कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

लघुकथा- छाया

लघुकथा
छाया
*
गणतंत्र दिवस, देशभक्ति का ज्वार, भ्रष्टाचार के आरोपों से- घिरा अफसर, मत खरीदार चुनाव जीता नेता,  जमाखोर अपराधी, चरित्रहीन धर्माचार्य और घटिया काम कर रहा ठेकेदार अपना-अपना उल्लू सीधा कर तिरंगे को सलाम कर रहे थे।
आसमान में उड़ रहा तिरंगा निहार रहा था जवान और किसान को जो सलाम नहीं अपना काम कर रहे थे।
उन्हें देख तिरंगे का मन भर आया, आसमान से बोला "जब तक पसीने की हरियाली, बलिदान की केसरिया क्यारी समय चक्र के साथ है तब तक
मुझे कोई झुका नहीं सकता।

सहमत होता हुआ कपसीला बादल तीनों पर कर रहा था छाया।
***

कोई टिप्पणी नहीं: