एक कुण्डलिनी
*
बोल भारती आप, भारत माँ को नमन कर।
मंजिल वरिए झूम, हरसंभव सब जतन कर।।
हर संभव सब जतन कर, हरा हार को जीत।
हार पहनिए जीत का, लुटा मीत पर प्रीत।।
अपने दिल का द्वार तू, जहाँ-तहाँ मत खोल।
बात मधुर सौ बार कह, कड़वा सच मत बोल।।
***
संजीव, ७९९९५५९६१८
मंजिल वरिए झूम, हरसंभव सब जतन कर।।
हर संभव सब जतन कर, हरा हार को जीत।
हार पहनिए जीत का, लुटा मीत पर प्रीत।।
अपने दिल का द्वार तू, जहाँ-तहाँ मत खोल।
बात मधुर सौ बार कह, कड़वा सच मत बोल।।
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संजीव, ७९९९५५९६१८
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