द्विपदी / शे'र
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परवाने जां निसार कर देंगे.
हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..
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तितलियों की चाह में भटको न तुम.
फूल बन महको चली आएँगी ये..
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जब तलक जिन्दा था रोटी न मुहैया थी.
मर गया तो तेरहीं में दावतें हुईं..
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बाप की दो बात सह नहीं पाते
अफसरों की लात भी परसाद है..
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पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.
मैं ढूँढ-ढूँढ हारा, घर एक नहीं मिलता..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021
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