मुक्तिका
*
नेह नर्मदा बहने दे
मन को मन की कहने दे
*
बिखरे गए रिश्ते-नाते
फ़िक्र न कर चुप तहने दे
*
अधिक जोड़ना क्यों नाहक
पीर पुरानी सहने दे
*
देह सजाते उम्र कटी
'सलिल' रूह को गहने दे
*
काला धन जिसने जोड़ा
उसको थोड़ा दहने दे
*
मुक्तक-
बिखर जाओ फिजाओं में चमन को आज महाकाओ
बजा वीणा निगम-आगम कहें जो सत्य वह गाओ
अनिल चेतन हुआ कैलाश पर श्री वास्तव में पा
बनो हीरो, तजो कटुता, मधुर मन मंजु हो जाओ
*
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नेह नर्मदा बहने दे
मन को मन की कहने दे
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बिखरे गए रिश्ते-नाते
फ़िक्र न कर चुप तहने दे
*
अधिक जोड़ना क्यों नाहक
पीर पुरानी सहने दे
*
देह सजाते उम्र कटी
'सलिल' रूह को गहने दे
*
काला धन जिसने जोड़ा
उसको थोड़ा दहने दे
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मुक्तक-
बिखर जाओ फिजाओं में चमन को आज महाकाओ
बजा वीणा निगम-आगम कहें जो सत्य वह गाओ
अनिल चेतन हुआ कैलाश पर श्री वास्तव में पा
बनो हीरो, तजो कटुता, मधुर मन मंजु हो जाओ
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