एक रचना:
जोड़े हाथ
*
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
*
दोषी मानो
या पूजो,
पर छलो न खुद को।
करो सियासत
जी भरकर
पर ठगो न उसको।
मंदिर-मस्जिद
तोड़-बनाओ
बिन श्रद्धा क्यों
नत हो माथ?
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
*
लोकतंत्र का
यही तकाजा
रंग-रंग के फूल संग हों।
सहमत हों या
रहें असहमत,
किंतु बाग में शत-शत रंग हों।
दिल हो दिल में
हाथ-हाथ में,
भले न हों पर
सब हों साथ।
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
*
क्यों हों मुक्त
एक दूजे से?
दिया दैव ने हमको बाँध।
श्वास न बाकी
रही अगर तो
मरघट तक भी देंगे काँध।
जिएँ याद में
एक-दूजे की
राष्ट्र-देव है
सबका नाथ।
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
**
संजीव
३०-१-२०१९
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 30 जनवरी 2019
नवगीत
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें