मुक्तक
गीत क्या?, नवगीत क्या?, बोलें, न बोलें।
बात मन की करें, दिल के द्वार खोलें।।
२५.११.२०१७
चली गोली लौटकर, वापिस न आती-
करें बोली से ठिठोली, मगर तोलें।।
२६.११.२०१८
*
दोहा मुक्तक
निर्मल है नवगीत का, त्रिलोचनी संसार।
निहित कल्पना मनोरम, ज्यों संध्या आगार।।
२५-११-२०१७
चंद्रकांता पूर्णिमा, में करती चुप रास-
तारों की बारात ले, चाँद मना त्यौहार।।
*
गीत क्या?, नवगीत क्या?, बोलें, न बोलें।
बात मन की करें, दिल के द्वार खोलें।।
२५.११.२०१७
चली गोली लौटकर, वापिस न आती-
करें बोली से ठिठोली, मगर तोलें।।
२६.११.२०१८
*
दोहा मुक्तक
निर्मल है नवगीत का, त्रिलोचनी संसार।
निहित कल्पना मनोरम, ज्यों संध्या आगार।।
२५-११-२०१७
चंद्रकांता पूर्णिमा, में करती चुप रास-
तारों की बारात ले, चाँद मना त्यौहार।।
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें