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शनिवार, 25 जनवरी 2020

दोहा सलिला

सामयिक दोहा सलिला
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गाँधी जी के नाम पर, नकली गाँधी-भक्त
चित्र छाप पल-पल रहे, सत्ता में अनुरक्त
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लालू के लल्ला रहें, भले मैट्रिक फेल
मंत्री बन डालें 'सलिल', शासन-नाक नकेल
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ममता की समता करे, किसमें है सामर्थ?
कौन कर सकेगा 'सलिल', पल-पल अर्थ-अनर्थ??
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बाप बाप पर पुत्र है, चतुर बाप का बाप
धूल चटाकर चचा को, मुस्काता है आप
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साइकिल-पंजा मिल हुआ, केर-बेर का संग
संग कमल-हाथी मिलें, तभी जमेगा रंग
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हर दल ने दलदल मचा, साधा केवल स्वार्थ
हत्या कर जनतंत्र की, कहते- 'है परमार्थ'
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निर्मल मन देखे सदा, निर्मलता चहुँ ओर
घोर तिमिर से ज्यों उषा, लाये उजली भोर
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