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रविवार, 19 जनवरी 2020

दोहा गाथा सनातन पाठ ७ - ७ मार्च २००९

Saturday, March 07, 2009


दोहा गाथा सनातन पाठ ७ दोहा शिव-आराधना


दोहा 'सत्' की साधना, करें शब्द-सुत नित्य.
दोहा 'शिव' आराधना, 'सुंदर' सतत अनित्य.


अरुण जी, मनु जी एवं पूजा जी ने दोहा के साथ कुछ यात्रा की, इसलिए दोहा उनके साथ रहे यह स्वाभाविक है. संगत का लाभ 'तन्हा' जी को भी मिला है.

अद्भुत पूजा अरुण की, कर मनु तन्हा धन्य.
'सलिल' विश्व दीपक जला, दीपित दिशा अनन्य.

कविता से छल कवि करे, क्षम्य नहीं अपराध.
ख़ुद को ख़ुद ही मारता, जैसे कोई व्याध.


पूजा जी पहले और तीसरे चरण में क्रमशः 'कान्हा' को 'कान्ह' तथा 'हर्षित माता देखकर' परिवर्तन करने से दोष दूर हो जाता है.

गोष्ठी ६ के आरम्भ में दिए दोहों के भाव तथा अर्थ संभवतः सभी समझ गए हैं इसलिए कोई प्रश्न नहीं है. अस्तु...

तप न करे जो वह तपन, कैसे पाये सिद्धि?
तप न सके यदि सूर्ये तो, कैसे होगी वृद्धि?


उक्त दोहा में 'तप' शब्द के दो भिन्न अर्थ तथा उसमें निहित अलंकार का नाम बतानेवालों को दोहा का उपहार मिलेगा. तपन जी! आपके दोहे में मात्राएँ अधिक हैं. आपत्ति न हो तो इस तरह कर लें-

नमन करुँ आचार्य को, पकडूं अपने कान.
सदा चाहता सीखना, देते रहिये ज्ञान.


हिन्दी दोहा में ३ मात्राएँ प्रयोग में नहीं लाई जातीं. आधे अक्षर को उसके पहलेवाले अक्षर के साथ संयुक्त कर मात्रा गिनी जाती है. एक बार प्रयास और करें ग़लत हुआ तो सुधारकर दिखाऊँगा.

अजित अमित औत्सुक्य ही, -- पहला चरण, १३ मात्राएँ
१ १ १ १ १ १ २ २ १ २ = १३
भरे ज्ञान - भंडार. -- दूसरा चरण, ११ मात्राएँ
१ २ २ १ २ २ १ = ११
मधु-मति की रस सिक्तता, -- तीसरा चरण, १३ मात्राएँ
१ १ १ १ २ १ १ २ १ २ = १३
दे आनंद अपार. -- चौथा चरण, ११ मात्राएँ
२ २ २ १ १ २ १ = ११ मात्राएँ.

दो पंक्तियाँ (पद) तथा चार चरण सभी को ज्ञात हैं. पहली तथा तीसरी आधी पंक्ति (चरण) दूसरी तथा चौथी आधी पंक्ति (चरण) से अधिक लम्बी हैं क्योकि पहले एवं तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ हैं जबकि दूसरे एवं चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ हैं. मात्रा से दूर रहनेवाले विविध चरणों को बोलने में लगने वाले समय, उतर-चढाव तथा लय का ध्यान रखें.

दूसरे एवं चौथे चरण के अंत पर ध्यान दें. किसी भी दोहे की पंक्ति के अंत में दीर्घ, गुरु या बड़ी मात्रा नहीं है. दोहे की पंक्तियों का अंत सम (दूसरे, चौथे) चरण से होता है. इनके अंत में लघु या छोटी मात्रा तथा उसके पहले गुरु या बड़ी मात्रा होती ही है. अन्तिम शब्द क्रमशः भंडार तथा अपार हैं. ध्यान दें की ये दोनों शब्द गजल के पहले शे'र की तरह सम तुकांत हैं दोहे के दोनों पदों की सम तुकांतता अनिवार्य है. भंडार तथा अपार का अन्तिम अक्षर 'र'
लघु है जबकि उससे ठीक पहले 'डा' एवं 'पा' हैं जो गुरु हैं. अन्य दोहो में इसकी जांच करिए तो अभ्यास हो जाएगा.
पाठ ६ में बताया गया अगला नियम -- (' पहले तथा तीसरे चरण के आरम्भ में जगण = जभान = १२१ का प्रयोग एक शब्द में वर्जित है किंतु दो शब्दों में जगण हो तो वर्जित नहीं है.') की भी इसी प्रकार जांच कीजिये. इस नियम के अनुसार पहले तथा तीसरे चरण के प्रारम्भ में पहले शब्द में लघु गुरु लघु (१+२+१+४) मात्राएँ नहीं होना चाहिए. उक्त दोहों में इस नियम को भी परखें. किसी दोहे में दोहाकार की भूल से ऐसा हो तो वह दोहा पढ़ते समय लय भंग होती है. दो शब्दों के बीच का विराम इन्हें संतुलित करता है. अस नियम पर विस्तार से चर्चा बाद में होगी.
पाठ ६ में बताया गया अन्तिम नियम दूसरे तथा चौथे चरण के अंत में तगण = ताराज = २२१, जगण = जभान = १२१ या नगण = नसल = १११ होना चाहिए. शेष गणों के अंत में गुरु या दीर्घ मात्रा = २ होने के कारण दूसरे व चौथे चरण के अंत में प्रयोग नहीं होते.
एक बार फ़िर गण-सूत्र देखें- 'य मा ता रा ज भा न स ल गा'

गण का नाम विस्तार
यगण यमाता १+२+२
मगण मातारा २+२+२
तगण ताराज २+२+१
रगण राजभा २+१+२
जगण जभान १+२+१
भगण भानस २+१+१
नगण नसल १+१+१
सगण सलगा १+१+२

उक्त गण तालिका में केवल तगण व जगण के अंत में गुरु+लघु है. नगण में तीनों लघु है. इसका प्रयोग कम ही किया जाता hai. नगण = न स ल में न+स को मिलकर गुरु मात्रा मानने पर सम पदों के अंत में गुरु लघु की शर्त पूरी होती hai.

सारतः यह याद रखें कि दोहा ध्वनि पर आधारित सबसे अधिक पुराना छंद है. ध्वनि के ही आधार पर हिन्दी-उर्दू के अन्य छंद कालांतर में विकसित हुए. ग़ज़ल की बहर भी लय-खंड ही है. लय या मात्रा का अभ्यास हो तो किसी भी विधा के किसी भी छंद में रचना निर्दोष होगी. अजित जी एवं मनु जी क्या इतना पर्याप्त है या और विस्तार?

चलिए, इस चर्चा से आप को हो रही ऊब को यहीं समाप्त कर के रोचक किस्सा कहें और गोष्ठी समाप्त करें.

किस्सा आलम-शेख का...

सिद्धहस्त दोहाकार आलम जन्म से ब्राम्हण थे लेकिन एक बार एक दोहे का पहला पद लिखने के बाद अटक गए. बहुत कोशिश की पर दूसरा पद नहीं बन पाया, पहला पद भूल न जाएँ यह सोचकर उनहोंने कागज़ की एक पर्ची पर पहला पद लिखकर पगडी में खोंस लिया. घर आकर पगडी उतारी और सो गए. कुछ देर बाद शेख नामक रंगरेजिन आयी तो परिवारजनों ने आलम की पगडी मैली देख कर उसे धोने के लिए दे दी.

शेख ने कपड़े धोते समय पगडी में रखी पर्ची देखी, अधूरा दोहा पढ़ा और मुस्कुराई. उसने धुले हुए कपड़े आलम के घर वापिस पहुंचाने के पहले अधूरे दोहे को पूरा किया और पर्ची पहले की तरह पगडी में रख दी. कुछ दिन बाद आलम को अधूरे दोहे की याद आयी. पगडी धुली देखी तो सिर पीट लिया कि दोहा तो गया मगर खोजा तो न केवल पर्ची मिल गयी बल्कि दोहा भी पूरा हो गया था. आलम दोहा पूरा देख के खुश तो हुए पर यह चिंता भी हुई कि दोहा पूरा किसने किया? अपने कॉल के अनुसार उन्हें दोहा पूरा करनेवाले की एक इच्छा पूरी करना थी. परिवारजनों में से कोई दोहा रचना जानता नहीं था. इससे अनुमान लगाया कि दोहा रंगरेज के घर में किसी ने पूरा किया है, किसने किया?, कैसे पता चले?. उन्हें परेशां देखकर दोस्तों ने पतासाजी का जिम्मा लिया और कुछ दिन बाद भेद दिया कि रंगरेजिन शेख शेरो-सुखन का शौक रखती है, हो न हो यह कारनामा उसी का है.

आलम ने अपनी छोटी बहिन और भौजाई का सहारा लिया ताकि सच्चाई मालूम कर अपना वचन पूरा कर सकें. आखिरकार सच सामने आ ही गया मगर परेशानी और बढ़ गयी. बार-बार पूछने पर शेख ने दोहा पूरा करने की बात तो कुबूल कर ली पर अपनी इच्छा बताने को तैयार न हो. आलम की भाभी ने देखा कि आलम का ज़िक्र होते ही शेख संकुचा जाती थी. उन्होंने अंदाज़ लगाया कि कुछ न कुछ रहस्य ज़ुरूर है. ही कोशिश रंग लाई. भाभी ने शेख से कबुलवा लिया कि वह आलम को चाहती है. मुश्किल यह कि आलम ब्राम्हण और शेख मुसलमान... सबने शेख से कोई दूसरी इच्छा बताने को कहा, पर वह राजी न हुई. आलम भी अपनी बात से पीछे हटाने को तैयार न था. यह पेचीदा गुत्थी सुलझती ही ने थी. तब आलम ने एक बड़ा फैसला लिया और मजहब बदल कर शेख से शादी कर ली. दो दिलों को जोड़ने वाला वह अमर दोहा जो पाठक बताएगा उसे ईनाम के तौर पर एक दोहा संग्रह भेट किया जाएगा अन्यथा अगली गोष्ठी में वह दोहा आपको बताया जाएगा.

15 कविताप्रेमियों का कहना है :

रविकांत पाण्डेय का कहना है कि -
आलम ने जो पद लिखा सुनिये चतुर सुजान
इसे सुनकर निश्चित ही सुख पावेंगे कान

"कनक छडी सी कामिनी कटि काहे अतिछीन"

अर्ज करूँ पद दूसरा शेख जिसे लिख दीन
अजब अनूठा काम ये पलभर में ही कीन

"कटि को कंचन काढ़ विधि कुचन माँहि धरि दीन"
तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -
दोहे में जो निहित है, कहते अलंकार यमक
एक तप का अर्थ है तपस्या, दूजा गर्मी से भभक...
Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी का कहना है कि -
बात ठीक से समझ नहीं पाई।

हिन्दी दोहा में ३ मात्राएँ प्रयोग में नहीं लाई जातीं. आधे अक्षर को उसके पहलेवाले अक्षर के साथ संयुक्त कर मात्रा गिनी जाती है.

नमन करुँ आचार्य को, पकडूं अपने कान.
सदा चाहता सीखना, देते रहिये ज्ञान.

सदा ३ मात्रायं हुईं। चाहता में भी चा=२ हता=३

कृपया सोदाहरण समझायें। पोस्ट बहुत अच्छे, मगर उदाहरणों की कमी दिखाई देती है।
सीमा सचदेव का कहना है कि -
tapan j ne alankaar AUR ARATH to pahle hi bataa diya YAMAK ALANKAAR , vahi ham bhi kahenge .

March 11, 2009


दोहा गाथा सनातन - गोष्ठी : ७ दोहा दिल में ले बसा


दोहा दिल में ले बसा, कर तू सबसे प्यार.
चेहरे पर तब आएगा, तेरे 'सलिल' निखार.

सरस्वती को नमन कर, हुई लेखनी धन्य.
शब्द साधना से नहीं, श्रेष्ट साधना अन्य.

रमा रहा जो रमा में, उससे रुष्ट रमेश.
भक्ति-शक्ति से दूर वह, कैसे लखे दिनेश.

स्वागत में ऋतुराज के, दोहा कहिये मीत.
निज मन में उल्लास भर, नित्य लुटाएं प्रीत.

