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बुधवार, 30 जनवरी 2019

नवगीत

एक रचना:
जोड़े हाथ
*
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
*
दोषी मानो
या पूजो,
पर छलो न खुद को।
करो सियासत
जी भरकर
पर ठगो न उसको।
मंदिर-मस्जिद
तोड़-बनाओ
बिन श्रद्धा क्यों
नत हो माथ?
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
*
लोकतंत्र का
यही तकाजा
रंग-रंग के फूल संग हों।
सहमत हों या
रहें असहमत,
किंतु बाग में शत-शत रंग हों।
दिल हो दिल में
हाथ-हाथ में,
भले न हों पर
सब हों साथ।
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
*
क्यों हों मुक्त
एक दूजे से?
दिया दैव ने हमको बाँध।
श्वास न बाकी
रही अगर तो
मरघट तक भी देंगे काँध।
जिएँ याद में
एक-दूजे की
राष्ट्र-देव है
सबका नाथ।
गोली मारी
फिर समाधि पर
फूल चढ़ाकर
जोड़े हाथ।
**
संजीव
३०-१-२०१९

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