कार्यशाला
दोहा
धूप सुनहली साँझ की, कहती मन की बात।
धूप सुनहली साँझ की, कहती मन की बात।
सर्दी खेले खेल अब, कर न सकेगी घात।। - चन्द्रकान्ता
रोला
कर न सकेगी घात, मात फिर भी दे देगी
सूर्य-रश्मि को हार चंद्र-कांता दे देगी
चकित सलिल संजीव हो, देखे सराहे रूप
अनुपम है यदि चांदनी तो अपूर्व है धूप - संजीव
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