मन मथ मन्मथ जीत ले, सत-शिव-सुंदर देख.
सत-चित-आनंद को 'सलिल', श्वास-श्वास अवरेख


पाठ ४ के प्रकाशन के समय शहर से बाहर भ्रमण पर होने का कारण उसे पढ़कर तुंरत संशोधन नहीं करा सका. गण संबंधी चर्चा में मात्राये गलत छप गयी हैं. डॉ. श्याम सखा 'श्याम' ने सही इंगित किया है. उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद.
गण का सूत्र ''यमाताराजभानसलगा' है. हर अक्षर से एक गण बनता है, जो बाद के दो अक्षरों के साथ जुड़कर अपनी मात्राएँ बताता है.

य = यगण = यमाता = लघु+गुरु+गुरु = १+२+२ = ५
म = मगण = मातारा = गुरु+गुरु+गुरु = २+२+२ = ६
त = तगण = ताराज = गुरु+गुरु+लघु = २+२+१ = ५
र = रगण = राजभा = गुरु+लघु+गुरु = २+१+२ = ५
ज = जगण = जभान = लघु+गुरु+लघु = १+२+१ = ४
भ = भगण = भानस = गुरु+लघु+लघु = २+१+१ = ४
न = नगण = नसल = लघु+लघु+लघु = १+१+१ = ३
स = सगण = सलगा = लघु+लघु+गुरु = १+१+२ = ४


पाठ में टंकन की त्रुटि होने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. मैं अच्छा टंकक नहीं हूँ, युग्म के लिए पहली बार यूनिकोड में प्रयास किया है. अस्तु...

हिन्दी को पिंगल तथा व्याकरण संस्कृत से ही मिला है. इसलिए प्रारम्भ में उदाहरण संस्कृत से लिए हैं. पाठों की पुनरावृत्ति करते समय हिन्दी के उदाहरण लिए जाएँगे.

पाठ छोटे रखने का प्रयास किया जा रहा है. अजीत जी का अनुरोध शिरोधार्य. मनु जी अभी तो मैं स्वयं ही दोहा सागर के किनारे खडा, अन्दर उतरने का साहस जुटा रहा हूँ. दोहा सागर की गहराई तो बिरले ही जान पाए हैं.

पूजा जी! आपने दोहा को गंभीरता से लिया, आभार. आधे अक्षर का उच्चारण उससे पहलेवाले अक्षर के साथ जोडकर किया जाता है. संयुक्त (दो अक्षरों से मिलकर बनी) ध्वनि का उच्चारण दीर्घ या गुरु होता है, जिसकी मात्राएँ २ होती हैं. 'ज्यों' में आधे ज = 'ज्' तथा 'यों' का उच्चारण अलग-अलग नहीं किया जाता. एक साथ बोले जाने के कारण 'ज्' 'यों' के साथ जुड़ता है जिससे उसका उच्चारण समय 'यों' में मिल जाता है. एक प्रयोग करें- 'ज्यों', 'त्यों' तथा 'यों' को १०-१० बार अलग-अलग बोलें और बोलने में लगा समय जांचें. आप देखेंगी की तीनों को बोलने में सामान समय लगा. इसलिए 'यों' की तरह 'ज्यों', 'त्यों' की मात्रा २ होगी.

'ज्यों जीवन-नादान' की मात्राएँ २+२+१+१+२+२+१=११' हैं.

तप न करे जो वह तपन, कैसे पाये सिद्धि?
तप न सके यदि सूर्ये तो, कैसे होगी वृद्धि?

दोहे में जो निहित है, कहते अलंकार यमक
एक तप का अर्थ है तपस्या, दूजा गर्मी से भभक...


तपन जी! शाबास. आपने 'तप' शब्द के दोनों अर्थ सही बताये हैं. अलंकार भी सही बताया जबकि अभी कक्षा में अलंकार की चर्चा हुई ही नहीं है. आपके दोहे काप्रथम चरण सही है. दूसरे चरण में १३ मात्राएँ हैं जबकि ११ होनी चाहिए. तीसरे चरण में १७ मात्राओं के स्थान पर १३ तथा चौथे चरण में १३ मात्राओं के स्थान पर ११ मात्राएँ होना चाहिए. इसे कुछ बदलकर इस तरह लिखा जा सकता है-

तप का आशय तपस्या,
१ १ २ २ १ १ १ २ १ = १३
या गर्मी की भभक.
२ २ २ २ १ १ १ = ११
शब्द एक दो अर्थ हैं,
१ १ १ २ १ २ २ १ २ = १३
अलंकार है यमक.
१ २ २ १ २ १ १ १ = ११

रविकांत पाण्डेय जी आपको भी बधाई. आपने बिलकुल सही बूझा है.

आलम ने जो पद लिखा सुनिये चतुर सुजान
इसे सुनकर निश्चित ही सुख पावेंगे कान

"कनक छडी सी कामिनी कटि काहे अतिछीन"
अर्ज करूँ पद दूसरा शेख जिसे लिख दीन
अजब अनूठा काम ये पलभर में ही कीन
"कटि को कंचन काढ़ विधि कुचन माँहि धरि दीन"
आपके उक्त दोनों दोहे बिलकुल ठीक हैं.


आलम की पंक्ति -- "कनक छडी सी कामिनी, कटि काहे अति छीन"

शेख की पंक्ति -- "कटि को कंचन काट विधि, कुचन माँहि धरि दीन"


हिन्दी दोहा में ३ मात्राएँ प्रयोग में नहीं लाई जातीं. आधे अक्षर को उसके पहलेवाले अक्षर के साथ संयुक्त कर मात्रा गिनी जाती है.

नमन करुँ आचार्य को, पकडूं अपने कान.
सदा चाहता सीखना, देते रहिये ज्ञान.
सदा ३ मात्रायं हुईं। चाहता में भी चा=२ हता=३

मानसी जी! मात्राएँ अक्षर की गिनिए, शब्द की नहीं, सदा की मात्राएँ स = १ + दा = २ कुल ३ हैं, इसी तरह चाहता की मात्राएँ चा= २ + ह = १ + ता = २ कुल ५ हैं. अपवाद को छोड़कर हिन्दी दोहे में एक अक्षर में ३ मात्राएँ नहीं होतीं.
रविकांत जी तथा तपन जी को दोहे का उपहार होली के अवसर पर देते हुए प्रसन्नता है-

तपन युक्त रविकांत यों, ज्यों मल दिया गुलाल.
पिचकारी ले मानसी, करती भिगा धमाल.


गप्प गोष्ठी में सुनिए एक सच्चा किस्सा.. बुंदेलखंड में एक विदुषी-सुन्दरी हुई है राय प्रवीण. वे महाकवि केशवदास की शिष्या थीं. नृत्य, गायन, काव्य लेखन तथा वाक् चातुर्य में उन जैसा कोई अन्य नहीं था. दिल्लीपति मुग़ल सम्राट अकबर से दरबारियों ने राय प्रवीण के गुणों की चर्चा की तथा उकसाया कि ऐसे नारी रत्न को बादशाह के दामन में होना चाहिए. अकबर ने ओरछा नरेश को संदेश भेजा कि राय प्रवीण को दरबार में हाज़िर किया जाए. ओरछा नरेश धर्म संकट में पड़े. अपनी प्रेयसी को भेजें तो राजसी आन तथा राजपूती मान नष्ट होने के साथ राय प्रवीण की प्रतिष्ठा तथा सतीत्व खतरे में पड़ता है, बादशाह का आदेश न मानें तो शक्तिशाली मुग़ल सेना के आक्रमण का खतरा.

राज्य बचाएँ या प्रतिष्ठा? उन्हें धर्म संकट में देखकर राय प्रवीण ने गुरुवर महाकवि केशवदास की शरण गही. महाकवि ने ओरछा नरेश को राजधर्म का पालन करने की राय दी तथा राय प्रवीण को सम्मान सहित सकुशल वापिस लाने का वचन दिया.

अकबर के दरबार में महाकवि तथा राय प्रवीण उपस्थित हुए. अकबर ने महाकवि का सम्मान करने के बाद राय प्रवीण को तलब किया. राय प्रवीण को ऐसे कठिन समय में भरोसा था अपनी त्वरित बुद्धि और कमर में खुंसी कटार का. लेकिन एन वक्त पर दोहा उनका रक्षक बनकर उनके काम आया. राय प्रवीण ने बादशाह को सलाम करते हुए एक दोहा कहा. दोहा सुनते ही दरबार में सन्नाटा छा गया.
बादशाह ने ओरछा नरेश के पास ऐसा नारी रत्न होने पर मुबारकबाद दी तथा राय प्रवीण को न केवल सम्मान सहित वापिस जाने दिया अपितु कई बेशकीमती नजराने भी दिए. क्या आप वह दोहा सुनना चाहते हैं जिसने राय प्रवीण लाज रख ली? वह अमर दोहा बताने वाले पाठक को उपहार में मिलेगा एक दोहा.

34 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -
होली की रंगकामनायें स्‍वीकारें।
Sulabh Jaiswal "सुलभ" का कहना है कि -
मन को मोरा झकझोरे छेड़े है कोई राग
रंग अल्हड़ लेकर आयो रे फिर से फाग
आयो रे फिर से फाग हवा महके महके
जियरा नहीं बस में बोले बहके बहके...

आदरणीय हिंदी ब्लोगेर्स को होली की शुभकामनाएं और साथ में होली और हास्य
धन्यवाद.
manu का कहना है कि -
आचार्या को प्रणाम,,,,होली की शुभकामनायें.....
दोहा मैं लिखने ही जा रहा था,, एक दोहा मिलने के लालच में ,,,
पर आपसे ही लिया ज्ञान ,,आपके ही सम्मुख बखानने का मन नहीं हुआ,,,,,,
कुछ बेईमानी सी लगी,,,,,अतः किसी और को ही try करने दिया जाय,,,
रविकांत पाण्डेय का कहना है कि -
श्रोता मगन हो सुनिये दोहा सन्मुख आज।
चतुर रायप्रवीन की रख ली जिसने लाज॥

बिनति रायप्रवीन की सुनिये शाह सुजान।
जूठी पातर खात हैं बारी बायस स्वान॥
तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -
प्रणाम आचार्य...
समयाभाव के कारण यह पाठ नहीं पढ़ पाया हूँ। जल्द ही पढूँगा...
अलंकार तो बचपन में पढे़ थे.. अब तो भूलभाल गया हूँ। आशा है आप याद दिला देंगे अपने पाठों में..
होली की बधाई...
manu का कहना है कि -
ekdam sahi,,,,,,,,,,,,
अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -
रसगुल्‍ले जैसे लगा, यह दोहे का पाठ
सटसट उतरा मगज में, धन्‍य हुए पा ज्ञान।
एक स्वतन्त्र नागरिक का कहना है कि -
वो दोहा है

विनती राय प्रवीन की सुनिए शाह सुजान
जूठी पातर खात है बारी बायस स्वान
Pooja Anil का कहना है कि -
बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी, आपने मेरी दुविधा दूर कर दी है.

राय प्रवीण का दोहा तो पता नहीं है, पर कहानी बहुत ही रुचिकर है , हमारे साथ बांटने के लिए आभार.

अलंकार के बारे में जानने की उत्सुकता है.
पूजा अनिल
अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -
आचार्यजी ,
वास्तव में कक्षा में रह अभ्यास करना एक सुखद अनुभव लग रहा है |
आपको इस सब के लिए पुन: धन्यवाद |

यदि नीचे के दोहा में गलती हो तो संकेत दीजियेगा -

उत्तम है इस बार का
१२१ २ ११ २१ 2
दोहा गाथा सात |
22 22 21
आस है आचार्य से
21 2 222 2
करत रहे ऐसी बात |
111 12 22 २१


अवनीश तिवारी
Anonymous का कहना है कि -
avnish ji
aakhiri part mein 13 maatraayein ho gayee hain... change karna hoga...11 kijiye
manu का कहना है कि -
tiwari ji ,doosri laain mein gad bad lag rahi hai,,,,
baaki aachaaryaa ji hi bataa paayenge,,,

yaa agar aapne gin kar kahaa ho to shaayad sahi ho,,,mujhe to ginti aati nahi
rahulusha का कहना है कि -
good

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