane ko mila.....isi tarah dheere-dheere chhand aur doha likhne ki vidhiyaan bhi seekh loonga.

bahut bahut shukriya.

- Vishwa Deepak
Pooja Anil का कहना है कि -
आचार्य सलिल जी ,

आपने बहुत ही उपयोगी जानकारी उदाहरणों के साथ दी है. पाठ भी छोटा होने से जल्दी समझ में आ गया . और साथ में बहुत से भावों के उदाहरण दोहे , दोहा के विस्तृत क्षेत्र को समझाने में बड़े सहायक हुए हैं. बहुत बहुत धन्यवाद.


निरख निरख छवि कान्हा की,उमड़े स्नेह ममत्व ,
देख देख हर्षाये माता, भूली जगत समस्त .

धन्यवाद
पूजा अनिल

January 28, 2009

दोहा गोष्ठी : 5 - शब्द-शब्द दोहा हुआ


दोहा लें मन में बसा, पाएंगे आनंद.
झूम-झूम कर गाइए, गीत, कुण्डली छंद.


दोहा कक्षा की घोषणा के साथ ७ पत्र प्रेषकों में से . श्री भूपेन्द्र राघव ने मानकों के अनुसार २ दोहे लिखकर श्री गणेश किया.

पाठ १ में हमने भाषा, व्याकरण, वर्ण, स्वर, व्यंजन एवं शब्द की चर्चा की. पाठ के अंत में पारंपरिक दोहे थे जिनका पाठांतर श्री रविकांत पाण्डेय ने भेजा. श्री दिवाकर मिश्र ने १ संस्कृत दोहा भेजकर पत्र-मंजूषा की गरिमा-वृद्धि की.

गोष्ठी १ के आरंभ में सभी सहभागियों के नाम कुछ दोहे थे जिन्हें आपने सराहा. सर्व माननीय मनुजी, तपन जी, देवेन्द्र जी, शोभा जी, सुर जी, सीमा जी, एवं निखिल जी ने दोहे भेजकर अपनी सहभागिता से गोष्ठी को जीवंत बनाया.

पाठ २ में हमने छंद, मुक्तक छंद, दोहा और शेर की बात की. पाठक पंचायत से सीमाजी एवं शोभा जी के अलावा सब गोल हो गए. वे भी जिन्होंने नियमित रहने का वादा किया था. विविध मनः स्थितियों के दोहों से पत्र-सत्र का समापन हुआ.

गोष्ठी २ में कबीर, तुलसी, सूर, रत्नावली तथा रहीम के दोहे देते हुए पाठकों से उनकी पसंद के दोहे मांगे गए. पाठकों ने कबीर एवं रहीम के दोहे भेजे. पूजा जी ने दोहा, छंद व श्लोक में अन्तर जानना चाहा.

पाठ ३ उच्चार पर केंद्रित रहा. निस्संदेह यह पाठ सर्वाधिक तकनीकी तथा कुछ कठिन भी है. इसे न जानने पर दोहा ही नहीं किसी भी छांदस रचना का स्रजन कठिन होगा. इसे जान लें तो छंद सिद्ध होने में देर नहीं लगेगी. आपसे एक दोहे की मात्रा गिनने के लिए कहा गया था किंतु किसी ने भी यह कष्ट नहीं किया. यदि आप सहयोग करते तो यह पता चलता की आपने कहाँ गलती की? तब उसे सुधार पाना सम्भव होता. श्री विश्व दीपक 'तनहा' ने मात्र संबन्धी एक प्रश्न कर इस सत्र को उपयोगी बना दिया.

गोष्ठी ३ में नव वर्ष स्वागत के पश्चात् समयजयी दोहाकारों कबीर एवं रहीम के दर्शन कर हम धन्य हुए. पूजा जी व 'तनहा जी' के प्रश्नों का उत्तर दिया गया. अंत में आपके दोहों को कुछ सुधार कर प्रस्तुत किया गया ताकि आप उनके मूल रूप को देखकर समझ सकें कि कहाँ परिवर्तन किया गया और उसका क्या प्रभाव हुआ. पत्र-सत्र से रंजना व मनु जी के अलावा सब गोल हो गए.

