दोहा की दीपावली
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दोहा की दीपावली, तेरह-ग्यारह दीप
बाल 'सलिल' के साथ मिल, मन हो तभी समीप
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गो-वर्धन गोपाल बन, करें शुद्ध पय-पान
अन्न-कूट कर पकाकर, खाएँ हो श्री-वान
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जो अव्यक्त है उसी को, व्यक्त करे हर पर्व
जुड़ औरों की म्द्द्कर, करिए खुद पर गर्व
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शांत न रहिए शांत अब, है समाज दिग्भ्रांत
कूड़ा फैला पर्व पर, गर्व करे संभ्रांत
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श्री वास्तव में पा सकें, तब जब बाँटें प्रीत
गुण पूजन की बढ़ सके, 'सलिल' जगत में रीत
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बहिना का आशीष ही, भाई की तकदीर
शुभाशीष पा बहिन का, भाई होता वीर
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मंजु मूर्ति श्री लक्ष्मी, महिमावान गणेश
सदा सदय हों नित मिले, कीर्ति -समृद्धि अशेष
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दीप-कांति उजियार दे, जीवन भरे प्रकाश
वामन-पग भी छू सकें, हाथ उठा आकाश
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दूरभाष चलभाष हो, या सम्मुख संवाद
भाष सुभाष सदा करे, स्नेह-जगत आबाद
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अमन-चैन रख सलामत, निभा रहे कुछ फर्ज़
शेष तोड़ते हैं नियम, लाइलाज यह मर्ज़
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लागू कर पायें नियम, भेदभाव बिन मित्र!
तब यह निश्चय मानिए, बदल सकेगा चित्र
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शशि तम हर उजियार दे, भू को रहकर मौन
कर्मव्रती ऐसा कहाँ, अन्य बताये कौन?
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यथातथ्य बतला सके, संजय जैसी दृष्टि
कर सच को स्वीकार-बढ़, करे सुखों की वृष्टि
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खुद से आँख मिला सके, जो वह है रणवीर
तम को आँख दिखा सके, रख दीपक सम धीर
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शक-सेना को जीत ले, जिसका दृढ़ विश्वास
उसकी आभा अपरिमित, जग में भरे उजास
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वर्मा वह जो सच बचा लें, करे असत का नाश
तभी असत के तिमिर का, होगा 'सलिल' विनाश
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हर रजनी दीपावली, अगर कृपालु महेश
हर दिन को होली करें, प्रमुदित उमा-उमेश
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आशा जिसके साथ हो, होता वही अशोक
स्वर्ग-सदृश सुख भोगता, स्वर्ग बने भू लोक
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श्याम अमावस शुक्ल हो, थाम कांति का हाथ
नत मस्तक करता 'सलिल', नमन जोड़कर हाथ
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तिमिर अमावस का हरे, शुक्ल करे रह मौन
दींप वंद्य है जगत में, कहें दूसरा कौन?
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जो चाहें राजेश हों, पहले करे प्रयास
दीप-वर्तिका बन जले, तब हो दीप्त उजास
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संजीव, ३१-१०-२०१६
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