मुक्तक
श्री वास्तव में मिले जब, हो मन में संतोष।
संस्कारधानी करे, सारस्वत जयघोष।।
बोल रही हैं हवा में, बंद मुट्ठियाँ सत्य-
अजर अमर अभिव्यक्ति का, रीते कभी न कोष।।
*
किरण-वरण स्वदेश कर, मिटे तभी तिमिर सघन।
प्रीति-चाँदनी हँसे, सुर करें विनत भजन।।
अधर धरे सुहास हों, नयन सपन बिखेरते-
सलिल सदैव साथ हो, करे सतत सृजन यजन।।
*
प्रीति-चाँदनी हँसे, सुर करें विनत भजन।।
अधर धरे सुहास हों, नयन सपन बिखेरते-
सलिल सदैव साथ हो, करे सतत सृजन यजन।।
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें