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शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

सरस्वती स्तवन बृज

सरस्वती स्तवन
बृज
*
मातु! सुनौ तुम आइहौ आइहौ,
काव्य कला हमकौ समुझाइहौ
फेर कभी मुख दूर न जाइहौ
गीत सिखाइहौ, बीन बजाइहौ
श्वेत वदन है, श्वेत वसन है
श्वेत लै वाहन दरस दिखाइहौ
छंद सिखाइहौ, गीत सुनाइहौ,
ताल बजाइहौ, वाह दिलाइहौ
*
सुर संधान की कामना है मोहे
ताल बता दीजै मातु सरस्वती
छंद की; गीत की चाहना है इतै,
नेकु सिखा दीजै मातु सरस्वती
आखर-शब्द की, साधना नेंक सी
रस-लय दीजै मातु सरस्वती
सत्य समय का; बोल-बता सकूँ
सत-शिव दीजै मातु सरस्वती
*
शब्द निशब्द अशब्द कबै भए,
शून्य में गूँज सुना रय शारद
पंक में पंकज नित्य खिला रय;
भ्रमरों लौं भरमा रय शारद
शब्द से उपजै; शब्द में लीन हो,
शब्द को शब्द ही भा रय शारद
ताल हो; थाप हो; नाद-निनाद हो
शब्द की कीर्ति सुना रय शारद।
*
संजीव
२२-११-२०१९

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