कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

navgeet rar thante

नवगीत :
रार ठानते
*
कल जो कहा 
न आज मानते 
याद दिलाओ
रार ठानते
*
दायें बैठे तो कुछ कहते
बायें पैठे तो झुठलाते
सत्ता बिन कहते जनहित यह
सत्ता पा कुछ और बताते
तर्कों का शीर्षासन करते
बिना बात ही
भृकुटि तानते
कल जो कहा
न आज मानते
*
मत पाने के पहले थे कुछ
मत पाने के बाद हुए कुछ
पहले कभी न तनते देखा
नहीं चाहते अब मिलना झुक
इस की टोपी उस पर धरकर
रेती में से
तेल छानते
कल जो कहा
न आज मानते
*
जनसेवक मालिक बन बैठे
बाँह चढ़ाये, मूँछें ऐंठे
जितनी रोक बढ़ी सीमा पर
उतने ही ज्यादा घुसपैठे
बम भोले को भुला पटक बम
भोले बन त्रुटि
नहीं मानते
कल जो कहा
न आज मानते
*
यह बोले नव छंद बनाया
वह बोले केवल भरमाया
टँगड़ी मारें, टाँग खींचते
सुत हिंदी को रोना आया
हिंगलिश आटा
गूँथ सानते
कल जो कहा
न आज मानते
*
लड़े तेवरी,ग़ज़ल, गीतिका
छंद सृजन का मंच वेदिका
चढ़ा रहे बलि कथ्य-कहन की-
कुरुक्षेत्र है काव्य वीथिका
हुए अमर
मिथ्यानुमानते
कल जो कहा
न आज मानते
*****

कोई टिप्पणी नहीं: