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शनिवार, 25 जनवरी 2020

अभियान

अभियान एवं प्रसंग के संयुक्त तत्वावधान में
‘‘बुधिया लेता टोह’’  गीत-नवगीत संग्रह गीतकार बसंत कुमार शर्मा
कृति लोकार्पण समारोह एवं काव्य संगोष्ठी
दिनांक : २६-१-२०२०     

प्रथम सत्र - लोकार्पण समारोह  
संचालन - विनोद नयन            

३.००  - अतिथिगणों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं सरस्वती पूजन    
३.०५ - सरस्वती वंदना -  अर्चना गोस्वामी/श्रीमती मिथलेश बड़गैंया/डॉ0 रानू रूही/विनीता श्रीवास्तव  

३.१०  - अतिथि स्वागत/सम्मान/परिचय - श्री विनोद नयन 
प्रो. कपिलदेव मिश्र कुलपति जी   - श्रीमती मंजरी शर्मा / जनाब मकबूल अली 
आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी - श्रीमती छाया सक्सेना / डॉ अनिल कोरी 
आचार्य भगवत दुबे जी - श्रीमती मिथलेश बड़गैंया / श्री आलोक पाठक
डॉ. सुरेश कुमार वर्मा जी - श्रीमती विनीता विधि जी / श्री अविनाश ब्यौहार
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी - श्रीमती विनीता श्रीवास्तव / श्री राजेंद्र मिश्रा  
डॉ. रामगरीब पांडे ‘विकल’ जी - श्रीमती कृष्णा राजपूत / श्री इंद्र बहादुर श्रीवास्तव
          श्री बसंत कुमार शर्मा जी           - श्रीमती मधु जैन / प्रो. शोभित वर्मा    

संस्था परिचय अभियान - श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव / श्री अखिलेश खरे 
संस्था परिचय प्रसंग - डॉ रानू राहू / श्री डॉ अनिल कोरी

३.२०  - पुस्तक लोकार्पण 
३.२५  - पुस्तक परिचय/कृति चर्चा - बसंत कुमार शर्मा 
३.३०  - समालोचना -
३.३०  - डॉ. राम गरीब पांडेय  ‘विकल’
३.४० - आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’  
३.५० - आचार्य भगवत दुबे

विशिष्ट वक्ता - डॉ. सुरेश कुमार वर्मा  
- मुख्य अतिथि का उद्बोधन प्रो. कपिल देव मिश्र    
- अध्यक्षीय उदबोधन डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी 
आभार - श्री अखिलेश खरे   

स्वल्पाहार  ४. ३५ से ५.००  बजे तक 

द्वितीय सत्र - काव्य संगोष्ठी 
५ बजे से - ७ बजे तक

अध्यक्षता - श्री मोहन शशि - स्वागत श्री विनोद नयन / श्री संजीव वर्मा ‘सलिल’
विशिष्ट अतिथि - श्री नवीन चतुर्वेदी - स्वागत डॉ. रानू रूही / श्री हरिसहाय पांडेय
आभार -  प्रो. शोभित वर्मा
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अतिथि परिचय

आचार्य कृष्णकान्त चतुर्वेदी 

संस्कारधनी जबलपुर में १९ दिसंबर १९३७ को जन्मे, भारतीय मनीषा के श्रेष्ठ प्रतिनिधि, विद्वता के पर्याय, सरलता के सागर, वाग्विदग्धता के शिखर आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी के व्यक्तित्व पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की निम्न पंक्तियाँ सटीक बैठती हैं- 

जितने कष्ट-कंटकों में है जिसका जीवन सुमन खिला  
गौरव गंध उसे उतना ही यत्र-तत्र-सर्वत्र मिला।।

