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बुधवार, 23 जनवरी 2019

muktak

मुक्तक 
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देश है पहले सियासत बाद में। 
शत्रु मारें; हो इनायत बाद में।।
बगावत को कुचल दें हम साथ मिल-
वार्ता की हो रवायत बाद में।।
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जगह दहशत के लिये कुछ है नहीं।
जगह वहशत के लिए कुछ है नहीं।।
पत्थरों को मिले उत्तर गनों से -
जगह रहमत के लिए कुछ है नहीं।।
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सैनिकों को टोंकना अपराध है।
फ़ौज के पग रोकना अपराध है।।
पठारों को फूल मत दें शूल दें-
देश से विद्रोह भी अपराध है।।
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