कार्य शाला-
*
मिथिलेश कुमार:
आदरणीय नमन ।
आपका मार्गदर्शन चाहूँगा ।
१.क्या श्रंगार छंद और महाश्रंगार छन्द में कोई अंतर है ? मैंने महाश्रंगार छंद का विधान खोजने की कोशिश की,परंतु संतोषजनक कुछ मिला नहीं।
२.क्या किसी छंद में यदि १६-१४ की यति पर कोई सृजन हो और चारों पदों का चरणांत हो तो उसे ताटंक तो कहते ही हैं परंतु क्या उसे कुकुभ नहीं मान सकते ? क्योंकि न्यूनतम दो गुरुओं से चरणांत की अनिवार्यता तो वह पूर्ण कर ही रही है ?
उत्तर की अपेक्षा में ।
सादर ।
संजीव वर्मा सलिल
संजीव सलिल
श्रृंगार छंद
*
सोलह मात्रिक संस्कारी जातीय श्रृंगार छंद के आदि में ३ + २ तथा अंत में ३ मात्राओं का विधान है। लघु गुरु क्रम-बंधन नहीं है।
उदाहरण-
फहरती ध्वजा तिरंगी नित्य। सलामी देते वीर अनित्य।।
महाश्रृंगार नाम से कोई छंद मेरी जानकारी में नहीं है।
ताटंक छंद
*
सोलह-चौदह यतिमय दो पद, 'मगण' अंत में आया हो।
रचें छंद ताटंक कर्ण का, आभूषण लहराया हो।।
तीस मात्रिक तैथिक जातीय ककुभ छंद
*
सोलह-चौदह पर यति रखकर, अंत रखें गुरु दो-दो।
ककुभ छंद रच आनंदित हों, छंद फसल कवि बोदो।।
*
आटा और पानी मिला होने के शर्त पूरी होने पर भी पराठे को रोटी नहीं कहा जा सकता।
ताटंक और ककुभ में मात्रिक भर तथा यति समय होने पर भी पदांत का अंतर ही उन्हें अलग करता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें