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शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

नवगीत सुनो शहरियों!

नवगीत 
सुनो शहरियों!
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
सुनो शहरियों! 
पिघल ग्लेशियर 
सागर का जल उठा रहे हैं 
जल्दी भागो। 

माया नगरी नहीं टिकेगी 
विनाश लीला नहीं रुकेगी 
कोशिश पार्थ पराजित होगा 
श्वास गोपिका पुन: लुटेगी 
बुनो शहरियों !
अब मत सपने 
खुद से खुद ही ठगा रहे हो 
मत अनुरागो

संबंधों के लाक्षागृह में  
कब तक खैर मनाओगे रे! 
प्रतिबंधों का, अनुबंधों का  
कैसे क़र्ज़ चुकाओगे रे! 
उठो शहरियों !
बेढब नपने 
बना-बना निज श्वास घोंटते  
यह लत त्यागो 

साँपिन छिप निज बच्चे सेती   
झाड़ी हो या पत्थर-रेती  
खेत हो रहे खेत सिसकते  
इमारतों की होती खेती 
धुनो शहरियों !
खुद अपना सिर  
निज ख्वाबों का खून करो 
सोओ, मत जागो 
***
संजीव 
१५-११-२०१९ 

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