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मंगलवार, 10 अगस्त 2021

विमर्श: साधना, बुद्धिमान

विमर्श:
साधना क्या है....
पत्थर पर एकाएक बहुत सा पानी डाल दिया जाए तो पत्थर केवल भीगेगा, फिर पानी बह जाएगा और पत्थर सूख जाएगा किन्तु वह पानी पत्थर पर एक ही जगह पर बूँद-बूँद गिरता रहेगा, तो पत्थर में छेद होगा और कुछ दिनों बाद पत्थर टूट भी जाएगा। कुएं में पानी भरते समय एक ही स्थान पर रस्सी की रगड़ से पत्थर और लोहे पर निशान पड़कर अंत में वह टूट जाता है 'रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान'। इसी प्रकार निश्चित स्थान पर ध्यान की साधना की जाएगी तो उसका परिणाम अधिक होता है ।
चक्की में दो पाटे होते हैं। उनमें यदि एक स्थिर रहकर, दूसरा घूमता रहे तो अनाज पिस जाता है और आटा बाहर आ जाता है। यदि दोनों पाटे एक साथ घूमते रहेंगे तो अनाज नहीं पिसेगा और परिश्रम व्यर्थ होगा। इसी प्रकार मनुष्य में भी दो पाटे हैं; एक मन और दूसरा शरीर। उसमें मन स्थिर पाटा है और शरीर घूमने वाला पाटा है।
अपने मन को ध्यान द्वारा स्थिर किया जाए और शरीर से सांसारिक कार्य करें। प्रारब्ध रूपी खूँटा शरीर रूपी पाटे में बैठकर उसे घूमाता है और घूमाता रहेगा लेकिन मन रूपी पाटे को सिर्फ भगवान के प्रति स्थिर रखना है। देह को प्रारब्ध पर छोड़ दिया जाए और मन को ध्यान में मग्न कर दिया जाए; यही साधना है।
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विमर्श : बुद्धिमान कौन?
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बिल्ली के सामने मिट्टी या पत्थर का चूहा बना कर रख दें, वह उस पर नहीं झपटती जबकि इंसान मिट्टी-पत्थर की मूरत बनाकर उसके सामने गिड़गिड़ाता रहता है और इसे धर्म कहता है।
कबीरदास कह गए -
काँकर-पाथर जोड़ के मस्जिद लई बनाय
ता चढ़ मुल्ला बांग दे बहिरा हुआ खुदाय
पाहन पूजे हरी मिले तो मैं पूजूँ पहार
ताते या चाकी भली पीस खाय संसार
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मेरे हाथों का बनाया हुआ
पत्थर का है बुत
कौन भगवान है सोचा जाय?
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कंकर कंकर में बसे हैं शंकर भगवान
फिर मूरत क्यों बनाता, रे! मानव नादान?
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