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मंगलवार, 21 जनवरी 2020



गले मिले दोहा यमक

***
अनुक्रम

वंदन
दोहा
यमक

***

वंदन

गुरु गुर दे कर तारता, किंतु न करता चाह
गुरुवर वरकर शिष्य को, देते कृपा-पनाह
*
गले मिले दोहा यमक, गणपति दें आशीष।
हो समृद्ध गणतंत्र यह, गण-पति बने मनीष।।
*
वीणावादिनि शत नमन, साध सकूँ कुछ राग ।
वीणावादिनि है विनत, मन में ले अनुराग। ।
*
अक्षर क्षर हो दे रहा, क्षर को अक्षर ज्ञान।
शब्द ब्रह्म को नमन कर, भव तरते मतिमान।।
*
चित्र गुप्त है चित्र में, देख सके तो देख।
चित्रगुप्त प्रति प्रणत हो, अमिट कर्म का लेख।।
*
मन मथुरा तन द्वारका, नहीं द्वार का काम। 
जाकर भी कब जा सके, मेरे प्रिय घनश्याम।। 
*
मन राधा तन रुक्मिणी, मीरां चाह अनाम.
सूर लखें घनश्याम को, जब गरजें घन-श्याम..
*
वेणु अधर में क्यों रहे, अधर-अधर लें थाम.
तन-मन की समिधा करे, प्राण यज्ञ अविराम..
*
अ-धर अधर पर बाँसुरी, उँगली करे प्रयास.
लय स्वर गति यति धुन मधुर, श्वास लुटाये हास..
*
नीति देव की देवकी, जसुमति मृदु मुस्कान.
धैर्य नन्द, वासुदेव हैं, समय-पूर्व अनुमान..
*
गो कुल का पालन करे, गोकुल में गोपाल.
धेनु रेणु में लोटतीं, गूँजे वेणु रसाल..
*
मार सकी थी पूत ना, मरी पूतना आप.
जयी पुण्य होता 'सलिल', मिट जाता खुद पाप..
*
तृणावर्त के शस्त्र थे, अनगिन तृण-आवर्त.
प्रभु न केंद्र-धुरि में फँसे, तृण-तृण हुए विवर्त..
*
लिए वेणु कर-कालिया, चढ़ा कालिया-शीश.
कूद रहा फन को कुचल, ज्यों तरु चढ़े कपीश..
*
रास न आया रचाना, न ही भुलाना रास.
कृष्ण कहें 'चल रचा ना' रास, न बिसरा हास..
*
कदम-कदम जा कदम चढ़, कान्हा लेकर वस्त्र.
त्रस्त गोपियों से कहे, 'मत नहाओ निर्वस्त्र'..
*
'गया कहाँ बल दाऊ जू?', कान्हा करते तंग.
सुरा पिए बलदाऊ जू, गिरे देख जग दंग..
*
जल बरसाने के लिए, इंद्र करे आदेश.
बरसाने की लली के, प्रिय रक्षें आ देश..
*
गरज रहे बरसे नहीं, आवारा घन श्याम
नहीं अधर में अधर धर, वेणु बजाते श्याम
*
कृष्ण वेणु के स्वर सुने, गोप सराहें भाग
सुन न सके वे जो रहे, श्री के पीछे भाग
*
हल धर कर हलधर चले, हलधर कर थे रिक्त
चषक थाम कर अधर पर, हुए अधर द्वय सिक्त
*
मत नट वर, नटवर वरे, महकी प्रीत कदम्ब.
सँकुच लाजवंती हुई, सहसा आयीं अम्ब.. 
*
बरस-बरस घन बरस कर, करें धरा को तृप्त
गगन मगन बादल नचे, पर नर रहा अतृप्त
*
घर आ नन्द झुला रहे, बाँहों झूले नन्द.
देख यशोदा रीझतीं, दस दिश है आनंद..
*
रखा सिया ने लब सिया, रजक मूढ़-वाचाल.
जन-प्रतिनिधि के पाप से, अवध-ग्रस गया काल..
*
अवध अ-वध-पथ-च्युत हुआ, सच का वध अक्षम्य.
रम्य राम निन्दित हुए, सीता जननि प्रणम्य..
*
चीर कलेजा रख रहीं, सिया आँख पर चीर .
पीर सिया की सलिल थी, राम रहे प्राचीर..
*
सीना चीरें पवनसुत, दिखे राम का नाम.
सीना सीना जानता, कहिये कौन अनाम?
*
रखा सिया ने मुँह सिया, मूढ़ रजक वाचाल.
जन-प्रतिनिधि के पाप से, अवध-ग्रस गया काल..
*
अधर सिया था सिया का  अवध न समझा पीर.
पीर सिया की सलिल थी, राम रहे प्राचीर..
*
अवध अ-वध-पथ-च्युत हुआ, सच का वध अक्षम्य.
रम्य राम निन्दित हुए, रामा रमा प्रणम्य..
*
सर्व नाम हरि के 'सलिल', है सुंदर संयोग.
संज्ञा के बदले हुए, सर्वनाम उपयोग.. 
*
भोग लगा प्रभु को प्रथम, फिर करना सुख-भोग.
हरि को अर्पण किये बिन बनता भोग कुरोग..
*
दोहा

दोहा ने दोहा सदा, भाषा गौ को मीत।
गीत प्रीत के गुँजाता, दोहा रीत पुनीत।।
*
भेंट रहे दोहा-यमक, ले हाथों में हार।
हार न कोई मानता, प्यार हुआ मनुहार।।
*
नीर क्षीर दोहा यमक, अर्पित पिंगल नाग।
बीन छंद, लय सरस धुन, झूम उठे सुन नाग।।
*
गले मिले दोहा-यमक, झपट झपट-लिपट चिर मीत।
गले भेद के हिम शिखर, दमके ऐक्य पुनीत।।
*
ग्यारह-तेरह यति रखें, गुरु-लघु हो पद अंत।
जगण निषिद्ध पदादि में, गुरु-लघु सम यति संत।।
*