कालिदास अकादमी उज्जैन के निदेशक, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में संस्कृत, पाली, प्रकृत विभाग के अध्यक्ष व् आचार्य पदों की गौरव वृद्धि कर चुके, भारत सरकार द्वारा शास्त्र-चूड़ामणि मनोनीत किये जा चुके, अखिल भारतीय प्राच्य विद्या परिषद् के सर्वाध्यक्ष निर्वाचित किये जा चुके, महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा प्राच्य विद्या के विशिष्ट विद्वान के रूप में सम्मानित, राजशेखर अकादमी के निदेशक आदि पदों की शोभा वृद्धि कर चुके आचार्य जी के मार्गदर्शन में ४० छात्रों को पीएच. डी. तथा २ छात्रों ने डी.लिट्. करने का सौभाग्य मिला है। राधा भाव सूत्र, आगत का स्वागत, अनुवाक, अथातो ब्रम्ह जिज्ञासा, वेदांत तत्व समीक्षा, बृज गंधा, पिबत भागवतम आदि अबहुमूल्य कृतियों की रचनाकर आचार्य जी ने भारती के वांग्मय कोष की वृद्धि की है। जगद्गुरु रामानंदाचार्य सम्मान, पद्मश्री श्रीधर वाकणकर सम्मान, अखिल भारतीय कला सम्मान, ज्योतिष रत्न सम्मान, विद्वत मार्तण्ड, विद्वत रत्न, सम्मान, स्वामी अखंडानंद सम्मान, युगतुलसी रामकिंकर सम्मान, ललित कला सम्मान अदि से सम्मानित किये जा चुके आचार्य श्री संस्कारधानी ही नहीं देश के गौरव पुत्र हैं। आप अफ्रीका, केन्या, आदि देशों में भारतीय वांग्मय व् संस्कृति की पताका फहरा चुके हैं। आपकी उपस्थिति व आशीष हमारा सौभाग्य है। =

प्रो. कपिलदेव मिश्र - कुलपति रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय 

प्रो. मिश्र सहज सरल सौम्य व्यक्तित्व के धनी एवं प्रखर वक्ता होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक के रूप में जाने जाते है। आपको हिंदी की विशिष्ट सेवा के लिए विक्रमशिला हिंदी विश्वविद्यालय भागलपुर ने उन्हें डी.लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। शिक्षा रत्न, बेस्ट सिटीजंस आफ इंडिया, इंदिरा गांधी शिरोमणि, भारत शिक्षा रत्न व राष्ट्रीय विद्या गौरव गोल्ड एवार्ड से प्रो. मिश्र सम्मानित किये गए हैं। आप विश्वविद्यालयों में अन्य प्रशासनिक दायित्वों को भी निभा चुके हैं। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय को कुलपति रूप में अपनी कर्मठता, दूरदृष्टि तथा नवाचार से आपने नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है।  

कपिलदेव जी मिश्र हैं, शिक्षा गुरु निष्णात
श्रेष्ठ प्रशासन दक्षता, दूर दूर विख्यात 
करें समस्याएँ सभी दूर, जगा नव आस
नव उन्नति हर दिन मिले, निश-दिन करें प्रयास  
  


प्रो. मिश्र की गौरवमय उपस्थिति से यह नगर, मंच और हम सब धन्यता अनुभव कर रहे हैं। 

डॉ. सुरेश कुमार वर्मा 

श्रद्धेय डॉ. सुरेश कुमार वर्मा नर्मदांचल की साधनास्थली संस्कारधानी जबलपुर के गौरव हैं। "सादा जीवन उच्च विचार" के सूत्र को जीवन में मूर्त करनेवाले डॉ. वर्मा अपनी विद्वता के सूर्य को सरलता व् विनम्रता के श्वेत-श्याम मेघों से आवृत्त किये रहते हैं। २० दिसंबर १९३८ को जन्मे डॉ. वर्मा ने प्राध्यापक हिंदी, विभागाध्यक्ष हिंदी, प्राचार्य तथा अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा के पदों की शोभा वृद्धि कर शुचिता और समर्पण का इतिहास रचकर ऋषि परंपरा को जीवंत रखा है। 

सरल सहज शब्दर्षि, ज्ञान के सागर, समय-धरोहर हैं 
अनुपम है पांडित्य आपका, रचनाएँ युग का स्वर हैं    

आपने समालोचना कृति ‘डॉ. राम कुमार वर्मा की नाट्यकला’ तथा भाषा विज्ञान का अनुपम ग्रंथ ‘हिंदी अर्थान्तर न्यास’ रचकर ख्याति अर्जित की। नाट्य कृति ‘निम्न मार्गी’ व ‘दिशाहीन’ तथा उपन्यास  ‘मुमताज महल’, ‘रेशमां’, ‘सबका मालिक एक’ तथा ‘महाराज छत्रसाल’ कहानी संग्रह ‘जंग के दरवाजे पर’ तथा ‘मंदिर एवं अन्य कहानियाँ’ निबंध संग्रह ‘करमन की गति न्यारी’, ‘मैं तुम्हारे हाथ का लीला कमल हूँ’ आपके अनमोल ग्रन्थ है। इन ग्रंथों से आपने बहुआयामी रचनाधर्मिता व् सृजन सामर्थ्य की पताका फहराई है। आपकी उपस्थिति हमारा सौभाग्य है।  

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’  
सनातन सलिला नर्मदा तीर पर मंडला नगर में २० अगस्त १९५२ को जन्मे आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी का नाम अंतर्जाल पर हिंदी साहित्य जगत में पारंपरिक एवं नवीन छंदोंके सृजन व शोध-समालोचना, पत्रिकाओं व् समरिकाओं के संपादन हेतु अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। गूगल पर उनके लिखे दो लाख से अधिक पृष्ठ उपलब्ध हैं। अपनी बुआ महीयसी महादेवी वर्मा तथा माँ स्व. शांति देवी से विरासत में प्राप्त संस्कारों तथा सृजन प्रतिभा संपन्न सलिल जी अंतर्जाल पर ३०० से अधिक रचनाकारों को हिंदी भाषा व्याकरण तथा पिंगल का शिक्षण दे चुके हैं। आपने ५०० से अधिक नए छंदों का अन्वेषण कर हिंदी को समृद्ध किया है। आपकी अंतरजाल पत्रिका दिव्य नर्मदा की पाठक संख्या २४ लाख से अधिक है।  'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह, 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविता संग्रह, काल है संक्रांति का व सड़क पर नवगीत संग्रह तथा भूकंप के साथ जीना सीखें लोकोपयोगी तकनीकी पुस्तक आपकी बहु चर्चित कृतियाँ हैं। ‘’काल है संक्रांति का’’ को हरिशंकर सम्मान तथा ‘’सड़क पर’’ को अभिव्यक्ति विश्वम सम्मान से सम्मानित किया गया है। आपके तकनीकी लेख “वैश्विकता के निकष पर भारतीय यांत्रिकी संरचनाएँ” को इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स द्वारा अखिल भारतीय द्वितीय श्रेष्ठता पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है। प्रो. शरद नारायण खरे के शब्दों में- 
जिसने रौशन कर दिया, पूरा मध्य प्रदेश  
वह वर्मा संजीव हैं, जाने सारा देश 
करते अक्षर साधना, विनत भाव से नित्य 
इसीलिए साहित्य के, सलिल हुए आदित्य  
     

आचार्य भगवत दुबे 

संस्कारधानी जबलपुर में १८ अगस्त १९४३ को जन्मे आचार्य भगवत दुबे गद्य-पद्य की विभिन्न विधाओं में दक्ष हैं। वे आम आदमी की संवेदना को कागज पर उतारने में माहिर हैं।  आपने महाकाव्य दधीचि,दोहा संग्रह शब्दों के संवाद, बुंदेली दोहे व साँसों के संतूर, कहानी संग्रह दूल्हादेव, गीत संग्रह स्मृति गंधा, अक्षर मंत्र, हरीतिमा, रक्षाकवच, संकल्परथी, बजे नगाड़े काल के, वनपाँखी, जियो और जीने दो, विष कन्या, शंखनाद, प्रणय ऋचाएं, कांटे हुए किरीट, करुणा यज्ञ, शब्द विहग, हिंदी तुझे प्रणाम, हिरन सुगंधों के, हम जंगल के अमलतास, अक्कास-बक्कड़, अटकन चटकन, छुपन छुपाई, नन्हें नटखट, चुभन, शिकन, घुटन, साईं की लीला अपार, माँ ममता की मूर्ति, गीत स्वाभिमान के, फागों में लोक रंग, जनक छंद की छवि छटा, हाइकु रत्न, पारसमणि, ताँका बांका छंद है, गौरव पुत्र, चिंतन के चौपाल, कर्म वीर, हिंदी के अप्रतिम सर्जक, लोकमंजरी आदि ४४ पुस्तकों का सृजन किया है । आपने अनेक पत्रिकाओं, स्मारिकाओं व् संकलनों के संपादन किया है। । आपके साहित्य पर छात्र छात्रायें एम.फिल और पी-एच.डी. कर रहे हैं।

भगवत कृपा प्रसाद हैं, भगवत दुबे मनीष 
शोभा हिंदी जगत की, सचमुच शब्द-महीश  

डा. रामगरीब पाण्डेय ‘विकल’

