पौन सोरठा
कोरोना के व्याज, अनुशासित हम हो रहे।
घर के करते काज, प्रेम से।।
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थोड़े जिम्मेदार, हुए आजकल हम सभी।
आपस में तकरार, घट गई।।
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खूब हो रहा प्यार, मत उत्पादन बढ़ाना।
बंद घरों के द्वार, आजकल।।
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तबलीगी लतखोर, बातों से मानें नहीं।
मनुज वेश में ढोर, जेल दो।
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संजीव
१५-४-२०२०
९४२५१८३२४४
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