यमक

भिन्न अर्थ में शब्द की, हों आवृत्ति अनेक
अलंकार है यमक यह, कहते सुधि सविवेक

पंक्तियों में एक शब्द की एकाधिक आवृत्ति अलग-अलग अर्थों में होने पर यमक अलंकार होता है. यमक अलंकार के अनेक प्रकार होते हैं.
अ. दुहराये गये शब्द के पूर्ण-आधार पर यमक अलंकार के ३ प्रकार १. अभंगपद, २. सभंगपद ३. खंडपद हैं.
आ. दुहराये गये शब्द या शब्दांश के सार्थक या निरर्थक होने के आधार पर यमक अलंकार के ४ भेद १.सार्थक-सार्थक, २. सार्थक-निरर्थक, ३.निरर्थक-सार्थक तथा ४.निरर्थक-निरर्थक होते हैं.
इ. दुहराये गये शब्दों की संख्या व् अर्थ के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है.
*
भिन्न अर्थ में शब्द की, हों आवृत्ति अनेक
अलंकार है यमक यह, कहते सुधि सविवेक
पंक्तियों में एक शब्द की एकाधिक आवृत्ति अलग-अलग अर्थों में होने पर यमक अलंकार होता है. यमक अलंकार के अनेक प्रकार होते हैं.
अ. दुहराये गये शब्द के पूर्ण- आधार पर यमक अलंकार के ३ प्रकार १. अभंगपद, २. सभंगपद ३. खंडपद हैं.
आ. दुहराये गये शब्द या शब्दांश के सार्थक या निरर्थक होने के आधार पर यमक अलंकार के ४ भेद १.सार्थक-सार्थक, २. सार्थक-निरर्थक, ३.निरर्थक-सार्थक तथा ४.निरर्थक-निरर्थक होते हैं.
इ. दुहराये गये शब्दों की संख्या अर्थ के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है.
*
उदाहरण :
१. झलके पद बनजात से, झलके पद बनजात
अहह दई जलजात से, नैननि सें जल जात -राम सहाय
प्रथम पंक्ति में 'झलके' के दो अर्थ 'दिखना' और 'छाला' तथा 'बनजात' के दो अर्थ 'पुष्प' तथा 'वन गमन' हैं. यहाँ अभंगपद यमक अलंकार है.
द्वितीय पंक्ति में 'जलजात' के दो अर्थ 'कमल-पुष्प' और 'अश्रु- पात' हैं. यहाँ सभंग यमक अलंकार है.
*
२. कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय
या खाये बौराय नर, वा पाये बौराय
कनक = धतूरा, सोना -अभंगपद यमक
*
३. या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरैहौं
मुरली = बाँसुरी, मुरलीधर = कृष्ण, मुरली की आवृत्ति -खंडपद यमक
अधरान = पर, अधरा न = अधर में नहीं - सभंगपद यमक
*
४. मूरति मधुर मनोहर देखी
भयेउ विदेह विदेह विसेखी -अभंगपद यमक, तुलसीदास
विदेह = राजा जनक, देह की सुधि भूला हुआ.
५. कुमोदिनी मानस-मोदिनी कहीं
यहाँ 'मोदिनी' का यमक है. पहला मोदिनी 'कुमोदिनी' शब्द का अंश है, दूसरा स्वतंत्र शब्द (अर्थ प्रसन्नता देने वाली) है.
*
६. विदारता था तरु कोविदार को
यमक हेतु प्रयुक्त 'विदार' शब्दांश आप में अर्थहीन है किन्तु पहले 'विदारता' तथा बाद में 'कोविदार' प्रयुक्त हुआ है.
*
७. आयो सखी! सावन, विरह सरसावन, लग्यो है बरसावन चहुँ ओर से
पहली बार 'सावन' स्वतंत्र तथा दूसरी और तीसरी बार शब्दांश है.
*
८. फिर तुम तम में मैं प्रियतम में हो जावें द्रुत अंतर्ध्यान
'तम' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.
*
९. यों परदे की इज्जत परदेशी के हाथ बिकानी थी
'परदे' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.
१०. घटना घटना ठीक है, अघट न घटना ठीक
घट-घट चकित लख, घट-जुड़ जाना लीक
*
११. वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम
वाम हस्त पर वाम दल, 'सलिल' वाम परिणाम
वाम = तांत्रिक पंथ, विपरीत, बाँया हाथ, साम्यवादी, उल्टा
*
१२. नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुँफकार
नाग नाग को नागता, नाग न मारे हार
नाग = हाथी, पर्वत, सर्प, बादल, पर्वत, लाँघता, जनजाति
*
१. झलके पद बनजात से, झलके पद बनजात
अहह दई जलजात से, नैननि सें जल जात -राम सहाय
प्रथम पंक्ति में 'झलके' के दो अर्थ 'दिखना' और 'छाला' तथा 'बनजात' के दो अर्थ 'पुष्प' तथा 'वन गमन' हैं. यहाँ अभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक अलंकार है.
द्वितीय पंक्ति में 'जलजात' के दो अर्थ 'कमल-पुष्प' और 'अश्रु- पात' हैं. यहाँ सभंग पद, सार्थक-सार्थक यमक अलंकार है.
*
२. कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय
या खाये बौराय नर, वा पाये बौराय
कनक = धतूरा, सोना -अभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक
*
३. या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरैहौं
मुरली = बाँसुरी, मुरलीधर = कृष्ण, मुरली की आवृत्ति -खंडपद, सार्थक-सार्थक यमक
अधरान = अधरों पर, अधरा न = अधर में नहीं - सभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक
४. मूरति मधुर मनोहर देखी
भयेउ विदेह विदेह विसेखी -अभंगपद, सार्थक-सार्थक यमक, तुलसीदास
विदेह = राजा जनक, देह की सुधि भूला हुआ.
*
५. कुमोदिनी मानस-मोदिनी कहीं
यहाँ 'मोदिनी' का यमक है. पहला मोदिनी 'कुमोदिनी' शब्द का अंश है, दूसरा स्वतंत्र शब्द (अर्थ प्रसन्नता देने वाली) है.
६. विदारता था तरु कोविदार को
यमक हेतु प्रयुक्त 'विदार' शब्दांश आप में अर्थहीन है किन्तु पहले 'विदारता' तथा बाद में 'कोविदार' प्रयुक्त हुआ है.
*
७. आयो सखी! सावन, विरह सरसावन, लग्यो है बरसावन चहुँ ओर से
पहली बार 'सावन' स्वतंत्र तथा दूसरी और तीसरी बार शब्दांश है.
*
८. फिर तुम तम में मैं प्रियतम में हो जावें द्रुत अंतर्ध्यान
'तम' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.
*
९. यों परदे की इज्जत परदेशी के हाथ बिकानी थी
'परदे' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.
*
१०. घटना घटना ठीक है, अघट न घटना ठीक
घट-घट चकित लख, घट-जुड़ जाना लीक
*
११. वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम
वाम हस्त पर वाम दल, 'सलिल' वाम परिणाम
वाम = तांत्रिक पंथ, विपरीत, बाँया हाथ, साम्यवादी, उल्टा
*
१२. नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुँफकार
नाग नाग को नागता, नाग न मारे हार
नाग = हाथी, पर्वत, सर्प, बादल, पर्वत, लाँघता, जनजाति
*
शब्द कथ्य को अलंकृत, करता विविध प्रकार
अलंकार बहु शब्द के, कविता का श्रृंगार
यमक श्लेष अनुप्रास सँग, वक्र-उक्ति का रंग
छटा लात-अनुप्रास की, कर देती है दंग
साम्य और अंतर 'सलिल', रसानंद का स्रोत
समझ रचें कविता अगर, कवि न रहे खद्योत
शब्दालंकारों से काव्य के सौंदर्य में निस्संदेह वृद्धि होती है, कथ्य अधिक ग्रहणीय तथा स्मरणीय हो जाता है. शब्दालंकारों में समानता तथा विषमता की जानकारी न हो तो भ्रम उत्पन्न हो जाता है. यह प्रसंग विद्यार्थियों के साथ-साथ शिक्षकों, जान सामान्य तथा रचनाकारों के लिये समान रूप से उपयोगी है.
अ. अनुप्रास और लाटानुप्रास:
समानता: दोनों में आवृत्ति जनित काव्य सौंदर्य होता है.
अंतर: अनुप्रास में वर्ण (अक्षर या मात्रा) का दुहराव होता है.
लाटानुप्रास में शब्द (सार्थक अक्षर-समूह) का दुहराव होता है.
उदाहरण: अगम अनादि अनंत अनश्वर, अद्भुत अविनाशी
'सलिल' सतासतधारी जहँ-तहँ है काबा-काशी - अनुप्रास (छेकानुप्रास, अ, स, क)
*
अपना कुछ भी रहा न अपना
सपना निकला झूठा सपना - लाटानुप्रास (अपना. सपना समान अर्थ में भिन्न अन्वयों के साथ शब्द का दुहराव)
आ. लाटानुप्रास और यमक:
समानता : दोनों में शब्द की आवृत्ति होती है.
अंतर: लाटानुप्रास में दुहराये जा रहे शब्द का अर्थ एक ही होता है जबकि यमक में दुहराया गया शब्द हर बार भिन्न (अलग) अर्थ में प्रयोग किया जाता है.
उदाहरण: वह जीवन जीवन नहीं, जिसमें शेष न आस
वह मानव मानव नहीं जिसमें शेष न श्वास - लाटानुप्रास (जीवन तथा मानव शब्दों का समान अर्थ में दुहराव)
*
ढाल रहे हैं ढाल को, सके आक्रमण रोक
ढाल न पाये ढाल वह, सके ढाल पर टोंक - यमक (ढाल = ढालना, हथियार, उतार)
इ. यमक और श्लेष:
समानता: दोनों में शब्द के अनेक (एक से अधिक) अर्थ होते हैं.
अंतर: यमक में शब्द की कई आवृत्तियाँ अलग-अलग अर्थ में होती हैं.
श्लेष में एक बार प्रयोग किया गया शब्द एक से अधिक अर्थों की प्रतीति कराता है.
उदाहरण: छप्पर छाया तो हुई, सर पर छाया मीत
छाया छाया बिन शयन, करती भूल अतीत - यमक (छाया = बनाया, छाँह, नाम, परछाईं)
*
चाहे-अनचाहे मिले, जीवन में तय हार
बिन हिचके कर लो 'सलिल', बढ़कर झट स्वीकार -श्लेष (हार = माला, पराजय)
*
ई. श्लेष और श्लेष वक्रोक्ति:
समानता: श्लेष और श्लेष वक्रोक्ति दोनों में किसी शब्द के एक से अधिक अर्थ होते हैं.