२ दिसम्बर १९६० को , चुरहट (जिला सीधी) मध्यप्रदेश में जन्में डॉ. रामगरीब पण्डे ‘विकल’ दूरसंचार विभाग में लेखाधिकारी होते हुए भी हिंदी साहित्य को समृद्ध करने की दिशा में निरंतर सक्रिय व् सफल हैं। हिंदी साहित्य में शोधोपाधि प्राप्त विकल जी ने हिन्दी कविता, गीत, ग़ज़ल के अलावा विविध विषयों पर निबन्ध लेखन किया है।   रीवांचल की लोकभाषा ‘बघेली’ में विकल जी का साहित्य सृजन उल्लेखनीय है। ‘बदलते मौसम के इन्तजार में’ तथा ‘सूरज की मुक्ति के लिए’ आपके काव्य संग्रह हैं। आपको ‘बदलते मौसम के इन्तजार में’ के लिए मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी से प्रादेशिक ‘श्रीकृष्ण सरल’ कृति पुरस्कार २०१० प्राप्त हुआ है। नवोदितों को साहित्य साधना के प्रति प्रेरित करने व मार्गदर्शन करने में प्रवृत्त विकल जी  इसी माह ३१ जनवरी सेवानिवृत हो रहे हैं। 

अविकल धीरज के धनी, रामगरीब अमीर 
सतत सर्जन कर हर रहे, हिंदी माँ की पीर 


श्री बसंत शर्मा 

वीर भूमि राजस्थान के जोधपुर जिले में स्मृति शेष श्रीमती कमलादेवी शर्मा तथा स्मृतिशेष दौलतराम शर्मा के आत्मज श्री बसंत शर्मा भारतीय रेल यातायात सेवा में ......  पर पर सेवारत हैं। गुरु गंभीर शासकीय दायित्व निर्वहन के साथ निरंतर हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि करने हेतु समर्पित शर्मा जी के दोहे विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर द्वारा शांति-राज पुस्तक माला के अंतर्गत प्रकाशित दोहा शतक मंजूषा के प्रथम भाग दोहा-दोहा नर्मदा में संकलित किये जाकर प्रशंसित हुए हुए हैं। बुधिया बैठा टोह में आपका प्रथम नवगीत संग्रह है। अभियान संस्था के अध्यक्ष श्री बसंत शर्मा हिंदी के विविध छंदों, मुक्तिका, हाइकु आदि का लेखन कर प्रशंसित हो रहे हैं। हिंदी में अधिकतम संभव विभागीय कार्य व् गतिविधियां संचालित कर रहे शर्मा जी से हिंदी साहित्य जगत को बहुत आशा है। 

हिंदी के प्रति समर्पित, वीरभूमि के पूत 
आम्र मंजरी सम खिले, लेकर महक अकूत 
छवि बसंत की बिखेरें, रच दोहे नवगीत 
सलिल पान सम तृप्ति दें, भर ग़ज़लों में प्रीत  


श्री मोहन शशि 

संस्कारधानी जबलपुर के पत्रकार जगत में अपनी कर्मठता, समर्पण तथा दक्षता के लिए जाने जाते मोहन शशि जी का जन्म १ अप्रैल १९३७ को हुआ। १९५६ से २०१८ तक प्रदेश के श्रेष्ठ समाचार पत्रों नवभारत तथा दैनिक भास्कर को शीर्ष पर पहुँचाने में शशि जी का योगदान असाधारण है। शशिजी १९६२ में वर्ल्ड यूथ कैम्प युगोस्लाविया में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के  सचिव के रूप में सहभागिता तथा हिंदी काव्य पथ हेतु 'उदारनिक पदक' से सम्मानित किये जा चुके हैं।  सरोज, तलाश एक दाहिने हाथ की, राखी नाहने आई, हत्यारी रात, शक्ति साधना, दुर्गा महिमा, अमिय, बेटे से बेटी भली तथा जाग बुंदेला जाग बुंदेली आपकी बहुचर्चित साहित्यिक कृतियाँ हैं।

पत्रकारिता क्षेत्र के, प्रतिभाशाली रत्न 
मोहन शशि हैं शिखर पर, किये अहर्निश यत्न
हर बाधा संकट गया, हार- न मानी हार
कीर्तिमान रच ‘मिलन’ से, देकर पाया प्यार         

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