हिंदी के नए छंद
कुण्डलिनी छंद
*
लक्षण:
षट्पदिक्, द्वादश चरणीय, एक सौ चवालीस मात्रिक
वैशिष्ट्य:
कुण्डलिया से साम्य-
१. दोनों ६ पदीय।
२. दोनों में १२ चरण।
३. दोनों में १४४ मात्राएँ।
४. दोनों में आदि-अंत में समान शब्द या शब्द-युग्म।
५. दोनों में चौथे चरण की पांचवे चरण के रूप में पुनरावृत्ति।
६. दोनों में २ छंदों का प्रयोग।
कुण्डलिया से अंतर
१. कुण्डलिया का आरम्भ दोहा (१३-११) से, कुण्डलिनी का सोरठा (११-१३) से।
२. कुण्डलिया में दूसरा छंद रोला (११-१३), कुण्डलिनी में दो दोहे (१३-११)।
३. कुण्डलिया का अंत गुरु से हो सकता है, कुण्डलिनी का अंत लघु से ही होता है।
४. कुण्डलिनी में अंत में गुरु-लघु अनिवार्य इसलिए कुण्डलिया में नहीं।
५. कुण्डलिनी में आरंभ का पहला शब्द या शब्द समूह गुरु लघु होना अनिवार्य, कुण्डलिया में नहीं।
६. कुण्डलिनी में सोरठा और दो दोहों का समायोजन, कुण्डलिया में दोहा और रोला का।
लक्षण छंद
आप सोरठा अग्र, दो दोहे पीछे रहें।
रच षट्पद अव्यग्र, बारह चरण ललित रचें।।
हों कुंडलिनी में सदा, चौ-पच चरण समान।
आदि-अंत सादृश्य से, छंद बने रसवान।
गुरु-लघु से आरंभ कर, गुरु-लघु रखिए अंत।।
अनुशासन से कथ्य को, करें प्रभावी संत।।
रच षट्पद अव्यग्र, बारह चरण ललित रचें।।
हों कुंडलिनी में सदा, चौ-पच चरण समान।
आदि-अंत सादृश्य से, छंद बने रसवान।
गुरु-लघु से आरंभ कर, गुरु-लघु रखिए अंत।।
अनुशासन से कथ्य को, करें प्रभावी संत।।
२३-११-२०१८
उदाहरण-
सत्य बसे सौराष्ट्र, महाराष्ट्र भी राष्ट्र में।
भारत में ही तात, युद्ध महाभारत हुआ।।
युद्घ महाभारत हुआ, कृष्ण न पाए रोक।
रक्तपात संहार से, दस दिश फैला शोक।।
स्वार्थ-लोभ कारण बने, वाहक बना असत्य।
काम करें निष्काम हो, सीख मिली चिर सत्य।।
*
बोल भारती आप, भारत माँ को नमन कर।
मंजिल वरिए झूम, हरसंभव सब जतन कर।।
हर संभव सब जतन कर, हरा हार को जीत।
हार पहनिए जीत का, लुटा मीत पर प्रीत।।
अपने दिल का द्वार तू, जहाँ-तहाँ मत खोल।
बात मधुर सौ बार कह, कड़वा सच मत बोल।।
२२-११-२०१८
लूट रहा है बाग, माली कलियाँ रौंदकर।
भाग रहे हैं सेठ, खुद ही डाका डालकर।।
खुद ही डाका डालकर, रपट सिखाते झूठ।
जंगल बेचे खा गए, शेष बचे हैं ठूँठ।।
कौए गर्दभ पुज रहे, कोयल होती हूट।
गौरैया को कर रहा, बाज अहिंसक शूट।।
*
आँख आँख में डाल, चलो करें अब बात हम।
चुरा-झुकाकर आँख, करें न निज विश्वास कम।।
करें न निज विश्वास कम, चलो निवारण हाथ।
काया-छाया की तरह, हों उजास में साथ।।
अंधकार में एक हों, मिला चोंच अरि पाँख।
चलो करें अब बात हम, मिला आँख से आँख।।
***
भारत में ही तात, युद्ध महाभारत हुआ।।
युद्घ महाभारत हुआ, कृष्ण न पाए रोक।
रक्तपात संहार से, दस दिश फैला शोक।।
स्वार्थ-लोभ कारण बने, वाहक बना असत्य।
काम करें निष्काम हो, सीख मिली चिर सत्य।।
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बोल भारती आप, भारत माँ को नमन कर।
मंजिल वरिए झूम, हरसंभव सब जतन कर।।
हर संभव सब जतन कर, हरा हार को जीत।
हार पहनिए जीत का, लुटा मीत पर प्रीत।।
अपने दिल का द्वार तू, जहाँ-तहाँ मत खोल।
बात मधुर सौ बार कह, कड़वा सच मत बोल।।
२२-११-२०१८
लूट रहा है बाग, माली कलियाँ रौंदकर।
भाग रहे हैं सेठ, खुद ही डाका डालकर।।
खुद ही डाका डालकर, रपट सिखाते झूठ।
जंगल बेचे खा गए, शेष बचे हैं ठूँठ।।
कौए गर्दभ पुज रहे, कोयल होती हूट।
गौरैया को कर रहा, बाज अहिंसक शूट।।
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आँख आँख में डाल, चलो करें अब बात हम।
चुरा-झुकाकर आँख, करें न निज विश्वास कम।।
करें न निज विश्वास कम, चलो निवारण हाथ।
काया-छाया की तरह, हों उजास में साथ।।
अंधकार में एक हों, मिला चोंच अरि पाँख।
चलो करें अब बात हम, मिला आँख से आँख।।
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संजीव, ७९९९५५९६१२
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