आपको सबक करने के लिए अधिक समय मिले यह सोचकर शनिवार को गोष्ठी की जगह पाठ और बुधवार को पाठ की जगह गोष्ठी की योजना बनाई गयी. गोष्ठी ४ में कोई प्रश्न न होने के कारण दोहा की काव्यानुवाद क्षमता का परिचय देते हुए अंत में एक लोकप्रिय दोहा दिया गया. पत्र-सत्र में आपकी शिकायत है कि पाठ कठिन हैं. मैं सहमत हूँ कि पहली बार पढनेवालों को कुछ कठिनाई होगी, जो पढ़कर भूल चुके हैं उन्हें कम कठिनाई होगी तथा जो उच्चारण या मात्रा गिनती के आधार पर रचना करते हैं उन्हें सहज लगेगा. कठिन को सरल बनने का एकमात्र उपाय बार-बार अभ्यास करना है, दूर भागना या अनुपस्थित रहना नहीं.

प्रश्न आपके बूझकर, दोहे दिए सुधार.
मात्रा गिनने में नहीं, रूचि- छोडें सरकार.


तनहा जी के प्रश्न का उत्तर दे दिए जाने के बाद भी उत्तर न मिलने की शिकायत बताती है कि ध्यानपूर्वक अध्ययन नहीं हुआ. इतिहास बताने का कोई इरादा नहीं है. पुराने दोहे बताने का उद्देश्य भाषा के बदलाव से परिचित कराना है. खड़ी हिन्दी में लिखते समय अन्य बोली की विभक्तियों, कारकों या शब्दों का प्रयोग अनजाने भी हो तो रचना दोषपूर्ण हो जाती है. आप यह गलती न करें यह सोचकर पुराने दोहे दिए जा रहे हैं.बार-बार दोहे पढने से उसकी लय आपके अंतर्मन में बैठ जाए तो आप बिना मात्रा गिने भी शुद्ध दोहा रच सकेंगे. दोहा के २३ प्रकार हैं. इन दोहों में विविध प्रकार के दोहे हैं जिनसे आप अनजाने ही परिचित हो रहे हैं. जब प्रकार बताये जायेंगे तो आपको कम कठिनाई होगी. डॉ. अजित गुप्ता की टिप्पणी ने संतोष दिया अन्यथा लग रहा था कि पूरा प्रयास व्यर्थ हो रहा है.

पाठ ४ में उच्चार चर्चा समाप्त कर गणसूत्र दिया गया है. आप पाठ ३ व ४ को हृदयंगम कर लें तो दोहा ही नहीं कोई भी छंद सिद्ध होने में देर नहीं लगेगी. आपने पाठ लंबे होने की शिकायत की है. 'एक कहे दूजे ने मानी, कहे कबीर दोनों ज्ञानी'

बात आपकी मान ली, छोटे होंगे पाठ.
गप्प अधिक कम पढ़ाई, करिए मिलकर ठाठ.


गणतंत्र दिवस पर मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति इंदौर के भवन में इंदौर के साहित्यकारों के साथ ध्वज वन्दन किया. संगणक पर हिन्दयुग्म और दोहा पाठ सभी को दिखाया. श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार चंद्रसेन 'विराट', सिद्ध दोहाकार प्रभु त्रिवेदी, सदाशिव कौतुक तथा अन्यों ने इसे सराहते हुए कहा कि इसमें पूरा पुस्तकालय छान कर सागर को गागर में भर दिया गया है. जिस दोहे को सीखने-साधने में बरसों लगते थे वह अब कुछ दिनों में संभव हो गया है.

आपको यह भी बता दूँ कि मैं पेशे से सिविल इंजिनियर हूँ. दिन भर नीरस यांत्रिकी विषयों से सर मारने के बाद रोज ४-५ घंटे बैठकर अनेक पुस्तकें पढ़कर इस माला की कडियाँ पिरोता हूँ. हर पाठ या गोष्ठी की सामग्री लिखने के पूर्व प्रारम्भ से अंत तक की पूरी सामग्री इसलिए पढ़ता हूँ कि बीच में कोई नया दोहाप्रेमी जुड़ा हो, कुछ पूछा हो तो वह अनदेखा न रह जाए. मैं मध्यम मात्र हूँ. यदि आप और दोहे के बीच बाधक हूँ तो बता दें ताकि हट जाऊं और कोई अन्य समर्थ माध्यम आकर आप और दोहे को जोड़ दे.

केवल श्रम से सफलता, पा सकते हैं मीत.
गति-यति, लय, उच्चार से, सधता दोहा-गीत.

हर अक्षर दोहा हुआ, शब्द-शब्द है गीत.
नेह निनादित नर्मदा, नहा 'सलिल' पा प्रीत
.

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