नवगीत
सड़क पर
*
सड़क पर
सिसकती-घिसटती
हैं साँसें।
*
इज्जत की इज्जत
यहाँ कौन करता?
हल्ले के हाथों
सिसक मौन मरता।
झुठला दे सच,
अफसरी झूठ धाँसे।
सड़क पर
*
सड़क पर
सिसकती-घिसटती
हैं साँसें।
*
इज्जत की इज्जत
यहाँ कौन करता?
हल्ले के हाथों
सिसक मौन मरता।
झुठला दे सच,
अफसरी झूठ धाँसे।
जबरा यहाँ जो
वही जीतता है।
सच का घड़ा तो
सदा रीतता है।
शरीफों को लुच्चे
यहाँ रोज ठाँसें।
*
सौदा मतों का
बलवा कराता।
मज़हबपरस्तों
को, फतवा डरता।
सतत लोक को तंत्र
देता है झाँसे।
*
यहाँ गूँजते हैं
जुलूसों के नारे।
सपनों की कोशिश
नज़र हँस उतारे।
भोली को छलिए
बिछ जाल फाँसें।
*
विरासत यही तो
महाभारती है।
सत्ता ही सत को
रही तारती है
राजा के साथी
हुए हाय! पाँसे।
*
२०.१.२०१८
वही जीतता है।
सच का घड़ा तो
सदा रीतता है।
शरीफों को लुच्चे
यहाँ रोज ठाँसें।
*
सौदा मतों का
बलवा कराता।
मज़हबपरस्तों
को, फतवा डरता।
सतत लोक को तंत्र
देता है झाँसे।
*
यहाँ गूँजते हैं
जुलूसों के नारे।
सपनों की कोशिश
नज़र हँस उतारे।
भोली को छलिए
बिछ जाल फाँसें।
*
विरासत यही तो
महाभारती है।
सत्ता ही सत को
रही तारती है
राजा के साथी
हुए हाय! पाँसे।
*
२०.१.२०१८
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