व्यंग्य लेख:
गरीबी हटाओ और गरीबनवाजू
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तुलसी बब्बा कह गए 'होइहे वही जो राम रचि राखा' मतलब यह कि हम तुच्छ नश्वर कायाधारियों के क्या औकात जो हम कुछ कर सकें। लुटने-पिटने-मिटने लुट-पिट-कट रहे हैं तो इसलिए कि राम ने ऐसा ही रचनाएँ रखा है।
'गरीबी हटाओ' की घोषणा के बाद भी गरीबी न हटी तो घोषणाकर्ता का क्या दोष? दोषी तो राम जी हैं जिन्होंने गरीब और गरीबी को रच रखा है। हम रामभक्त राम के काम को गलत कैसे कह सकते हैं? गरीबों को गरीबी से परहेज है तो सरकार क्या करे?
सर कार पर बैठकर बेसर-पैर की बातें करने के लिए इसीलिए तशरीफ लाते हैं कि गरीब परवर हैं।
तुलसी राम को गरीबनवाजू कहते हैं तो राम गरीबों को अमीर बनाकर अपना रुतबा क्यों घटाएँ? आप ही कहें जब राम जी गरीबनवाजू कहलाने के लिए लोगों को गरीब बनाए रखते हैं तो हम रामभक्त सरकार बनाने और बचाने के लिए वायदों को जुमला बता दें तो क्या गलत है?
राम ने केवट को अवसर दिया कि वह बिना उतराई लिए गंगा पार कराए, चरणों को धोकर पिए और खुद को धन्य माने। राम के भक्त काम का परंपरा का पालन करें और कलियुग के पापी उसे शोषण कहें तो यह उनकी दृष्टि का दोष है।
राम ने शबरी की कुटिया में जाकर जूठे बेर तक नहीं छोड़े, छककर भोग लगाया और बिना दाम चुकाए गुडबाई, टाटा कर लिया। वाल्मीकि से लेकर मुरारी बापू तक किसी ने राम को दोष नहीं दिया। शबरी वंशजों से रामभक्त येन-केन मत लेते हैं तो कम से कम आश्वासन तो देते हैं। इतना ही नहीं हम गरीबपरवर तो छिप-छिपाकर कंबल और दारू भी बाँट देते हैं। इतनी उदारता को बाद भी हमें आदिवासी समाज का शोषक कहा जाए तो घोर अन्याय है।
राम का काम करते जटायु शहीद हुए तो भी राम ने उन्हें कुछ नहीं दिया। हमने तो अपने काम में काम आए मीसाबंदियों को पेंशन दी। चीन्ह-चीन्ह कर रेवड़ी बाँटने का आरोप लगानेवाले भी तो चीन्ह-चीन्ह कर टिकिट बाँटता हैं। ऐसा न होता तो मामा जी के पुनर्जन्म प्राप्ति यग्य में भांजे-भांजी भाँजी न मारते।
मैथिलीशरण जी कहते हैं 'जो है जहाँ राम रहते हैं, वहीं राज वे करते हैं'। राम का गुण काम भत्ते में भी होना ही चाहिए। इसलिए हम रामभक्त जहाँ रहते हैं वहाँ राज्य करने को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते हैं। गोवा में सबसे बड़े दल को मिले जनादेश को मिट्टी में मिलाकर हमने रामभक्त का अभूतपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया है।
राम हमारे और हम राम के हैं। इसलिए अपना काम साधने के लिए राम के नाम को भुनाना हमारा एकाधिकार है।
हम राम मंदिर बनाने का अवसर माँग सत्ता में आएँ, मंदिर न बनाएँ, राम के नाम को बार-बार भुनाएँ, मंदिर बनाएँ या न बनाएँ किसी के बाप का क्या जाता है? यह हमारे और राम जी के बीच की बात है।
राम ने एक बार धरती पर आकर जो कुछ भोगा उसके बाद वे दुबारा अवतार लेने की गल्ती तो करेंगे नहीं जो हमें रोक सकें और अगर दुबारा आ ही गए तो हम उन्हें राम मानने से ही इंकार कर देंगे।
हमें ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता, तुलसी बब्बा कह गए हैं 'राम से अधिक राम कर दासा' सो हमारे इंकार को राम भी स्वीकार में नहीं बदल सकते।
हम शुद्ध समानतावादी हैं। नीरव हो या अंबानी, हम बिना किसी भेदभाव के सबको गले लगा लेते हैं। शिवसेना हो या ममता काम न हो तो सबको धता बता देते हैं। चौकीदार होते हुए भी राजकुमार को आरोपों के कटघरे में घेरकर शाह के साथी बना लेते हैं। बात
गरीबी हटाने की हो या गरीबनवाजू होने की, राम और राम मंदिर हाशिए पर थे और हैं लेकिन इसकी फिक्र हम क्यों करें? तुलसी कह ही गए हैं 'होइहै सोई जे काम रचि राखा' ।
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१० जनवरी २०१९
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 10 जनवरी 2019
व्यंग्य लेख: गरीबी हटाओ और गरीबनवाजू
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