अंतर: श्लेष में किसी शब्द के बहु अर्थ होना ही पर्याप्त है. वक्रोक्ति में एक अर्थ में कही गयी बात का श्रोता द्वारा भिन्न अर्थ निकाला (कल्पित किया जाना) आवश्यक है.
उदहारण: सुर साधे सुख-शांति हो, मुँद जाते हैं नैन
मानस जीवन-मूल्यमय, देता है नित चैन - श्लेष (सुर = स्वर, देवता / मानस = मनस्पटल, रामचरित मानस)
'पहन लो चूड़ी', कहा तो, हो गयी नाराज
ब्याहता से कहा ऐसा क्यों न आई लाज? - श्लेष वक्रोक्ति (पहन लो चूड़ी - चूड़ी खरीद लो, कल्पित अर्थ ब्याह कर लो)
*
यमक अलंकार
भिन्न अर्थ में शब्द की, हों आवृत्ति अनेक
अलंकार है यमक यह, कहते सुधि सविवेक
पंक्तियों में एक शब्द की एकाधिक आवृत्ति अलग-अलग अर्थों में होने पर यमक अलंकार होता है. यमक अलंकार के अनेक प्रकार होते हैं.
अ. दुहराये गये शब्द के पूर्ण- आधार पर यमक अलंकार के ३ प्रकार १. अभंगपद, २. सभंगपद ३. खंडपद हैं.
आ. दुहराये गये शब्द या शब्दांश के सार्थक या निरर्थक होने के आधार पर यमक अलंकार के ४ भेद १.सार्थक-सार्थक, २. सार्थक-निरर्थक, ३.निरर्थक-सार्थक तथा ४.निरर्थक-निरर्थक होते हैं.
इ. दुहराये गये शब्दों की संख्या अर्थ के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है.
उदाहरण :
१. झलके पद बनजात से, झलके पद बनजात
अहह दई जलजात से, नैननि सें जल जात -राम सहाय
प्रथम पंक्ति में 'झलके' के दो अर्थ 'दिखना' और 'छाला' तथा 'बनजात' के दो अर्थ 'पुष्प' तथा 'वन गमन' हैं. यहाँ अभंगपद यमक अलंकार है.
द्वितीय पंक्ति में 'जलजात' के दो अर्थ 'कमल-पुष्प' और 'अश्रु- पात' हैं. यहाँ सभंग यमक अलंकार है.
२. कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय
या खाये बौराय नर, वा पाये बौराय
कनक = धतूरा, सोना -अभंगपद यमक
३. या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरैहौं
मुरली = बाँसुरी, मुरलीधर = कृष्ण, मुरली की आवृत्ति -खंडपद यमक
अधरान = पर, अधरा न = अधर में नहीं - सभंगपद यमक
४. मूरति मधुर मनोहर देखी
भयेउ विदेह विदेह विसेखी -अभंगपद यमक, तुलसीदास
विदेह = राजा जनक, देह की सुधि भूला हुआ.
५. कुमोदिनी मानस-मोदिनी कहीं
यहाँ 'मोदिनी' का यमक है. पहला मोदिनी 'कुमोदिनी' शब्द का अंश है, दूसरा स्वतंत्र शब्द (अर्थ प्रसन्नता देने वाली) है.
६. विदारता था तरु कोविदार को
यमक हेतु प्रयुक्त 'विदार' शब्दांश आप में अर्थहीन है किन्तु पहले 'विदारता' तथा बाद में 'कोविदार' प्रयुक्त हुआ है.
७. आयो सखी! सावन, विरह सरसावन, लग्यो है बरसावन चहुँ ओर से
पहली बार 'सावन' स्वतंत्र तथा दूसरी और तीसरी बार शब्दांश है.
८. फिर तुम तम में मैं प्रियतम में हो जावें द्रुत अंतर्ध्यान
'तम' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.
९. यों परदे की इज्जत परदेशी के हाथ बिकानी थी
'परदे' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.
१०. घटना घटना ठीक है, अघट न घटना ठीक
घट-घट चकित लख, घट-जुड़ जाना लीक
११. वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम
वाम हस्त पर वाम दल, 'सलिल' वाम परिणाम
वाम = तांत्रिक पंथ, विपरीत, बाँया हाथ, साम्यवादी, उल्टा
१२. नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुँफकार
नाग नाग को नागता, नाग न मारे हार
नाग = हाथी, पर्वत, सर्प, बादल, पर्वत, लाँघता, जनजाति
*
दोहा-यमक
गले मिलें दोहा यमक, ले हांथों में हार।
हार न कोई मानता, बना प्यार तकरार।।
*
कलरव करती लहर से, बोला तट रह मौन।
कल रव अगर न किया तो, तुझको पूछे कौन?
*
पोती पोती बीनकर, बिखरे सुमन अनेक.
दादी देती सीख: 'बन, धागा रख घर एक'..
*
हर ने की हर भक्त की, मनोकामना पूर्ण.
दर्प दुष्ट का हर लिया, भस्म काम संपूर्ण..
*
चश्मा हो तो दिख सके, सारी दुनिया साफ़.
चश्मा हो तो स्नानकर, हो जा निर्मल साफ़..
*
रागी राग गुँजा रहा, मन में रख अनुराग.
राग-द्वेष से दूर हो, भक्त वरे बैराग..
*
कलश ताज का देखते, सिर पर रखकर ताज.
ताज धूल में मिल कहे:, 'प्रेम करो निर्व्याज'..
*
अंगुल भर की छोकरी, गज भर लम्बी पूंछ.
गज को चुभ कर दे विकल, पूंछ न सकती ऊंछ..
*
हैं अजान उससे भले, देते नित्य अजान.
जिसके दर पर मौलवी, बैठे बन दरबान..
*
खेल खेलकर भी रहा, 'सलिल' खिलाड़ी मौन.
जिनसे खेले पूछते:, 'कहाँ छिपा है कौन?.
*
स्त्री स्त्री कर करे, शिकन वस्त्र की दूर.
शिकन माथ की कह रही, अमन-चैन है दूर..
*
गोद लिया पर गोद में, बिठा न करते प्यार.
बिन पूछे ही पूछता, शिशु- चुप पालनहार..
*
जब सुनते करताल तब, देते हैं कर ताल.
मस्त न हो सुन झूमिये, शेष! मचे भूचाल.. 
*
पोती पोती बीनकर, बिखरे सुमन अनेक.
दादी देती सीख: 'बन, धागा रख घर एक'..
*
हर ने की हर भक्त की, मनोकामना पूर्ण.
दर्प दुष्ट का हर लिया, भस्म काम संपूर्ण..
*
चश्मा हो तो दिख सके, सारी दुनिया साफ़.
चश्मा हो तो स्नानकर, हो जा निर्मल साफ़..
*
रागी राग गुँजा रहा, मन में रख अनुराग.
राग-द्वेष से दूर हो, भक्त वरे बैराग..
*
कलश ताज का देखते, सिर पर रखकर ताज.
ताज धूल में मिल कहे:, 'प्रेम करो निर्व्याज'..
*
अंगुल भर की छोकरी, गज भर लम्बी पूंछ.
गज को चुभ कर दे विकल, पूंछ न सकती ऊंछ..
*
हैं अजान उससे भले, देते नित्य अजान.
जिसके दर पर मौलवी, बैठे बन दरबान..
*
ला दे दे रम जान तू, चला गया रमजान 
सूख गया है हलक अब, होने दे रसखान 
*
खेल खेलकर भी रहा, 'सलिल' खिलाड़ी मौन.
जिनसे खेले पूछते:, 'कहाँ छिपा है कौन?.
*
स्त्री स्त्री कर करे, शिकन वस्त्र की दूर.
शिकन माथ की कह रही, अमन-चैन है दूर..
*
गोद लिया पर गोद में, बिठा न करते प्यार.
बिन पूछे ही पूछता, शिशु- चुप पालनहार..
*
जब सुनते करताल तब, देते हैं कर ताल.
मस्त न हो सुन झूमिये, शेष! मचे भूचाल.. 
*
देव! दूर कर बला हर, हो न करबला और.
जयी न हो अन्याय फिर, चले न्याय का दौर..
*
'सलिल' न हो नवजात की, अब कोइ नव जात.
मानव मानव एक हों, भेद नहीं हो ज्ञात..
*
मन असमंजस में पड़ा, सुनकर खाना शब्द.
खा या खा ना क्या कहा?, सोच रहा नि:शब्द..
*
किस उधेड़-बुन में पड़े, फेरे मुँह चुपचाप.
फिर उधेड़-बुन कर सकें, स्वेटर पूरा आप..
*
होली हो ली हो रही, होगी नहीं समाप्त.
रंग नेह का हमेशा, रहे जगत में व्याप्त..
*
खाला ने खाली दवा, खाली शीशी फेंक.
देखा खालू दूर से, आँख रहे हैं सेंक..
*
आपा आपा खो नहीं, बिगड़ जायेगी बात.
जो आपे में ना रहे, उसकी होती मात..
*
स्वेद सना तन कह रहा, प्रथा सनातन खूब.
वरे सफलता वही जो, श्रम में जाए डूब..
*
साजन सा जन दूसरा, बिलकुल नहीं सुहाय.
सजनी अपलक रात में, जागे नींद न आय..
*
बाल-बाल बच गये सब, ग्वाल बाल रह मौन.
बाल किशन के खींचकर, भागी बाला कौन?
*
चल न अकेले चलन है, चलना सबके साथ.
कदममिलाकर कदम से, लिये हाथ में हाथ..
*
सर गम हो अनुभव अगर, सरगम दे आनंद.
झूम-झूमकर गाइए, गीत गजल नव छंद..
*
कम ला या ज्यादा नहीं, मुझको किंचित फ़िक्र.
कमला-पूजन कर- न कर, धन-संपद का ज़िक्र..
*
गमला ला पौधा लगा, खुशियाँ मिलें अनंत.
गम लाला खो जायेंगे, महकें दिशा-दिगंत..
*
ग्र कोशिश चट की नहीं, होगी मंजिल दूर.
चटकी मटकी की तरह, सृष्टि लगे बेनूर..
*
नाम रखा शिशु का नहीं, तो रह अज्ञ अनाम.
नाम रखा यदि बड़े का, नाम हुआ बदनाम..
*
रिसा मकान रिसा रहे, क्यों कर आप हुजूर?
पानी-पानी हो रहे, बादल-दल भरपूर..
*
दल-दल दलदल कर रहे, संसद में है कीच
नेता-नेता पर रहे लांछन-गंद उलीच..
*
धन का धन उपयोग बिन, बन जाता है भार.
धन का ऋण, ऋण दे डुबा, इज्जत बीच बज़ार..
*
कभी न कोई दर्द से, कहता 'तू आ भास'.
सभी कह रहे हर्ष से, हो हर पल आभास..
*
बीन बजाकर नचाते, नित्य सँपेरे नाग.
बीन रहे रूपये पुलक, बुझे पेट की आग..
*
बस में बस इतना बचा, कर दें हम मतदान.
किन्तु करें मत दान मत, और न कुछ आदान..
*
नपना सबको नापता,  नप ना पाता आप.
नपने जब नपने गये, विवश बन गये नाप..
*
लाला ला ला कह मँगे, माखन मिसरी खूब.
मैया प्रीत लुटा रहीं, नेह नर्मदा डूब..
*
आँसू जल न बने अगर, दिल की जलन जनाब.
मिटे न कम हो तनिक भी, टूटें पल में ख्वाब..
*
छप्पर छाया तो मिली, सिर पर छाया मीत.
सोजा पाँव पखार कर, घर हो स्वर्ग प्रतीत..
*
बाला का बाला चमक, बता गया चुप नाम.
मैया से किसने करी, चुगली लेकर नाम..
*
आ जा पोते से कहें 'आजा, ले ले आम'.
'आम नहीं हूँ खास मैं, दामी पर बेदाम..

तारा नहीं न तर सका, ढोंग रचाया व्यर्थ.
पण्डे-झण्डे से कहे, तारा 'त्याग अनर्थ'..

अधिक न ढीला छोड़ना, कसना अधिक न तार.
राग संग वैराग का, सके समन्वय तार..

कंठ कर रहे तर लिये, अपने मन में आस.
तर पायें भव-समुद से, ले अधरों पर हास..

मत ललचा आकाश यूँ, बाँहों में आ काश.
गले दामिनी के लगूँ, तोड़ भूमि का पाश..

खो-खो कर ईमान- सच, खुद से खुद ही हार.
खो-खो खेले झूठ संग, मनाब मति बलिहार..

जीना मुश्किल हो रहा, 'जी ना' कहें न आप.
जीना चढ़कर निरखिए, आस सके नभ-व्याप..

पान मान का लीजिए, मानदान श्रीमान.
कन्या को वर-दान दें, वर को हो वरदान..

*
जाम पियें मत, खाइए, फल का फल आरोग्य.
जाम न यातायात हो, भोग सकें जो भोग्य..
*
अ-मर देव मानव स-मर, समर समय के साथ.
लेकर दो-दो हाथ, हम करते दो-दो हाथ..
*
अ-मय न रुचती, स-मय हो, साक़ी  तब आनंद.
कु-समय भी सु-समय लगे, अगर संग हो छंद..
*
दी! वट के नीचे चलें, भू गोबर से लीप.
तम हर जग उजियारने, दीवट-बालें दीप..
*
अगिन अ-गिन तरें करें, नभ-आंगन में खेल.
चाँद-चाँदनी जनक-जननि,  कहें न तजना मेल..
*
दिव्य नर्मदा तीर पर, दिव्य नर्मदा तीर.
दें अगस्त्य श्री राम को, हरें आसुरी  पीर..
*
पीर पीर को हो नहीं, रहता रब में लीं.
यारब ऐसी पीर हो, तुझ में सकूँ विलीन..
*
सहमत हों या अ-सहमत, मत करिए तकरार.
मत-प्रतिमत रखकर सु-मत, करलें अंगीकार..
*
डगमग-डगमग रख रहा, डग मग पर कल आज.
कल आशीषे 'पग जमा, तभी बने सरताज'..
*
ना-गिन नागिन सी लटें, बिन गिन ले तू चूम.
गिन-गिनकर थक जाएगा, अनगिन हैं मालूम.. 
*
तुझे लगी धुन कौन सी, मौन न रह धुन शीश.
मधुर-मधुर धुन गुनगुना, बनें सहायक ईश..
*
शबनम से मिलकर गले, शब नम मौन उदास। 
चाँद-चाँदनी ने मिटा, तम भर दिया उजास।।
*
गले मिले शिकवे-गिले, गले नहीं हैं शेष।
शेष-शेषशायी हँसे, लख सद्भाव अशेष।।
*
तिल-तिल कर जलते रहे, बाती तिल का तेल।
तिल भर डिगे न धर्म से, कमा न किंचित मेल।।
*
हल चल जाए खेत में, तब हलचल हो शांत।
सिया-जनक को पूछते, जनक- लोग दिग्भ्रांत।।
*
चल न हाथ में हाथ ले, यही चलन है आज।
नय न नयन का इष्ट है, लाज करें किस व्याज?
*
जड़-चेतन जड़-पेड़ भी, करते जग-उपकार।
जग न सो रहे क्यों मनुज, करते पर-अपकार।?
*
वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम।
वाम हस्त पर वाम दल, वाम  न हो परिणाम।।
*
खुश बू से कोई नहीं, खुशबू से खुश बाग़।
बाग़-बाग़ तितली हुई, सुन भ्रमरों का राग।।
*
हर संकट हर कर किया, नित जग पर उपकार।
सकल श्रृष्टि पूजित हुए तब ही शिव सरकार।।
*

असुर न सुर को समझते, अ-सुर न सुर के मीत
ससुर-सुता को स-सुर लख, बढ़ा रहे सुर प्रीत
*
पग तल पर रख दो बढें, उनके पग तल लक्ष्य
हिम्मत यदि हारे नहीं, सुलभ लगे दुर्लक्ष्य
*
ताल तरंगें पवन संग, लेतीं पुलक हिलोर
पत्ते देते ताल सुन, ऊषा भाव-विभोर
*
दिल कर रहा न संग दिल, जो वह है संगदिल
दिल का बिल देता नहीं, नाकाबिल बेदिल
*
हसीं लबों का तिल लगे, कितना कातिल यार
बरबस परबस दिल हुआ, लगा लुटाने प्यार
*
दिलवर दिल वर झूमता, लिए दिलरुबा हाथ
हर दिल हर दिल में बसा, वह अनाथ का नाथ
*
रीझा हर-सिंगार पर, पुष्पित हरसिंगार
आया हरसिंगार हँस, बनने हर-सिंगार
*
रोटियाँ दो जून की दे, खुश हुआ दो जून जब
टैक्स दो दोगुना बोला, आयकर कानून तब
*
अंतर में अंतर पले, तब कैसे हो स्नेह
अंतर से अंतर मिटे, तब हो देह विदेह
अंतर = मन / भेद
.
देख रहे छिप-छिप कली, मन में जागी प्रीत
देख छिपकली वितृष्णा, क्यों हो छू भयभीत?
छिप कली = आड़ से रूपसी को देखना / एक जंतु
*
मूल्य बढ़े जीना हुआ, अब सचमुच दुश्वार
मूल्य गिरे जीना हुआ, अब सचमुच दुश्वार
मूल्य = कीमत, जीवन के मानक
*
अंचल से अंचल ढँकें, बची रह सके लाज
अंजन का अंजन करें, नैन बसें सरताज़
अंचल = दामन / भाग या हिस्सा, अंजन = काजल, आँख में लगाना
*
दिनकर तिमिर अँजोरता, फैले दिव्य प्रकाश
संध्या दिया अँजोरता, महल- कुटी में काश
अँजोरता = समेटता या हर्ता, जलाता या बालता
*
मनहर ने मन हर लिया, दिलवर दिल वर मौन.
पूछ रहा चितचोर! चित, चोर कहाँ है कौन??
*
देख रही थी मछलियाँ, मगर मगर था दूर.
रखा कलेजा पेड़ पर, कह भागा लंगूर..
*
कर वट को सादर नमन, वट सावित्री पर्व.
करवट ले फिर सो रहे, थामे हाथ सगर्व..
*
शतदल के शत दल खुले, भ्रमर करे रस-पान.
बंद हुए शतदल भ्रमर, मग्न करे गुण-गान..
*
सर हद के भीतर रखें, सरहद करें न पार.
नत सर गम की गाइये, सरगम बरखुरदार..
*
हर छठ पर हरछठ नहीं, पूज रहीं क्यों आप?
हर दम पर हरदम नहीं, आप कर रहे जाप..
*
लेते हैं चट पटा वे, सुना चटपटा जोक.
सौदा करता जिस तरह, चतुरा बनिया थोक
*



चंद चंद तारों सहित, करे मौन गुणगान
रजनी के सौंदर्य का, जब तक हो न विहान
*
जहाँ पनाह मिले वहीं, बस बन जहाँपनाह
स्नेह-सलिल का आचमन, देता शांति अथाह
*
स्वर मधु बाला चन्द्र सा, नेह नर्मदा-हास
मधुबाला बिन चित्रपट, है श्रीहीन उदास
*
स्वर-सरगम की लता का,प्रमुदित कुसुम अमोल
खान मधुरता की लता, कौन सके यश तौल
*
भेज-पाया, खा-हँसा, है प्रियतम सन्देश
सफलकाम प्रियतमा ने, हुलस गहा सन्देश
*
गुमसुम थे परदेश में, चहक रहे आ देश
अब तक पाते ही रहे, अब देते आदेश
*
पीर पीर सह कर रहा, धीरज का विनिवेश
घटे न पूँजी क्षमा की, रखता ध्यान विशेष
*
माया-ममता रूप धर, मोह मोहता खूब
माया-ममता सियासत, करे स्वार्थ में डूब
*
जी वन में जाने तभी, तू जीवन का मोल
घर में जी लेते सभी, बोल न ऊँचे बोल
*
विक्रम जब गाने लगा, बिसरा लय बेताल
काँधे से उतरा तुरत, भाग गया बेताल
*
दिखा सफाई हाथ की, कहें उठाकर माथ
देश साफ़ कर रहे हैं, बँटा रहे चुप हाथ
*
अनुशासन जन में रहे, शासन हो उद्दंड
दु:शासन तोड़े नियम, बना न मिलता दंड
*
अलंकार चर्चा न कर, रह जाते नर मौन
नारी सुन माँगे अगर, जान बचाए कौन?
*
गोरस मधुरस काव्य रस, नीरस नहीं सराह
करतल ध्वनि कर सरस की, करें सभी जन वाह
*
जला गंदगी स्वच्छ रख, मनु तन-मन-संसार
मत तन मन रख स्वच्छ तू, हो आसार में सार
*
आ राधे राधे; कहे आ राधे! घनश्याम
वाम न होकर वाम हो, क्यों मुझसे हो श्याम
*
नमन

न मन मिले तो नमन कर, नम न 'सलिल' हों आँख
सफल साधना नाप नभ, बंद किये क्यों पाँख?
*
सही कौन सा धना है, और कौन सा धान?
नाक चढ़ा चश्मा करे, टीवी पर संधान
*
तनहा जी का कर रहीं, तनहाइन गुणगान
लिए साज ना साजना, नाक छेड़ती तान
*
'मी टू' तनहा जी कहें, मत सुन मान न व्याध
है जो मन में साध ना, पूरी करिए साध
*
गले बर्फ सम भेद सब, गले मिले जब आप
मिले न मिलकर भेद रख, हुआ पुण्य भी पाप
*
कल कल

कल-कल करते कल हुए, कल न हो सका आज
विकल मनुज बेअकल खो कल, सहता कल-राज
कल = आगामी दिन, अतीत, शांति, यंत्र
कल करूंगा, कल करूंगा अर्थात आज का काम पर कल (अगला दिन) पर टालते हुए व्यक्ति खुद चल बसा (अतीत हो गया) किन्तु आज नहीं आया. बुद्धिहीन मनुष्य शांति खोकर व्याकुल होकर यंत्रों का राज्य सह रहा है अर्थात यंत्रों के अधीन हो गया है.

नीति के दोहे

नाहक हक ना त्याग तू, ना हक पीछे भाग।
ना मन में अनुराग रख, ना तन में बैराग।।
*
ना हक की तू माँग कर, कर पहले कर कर्तव्य।
नाहक भूला आज को, सोच रहा भवितव्य।।
*
संगसार वे कर रहे, होकर निष्ठुर क्रूर
संग सार हम गह रहे, बरस रहा है नूर
*
भाया छाया जो न क्यों, छाया उसकी साथ?
माया माया तज लगी, मायापति के हाथ
*
शुक्ला-श्यामा एक हैं, मात्र दृष्टि है भिन्न
जो अभिन्नता जानता, तनिक न होता खिन्न
*
बिल्ली जाती राह निज, वह न काटती राह
होते हैं गुमराह हम, छोड़ तर्क की थाह
.
जो जगमग-जगमग करे, उसे न सोना जान
जो जग मग का तम हरे, छिड़क उसी पर जान
.
किस मिस किस मिस को किया, किस बतलाए कौन?
तिल-तिल कर तिल जल रहा, बैठ अधर पर मौन
.
समय सूचिका का करे, जो निर्माण-सुधार
समय न अपना वह सका, किंचित कभी सुधार
.
वह बोली आदाब पर, वह समझा आ दाब
लपक-सरकने में गए, रौंदे सुर्ख गुलाब
.
गले मिले दोहा-यमक, गले बर्फ मतभेद
इतनी देरी क्यों करी?, दोनों को है खेद
*
ध्यान रखें हम भूमि का, कहता है आकाश.
लिखें पेड़ की भूमिका, पौध लगा हम काश..
*
बड़े न बनें खजूर से, बड़े न बोलें बोल.
चटखारे कह रहे हैं, दही बड़े अनमोल..
*
तंग गली से हो गये, ग़ालिब जी मशहूर.
तंग गली से हो गये, 'सलिल' तंग- अब दूर..
(ग़ालिब ने ग़ज़ल की आलोचना कर उसे तंग गली कहा था.)
*
रीत कुरीत न बन सके, खोजें ऐसी रीत.
रीत प्रीत की निभाये, नायक गाकर गीत..
*
लिया अनार अ-नार ने, नार देखकर दंग.
नार बिना नारद करे, क्यों नारद से जंग..
*
तारा देवी पूज कह, चंदा-तारा मौन.
तारा किसने का-किसे, कहो बताये कौन..
*
कैसे मानूँ है नहीं, अब जगजीवन राम.
जब तुलसी कह गये हैं, हैं जग-जीवन राम..
*
ताना-बाना यदि अधिक, ताना जाए टूट.
बाना भी व्यक्तित्व का, होता अंग अटूट..
*
तंग सोच से तंग मत, हो- रख सोच उदार.
तंग हाथ हो तो 'सलिल', मत बनना दिलदार..
*
पान अमिय या गरल का, करिए सोच-विचार.
पान मान का खाइए, तब जब हो मनुहार..
*
सु-मन सुमन सम सुगंधित, महकाये घर-बाग़.
अमन अ-मन से हो नहीं, चमन चहे अनुराग..
*
करे शब्द-आराधना, कलम न होती मूक.
कलम लगाती बाग़ में, हरियाली की हूक..
*
आई ना वह देख पथ, आईना भी गया थक.
अब तो मिलने आइए, थका देख पथ अथक..
*
कर कढ़ाइ घर पलटीं, किन्तु न मानें मात.
खा कढ़ाइ में पाइए, शादी में बरसात..
*
कर पढ़ाइ फिर गह 'सलिल', सब विषयों का सार.
जब पढ़ाइ कंठस्थ हो, करती बेडा पार..
*
पार कर रहा सड़क तो, दायें-बायें देख.
पार न कर दे पर्स यह, साथ-साथ ले लेख..
*
कड़ा-प्रसाद ग्रहण करें, कड़ा पहनकर आप.
पंच ककार न त्यागी, कड़ा नर्म दिल आप.
*
सदा सदा देते रहें, नाज़-अदा के साथ.
फ़िदा हुए हम वे नहीं, रहे कभी भी साथ..
*
मटकी तो मटकी गिरी,चित छाये चितचोर.
दधि बेचा सिक्के गिने,खन-खन बाँधे कोर.
*
बेदिल हैं बेदिल नहीं,सार्थक हुआ न नाम.
फेंक रहे दिल हर तरफ, कमा रहे हैं नाम..
*
वामा हो वामा अगर, मिट जाता सुख-चैन.
नैन मिले लड़ नैन से, जागे सारी रैन..
*
किस मिस का किस मिस किया, किस मिस कहिये आप?
किसमिस खाकर कीजिये, चिंतन अब चुपचाप..
*
बात करी बेबात तो, बढ़ी बात में बात.
प्रीत-पात पलमें झरे, बिखर गये नगमात..
*
बजे राज-वंशी कहे, जन-वंशी हैं कौन?
मिटे राजवंशी- अमिट, जनवंशी हैं मौन..
*
'सज ना' सजना ने कहा, कहे: 'सजाना' प्रीत.
दे सकता वह सजा ना, यही प्रीत की रीत..
*
'साजन! साज न लाये हो, कैसे दोगे संग?'
'संग-दिल है संगदिल नहीं, खूब जमेगा रंग'..
*
रास खिंची घोड़ी उमग, लगी दिखने रास.
दर्शक ताली पीटते, खेल आ रहा रास..
*
'किसना! किस ना लौकियाँ, सकूँ दही में डाल.
 जीरा हींग बघार से, आता स्वाद कमाल'..
*
भोला भोला ही 'सलिल', करते बम-बम नाद.
फोड़ रहे जो बम उन्हें, कर भी दें बर्बाद..
*
अर्ज़ किया 'आदाब' पर, वे समझे आ दाब.
वे लपके मैं भागकर, बचता फिर जनाब..
*
शब्द निशब्द अशब्द हो, हो जाते जब मौन.
मन से मन तक 'सबद' तब, कह जाता है कौन??
*
नृत्य-गान आनंद दे, साध रखें सुर-ताल.
जीवन नदिया स्वच्छ रख, विमल रखे सर-ताल..
*
बिना माल पहने नहीं, जो दूल्हा वर-माल.
उसे पराजय दे 'सलिल', कंठ पड़ी जय-माल..
*
हाल पूछते, बतायें, कैसे हैं फिल-हाल?
हाल चू रहा, रह रहे, हँस फिर भी हर हाल..
*
खाल ओढ़कर शे'र की, करता हुआ सियार.
खाल खिंच गयी, दुम दबा, भागा मुआ सियार..
*
हाल-चाल सुधरे नहीं, बिना सुधारे चाल.
जब पड़ती बेभाव तो, लगे हुआ भूचाल..
*
टाल नहीं, तू टाल जा, ले आ बीजा-साल.
बीजा बो इस साल हो, फसल खूब दे माल..
*
कबिरा कहता अभी कर, मन कहता कर बाद.
शीघ्र करे आबाद हो, तुरत करे नाबाद..
*
शेर शे'र कहता नहीं, कर देता है ढेर.
क्या बटेर तुमको दिखी, कभी लगाते टेर..
*
मुँह का बिगड़े स्वाद यदि, चुटकी भर खा खार.
हँसे आबले पाँव के, देख राह पुर खार..
*
चुस्की लेते चाय की, पा चुटकी भर धूप.
चुटकी लेते विहँस कर,  हुआ गुलाबी रूप..
*

इतिहास

कभी न हो इति हास की, रचें विहँस इतिहास.
काल करेगा अन्यथा, कोशिश का उपहास.
*
माने राय प्रवीण की, भारत का सुल्तान.
इज्जत राय प्रवीण की, कर पाये सम्मान..
*

जिस का रण वह ही लड़े, किस कारण रह मौन.
साथ न देते शेष क्यों?, बतलायेगा कौन??
*
ताज महल में सो रही, बिना ताज मुमताज.
शिव मंदिर को मकबरा, बना दिया बेकाज..
*
भोग लगा प्रभु को प्रथम, फिर करना सुख-भोग.
हरि को अर्पण किये बिन, बनता भोग कुरोग..
*
बिना हवा के चाक पर, है सरकार सवार.
सफर करे सर कार क्यों?, परेशान सरदार..
*
तेज हुई तलवार से, अधिक कलम की धार.
धार सलिल की देखिये, हाथ थाम पतवार..
*
तार रहे पुरखे- भले, मध्य न कोई तार.
तार-तम्यता बनी है, सतत तार-बे-तार..
*
हर आकार -प्रकार में, है वह निर-आकार.
देखें हर व्यापार में, वही मिला साकार..
*
चित कर विजयी हो हँसा, मल्ल जीत कर दाँव.
चित हरि-चरणों में लगा, तरा मिली हरि छाँव..
*
लगा-लगा चक्कर गिरे, चक्कर खाकर आप.
बन घनचक्कर भागते, समझ पुण्य को पाप..
*
बाँहों में आकाश भर, सजन मिले आ काश.
खिलें चाह की राह में, शत-शत पुष्प पलाश..
*
धो-खा पर धोखा न खा, सदा सजग रह मीत.
डगमग डग मग पर रहें, कर मंजिल से प्रीत..
*
खा ले व्यंजन गप्प से, बेपर गप्प न छोड़.
तोड़ नहीं वादा 'सलिल', ले सब जग से होड़..
*
करो कामना काम ना, किंचित बिगड़े आज.
कोशिश के सर पर रहे, लग्न-परिश्रम ताज..
*
सज न, सजन को सजा दे, सजा न पायें यार.
बरबस बरस न बरसने, दें दिलवर पर प्यार..
*
चलते चलते...
कली छोड़कर फूल से, करता भँवरा प्रीत.
देख बे-कली कली की, बे-अकली ताज मीत..
*
पी मत खा ले जाम तू, गह ले नेक सलाह.
जाम मार्ग हो तो करे, वाहन-इंजिन दाह..
*
माँग न रम रम शहद में, पायेगा नव शक्ति.
नरम जीभ टूटे नहीं, टूटे रद बिन युक्ति..
*
कर धन गह कर दिवाली, मना रहे हैं रोज.
करधन-पायल ठुमकतीं, क्यों करिए कुछ खोज?
*
योग लगते सेठ जी, निन्यान्नबे का फेर.
योग न कर दुर्योग से, रहे चिकित्सक-टेर..
*
दस सर तो देखे मगर, नौ कर दिखे न दैव.
नौकर की ही चाह क्यों, मालिक करे सदैव?
*
करे कलेजा चाक री, अधम चाकरी सौत.
सजन न आये चौथ पर, अरमानों की मौत..
*
चढ़े हुए सर कार पर, हैं सरकार समान.
सफर करे सर कार क्यों?, बिन सरदार महान..
*
चाक घिस रहे जन्म से. कौन समझता पीर.
गुरु को टीचर कह रहे, मंत्री जी दे पीर..
*
बरस-बरस घन बरस कर, तनिक न पाया रीत.
बदले बरस न बदलती, तनिक प्रीत की रीत..
*
साल गिरह क्यों साल की, होती केवल एक?
मन की गिरह न खुद खुले, खोलो कहे विवेक..
*
गला काट प्रतियोगिता, कर पर गला न काट.
गला बैर की बर्फ को, मन की दूरी पाट..
*
पानी शेष न आँख में, यही समय को पीर.
पानी पानी हो रही, पानी की प्राचीर..
*
मन मारा, नौ दिन चले, सिर्फ अढ़ाई कोस.
कोस रहे संसार को, जिसने पाला पोस..
*
अपनी ढपली उठाकर, छेड़े अपना राग.
राग न विराग न वर सका, कर दूषित अनुराग..
*
गया न आये लौटकर, कभी समय सच मान.
पल-पल का उपयोग कर, करो समय का मान..
*
निज परछाईं भी नहीं, देती तम में साथ.
परछाईं परछी बने, शरणागत सिर-माथ..
*
दोहा यमक मुहावरे, मना रहे नव साल.
साल रही मन में कसक, क्यों ना बने मिसाल?
*
कहें दूर-दर्शन किये, दर्शन बहुत समीप.
चाहा था मोती मिले, पाई खाली सीप..
*
जी! जी! कर जीजा करें, जीजी का दिल शांत.
जी, जा जी- वर दे रहीं, जीजी कोमल कांत..
*
वाहन बिना न तय किया, सफ़र किसी ने मीत.
वाह न की जिसने- भरी, आह गँवाई प्रीत..
*
बटन न सोहे काज बिन, हो जाता निर्व्याज.
नीति- कर्म कर फल मिले, मत कर काज अकाज.
*
मन भर खा भरता नहीं, मन- पर्याप्त छटाक.
बरसों काम रुका रहा, पल में हुआ फटाक..
*
बाटी-भरता से नहीं, मन भरता भरतार.
पेट फूलता बाद में, याद आये करतार..
*                                                                                                            
उसका रण वह ही लड़े, किस कारण रह मौन.
साथ न देते शेष क्यों, बतलायेगा कौन??
*
ताज महल में सो रही, बिना ताज मुमताज.
शिव-मंदिर को मकबरा, बना दिया बेकाज.                                                    .
*
योग कर रहे सेठ जी, योग न कर कर जोड़.
जोड़ सकें सबसे अधिक, खुद से खुद कर होड़..
*
दिलवर का दिल वर लिया, सिल ने सधा काज.
दिलवर ने दिल पर किया, ना जाने कब राज?

जीवन जीने के लिये, जी वन कह इंसान.
अगर न जी वन सका तो, भू होगी शमशान..

 मंजिल सर कर मगर हो, ठंडा सर मत भूल.
अकसर केसर-दूध पी, सुख-सपनों में झूल..

जिसके सर चढ़ बोलती, 'सलिल' सफलता एक.
अवसर पा बढ़ता नहीं, खोता बुद्धि-विवेक..

टेक यही बिन टेक के, मंजिल पाऊँ आज.
बिना टेक अभिनय करूँ, हो हर दिल पर राज..

दिल पर बिजली गिराकर, हुए लापता आप.
'सलिल' ला पता आपका, करे प्रेम का जाप..                   

कर धो खा जिससे न हो, बीमारी का वार.
कर धोखा जो जी रहे, उन्हें न करिए प्यार..
*
कर धन गह कर दिवाली, मना रहे हैं नित्य.
करधन-पायल ठुमकती, देखें विहँस अनित्य..
*
पी मत खा ले जाम तू, यह है नेक सलाह.
यातायात न जाम हो, नाहक सुबहो-शाम..
*
माँग न रम पी ले शहद, पायेगा नव शक्ति.
नरम जीभ टूटे नहीं, दाँत न जाने युक्ति..
*
जीना मुश्किल हो रहा, 'जी ना' कहें न आप.
जीना बनवायें 'सलिल', छत तक सीढ़ी नाप..
*
खान-पान के बाद लें, पान मान का आप.
मान-दान वर-दान कर, पायें कन्या-दान..
*
खो-खोकर ईमान-सच, खुद से खुद ही हार.
खो-खो खेले झूठ सँग, मानव-मति बलिहार..
*
मत ललचा आकाश यूँ, बाँहों में आ काश.
गले दामिनी के लगूँ, तोड़ मृदा का पाश..
*
कंठ कर रहे तर लिये, कर बोतल औ' आस.
तर जायें भव-पाश से, ले अधरों पर हास..
*

तरुवर

कर वट की आराधना, ब्रम्हदेव का वास.
करवट ले सो चैन से, ले अधरों पर हास..
*
नीमहकीम न काम के, है खुद नीम  हकीम 
रोग मिटा आरोग्य दे, दुर्बल भी हो भीम 
*
पी मत खा ले जाम तू, है यह नेक सलाह.
जाम मार्ग हो तो करे, वाहन इंजिन दाह..
*
पौधों में जल दे मिलें, काष्ठ हवा फल फूल.  
डाल कभी भी काट मत, घातक है यह भूल..
*

हास्य-व्यंग्य

शब नम आँखें मूँदकर, सहे तिमिर धर धीर.
शबनम की बूँदें कहें, असह हुई थी पीर..
*
छीन रही कल छुरी से, मौन कलछुरी छीन.
चमचे के गुण गा आरही, चमची होकर दीन..
*
छान-बीनकर बात कर, कोई न हो नाराज.
छान-बीनकर जतन से, रखिए 'सलिल' अनाज..
*
अगर मिले ना राज तो,  राजा हो नाराज.
राज मिले तो हो मुदित, सिर पर धारे ताज.
*
भय का भूत न भूत से, आकर डँस ले आज.
रख खुद पर विश्वास मन,करता चल निज काज..
*
लगे दस्त तो दस्त ही, करता चुप रह साफ़.
क्यों न करो तुम भी 'सलिल', त्रुटि औरों की माफ़?.
*
हरदम हर दम का रखें, नाहक आप हिसाब.
चलती खुद ही धौंकनी, बँटे-मिटते ख्वाब..
*
बुनकर बुन कर से रहा, कोरी चादर रोज.
कोरी चादर क्यों नहीं?, कर कुछ इसकी खोज..
*
पत्र-कार मत खोजिये, होंगे आप निराश.
पत्रकार को सनसनी की ही, रही तलाश..
*
अमा नत हुए क्यों नयन?, गुमी अमानत आज.
नयन उठा कैसे करें, बात? आ रही लाज..
*

चल बे घर बेघर नहीं, जो भटके बिन काज
बहुत हुई कविताई अब, कलम घिसे किस व्याज?
*
पटना वाली से कहा, 'पट ना' खाई मार
चित आए पट ना पड़े, अब की सिक्का यार
*
धरती पर धरती नहीं, चींटी सिर का भार
सोचे "धर दूँ तो धरा, कैसे सके सँभार?"
*
घटना घट ना सब कहें, अघट न घटना रीत
घट-घटवासी चकित लख, क्यों मनु करे अनीत?
*
सिरा न पाये फ़िक्र हम, सिरा न आया हाथ
पटक रहे बेफिक्र हो, पत्थर पर चुप माथ
*
बेसिर-दानव शक मुआ, हरता मन का चैन
मनका ले विश्वास का, सो ले सारी रैन
*
करता कुछ करता नहीं, भरता भरता दंड
हरता हरता शांति सुख, धरता धरता खंड
*
बजा रहे करताल पर, दे न सके कर ताल
गिनते हैं कर माल फिर, पहनाते कर माल
*
जल्दी से आ भार ले, व्यक्त करूँ आभार
असह्य लगे जो भार दें, हटा तुरत साभार
*
हँस सहते हम दर्द जब, देते हैं हमदर्द
अपना पन कर रहा है सब अपनापन सर्द
*
भोग लगाकर कर रहे, पंडित जी आराम
नहीं राम से पूछते, "ग्रहण करें आ राम!"
*
सरहद पर सर काट कर, करते हैं हद पार
क्यों लातों के देव पर, हों बातों के वार?
*
गोस्वामी से प्रभु कहें, गो स्वामी मार्केट
पिज्जा-बर्जर भोग में, लाओ न होना लेट
*
भोग लिए ठाकुर खड़ा, करता दंड प्रणाम
ठाकुर जी मुस्का रहे, आज पड़ा फिर काम
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कहें अजन्मा मनाकर, जन्म दिवस क्यों लोग?
भले अमर सुर, मना लो मरण दिवस कर सोग
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ना-ना कर नाना दिए, है आकार-प्रकार
निराकार पछता रहा, कर खुद के दीदार
*
संगसार वे कर रहे, होकर निष्ठुर क्रूर
संग सार हम गह रहे, बरस रहा है नूर
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काया भीतर वह बसा, बाहर पूजें आप?
चित्रगुप्त का चित्र है गुप्त, दिखाना पाप.
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​हर अपात्र भी पात्र हो, सच देखें ज्यों सूर
संगति में घनश्याम की, हो कायर भी शूर ​
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तुनक ठुनक कर यमक ने, जब दिखलाया रंग
अमन बिखेरे चमन में, यमन न हो बेरंग
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बेल न बेलन जब बनें, हाथों का हथियार
झाड न झाड़ू तब चले, तज निज शस्त्रागार
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क्यों हरकत नापाक तज, पाक न होता पाक
उलझ, मात खा कटाता, बार-बार निज नाक
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जो भूलें मर्याद वे, कभी न आते याद
जो मर्यादित हो जियें, वे आते मर-याद
*
नारी पाती दो जगत, जब हो कन्यादान
पाती है वरदान वह, भले न हो वर-दान
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दिल न मिलाये रह गए, मात्र मिलकर हाथ
दिल ने दिल के साथ रह, नहीं निभाया साथ
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निर्जल रहने की व्यथा, जान सकेगा कौन?
चंद्र नयन-जल दे रहा, चंद्र देखता मौन
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खोद-खोदकर थका जब, तब सच पाया जान
खो देगा ईमान जब, खोदेगा ईमान
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कौन किसी का सगा है, सब मतलब के मीत
हार न चाहें- हार ही, पाते जब हो जीत
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निकट न होकर निकट हैं, दूर न होकर दूर
चूर न मद से छोर हैं, सूर न हो हैं सूर
*
इस असार संसार में, खोज रहा है सार
तार जोड़ता बात का, डिजिटल युग बे-तार
*
चल बे घर बेघर नहीं, जो भटके बिन काज
बहुत हुई कविताई अब, कलम घिसे किस व्याज?
*
पटना वाली से कहा, 'पट ना' खाई मार
चित आए पट ना पड़े, अब की सिक्का यार
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धरती पर धरती नहीं, चींटी सिर का भार
सोचे "धर दूँ तो धरा, कैसे सके सँभार?"
*
घटना घट ना सब कहें, अघट न घटना रीत
घट-घटवासी चकित लख, क्यों मनु करे अनीत?
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सिरा न पाये फ़िक्र हम, सिरा न आया हाथ
पटक रहे बेफिक्र हो, पत्थर पर चुप माथ
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बेसिर-दानव शक मुआ, हरता मन का चैन
मनका ले विश्वास का, सो ले सारी रैन
*
करता कुछ करता नहीं, भरता भरता दंड
हरता हरता शांति सुख, धरता धरता खंड
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बजा रहे करताल पर, दे न सके कर ताल
गिनते हैं कर माल फिर, पहनाते कर माल
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जल्दी से आ भार ले, व्यक्त करूँ आभार
असह्य लगे जो भार दें, हटा तुरत साभार
*
हँस सहते हम दर्द जब, देते हैं हमदर्द
अपना पन कर रहा है सब अपनापन सर्द
*
भोग लगाकर कर रहे, पंडित जी आराम
नहीं राम से पूछते, "ग्रहण करें आ राम!"
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घाव हरे हो गये हैं, झरे हरे तरु पात.
शाख-शाख पा रकार रहा, मनुज-दनुज आघात..
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उठ कर से कर चुका, चुका नहीं ईमान.
निर्गुण-सगुण  न मनुज ही, हैं खुद श्री भगवान..
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चुटकी भर सिंदूर से, जीवन भर का साथ.
लिये हाथ में हाथ हँस, जिएँ उठाकर माथ..
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 सौ तन जैसे शत्रु के, सौतन लाई साथ.
रख दूरी दो हाथ की, करती दो-दो हाथ..
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टाँग अड़ाकर तोड़ ली, खुद ही अपनी टाँग.
दर्द सहन करते मगर, टाँग न पाये टाँग..
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कन्याएँ हडताल पर, बैठीं लेकर माँग.
युव आगे आकर भरें, बिन दहेज़ ले माँग..
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काट नाक के बाल हैं, वे प्रसन्न फिलहाल.
करा नाक के बाल ने, हर दिन नया बवाल..
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जड़ तक हम लौटें मगर, जड़ न कभी हों राम.
चेतनता को दूर कर, भाग्य न करना वाम..
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तना रहे जो तना सा, तूफां जाता झेल.
डाल- डाल फल-फूल हँस, लखे भाग्य का खेल..
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फूल न ज्यादा जोड़कर, कहे फूल दे गंध.
झर जाना है एक दिन, तब तक लुटा सुगंध..
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हुई अपर्णा शाख जब, देख अपर्णा मौन.
बौराई- बौरा मिलें, इसका बौरा कौन??
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सृजन-साधना का सु-फल, फल पा हर्षा वृक्ष.
सका साध ना बाँटकर, हुआ संत समकक्ष..
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व्यथित कली तजकर कली, करती मिली विलाप.
'त्याग बेकली', भ्रमर ने कहा, ' न मिलना पाप..'
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खिल-खिल हँसती प्रेयसी, देख पिया को पास.
खिल-खिल पड़ती कली लख, भ्रमर बुझाता प्यास..
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अधर न रहकर अधर पर, टिकी बाँसुरी भीत.
साँस-उसाँस मिलीं गले, सुर से गूँजा गीत.. 
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सर गम को कर कोशिशें, सुर-सरगम को साध.
हुईं सफल उत्साह वर, खुशियाँ बाँट अगाध..
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जीना मुश्किल हो रहा, जी ना कहते आप.
जीना चढ़िए आस का, प्यास सके ना व्याप..

पान मान का लीजिए, मानदान श्रीमान.
कन्या को वर-दान दें, जीवन हो वरदान..

रखा सिया ने लब सिला, रजक मूढ़-वाचाल.
जन-प्रतिनिधि के पाप से, अवध-ग्रास गया काल..

अवध अ-वध-पथ-च्युत हुआ, सच का वध अक्षम्य.
रम्य राम निन्दित हुए, सीता जननि प्रणम्य..

खो-खो कर ईमान- सच, खुद से खुद ही हार.
खो-खो खेलें झूठ संग, मानव-मति बलिहार..

मत ललचा आकाश यूं, बाँहों में आ काश.
गले दामिनी के लागून, तोड़ देह का पाश..

कंठ कर रहे तर लिये, अपने मन में आस.
तर जाएँ भव-समुद से,  ले अधरों पर आस..

अधिक न ढीला छोड़ या, मत कस तार-सितार.
राग और वैराग का, सके समन्वय तार..

तारा दिप दिप दमकता, अगर न तारानाथ
तारा तारानाथ को, रवि ने किया सनाथ  
मंजूषा खुश हो रही, पा यादें गुलकंद
मञ्जूष महका रही, बगिया दे मकरंद
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सुमन सुमन उपहार पा, प्रभु को नमन हजार
सुरभि बिखेरें हम 'सलिल ', दस दिश रहे बहार
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जिससे मिलकर हर्ष हो, उससे मिलना नित्य
सुख न मिले तो सुमिरिए, प्रभु को वही अनित्य
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पर्व
होली

होली हो ली हो रही, होली हो ली हर्ष
हा हा ही ही में सलिल, है सबका उत्कर्ष
होली = पर्व, हो चुकी, पवित्र, लिए हो
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रंग रंग के रंग का, भले उतरता रंग
प्रेम रंग यदि चढ़ गया कभी न उतरे रंग
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पड़ा भंग में रंग जब, हुआ रंग में भंग
रंग बदलते देखता, रंग रंग को दंग
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शब्द-शब्द पर मल रहा, अर्थ अबीर गुलाल
अर्थ-अनर्थ न हो कहीं, मन में करे ख़याल
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पिच् कारी दीवार पर, पिचकारी दी मार
जीत गई झट गंदगी, गई सफाई हार
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