मुक्तक
*
देश है पहले सियासत बाद में।
शत्रु मारें; हो इनायत बाद में।।
बगावत को कुचल दें हम साथ मिल-
वार्ता की हो रवायत बाद में।।
*
जगह दहशत के लिये कुछ है नहीं।
जगह वहशत के लिए कुछ है नहीं।।
पत्थरों को मिले उत्तर गनों से -
जगह रहमत के लिए कुछ है नहीं।।
*
सैनिकों को टोंकना अपराध है।
फ़ौज के पग रोकना अपराध है।।
पठारों को फूल मत दें शूल दें-
देश से विद्रोह भी अपराध है।।
*
*
देश है पहले सियासत बाद में।
शत्रु मारें; हो इनायत बाद में।।
बगावत को कुचल दें हम साथ मिल-
वार्ता की हो रवायत बाद में।।
*
जगह दहशत के लिये कुछ है नहीं।
जगह वहशत के लिए कुछ है नहीं।।
पत्थरों को मिले उत्तर गनों से -
जगह रहमत के लिए कुछ है नहीं।।
*
सैनिकों को टोंकना अपराध है।
फ़ौज के पग रोकना अपराध है।।
पठारों को फूल मत दें शूल दें-
देश से विद्रोह भी अपराध है।।
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें