मुक्तक
*
मतदान कर, मत दान कर, जो पात्र उसको मत
मिले।
सब जन अगर न पात्र हों, खुल कह, न रखना लब सिले।।
मत व्यक्त कर, मत लोभ-भय से, तू बदलना राय निज-
जन मत डरे, जनमत कहे, जनतंत्र तब फूले-फले।।
*
भाषा न भूषा, जात-नाता-कुल नहीं तुम देखना।
क्या योग्यता, क्या कार्यक्षमता, मौन रह अवलोकना।।
क्या नीति दल की?, क्या दिशा दे?, देश को यह सोचना-
उसको न चुनना जो न काबिल, चुन न खुद को कोसना।।
*
जो नीति केवल राज करने हेतु हो, वह त्याज्य है।
जो कर सके कल्याण जन का, बस वही आराध्य है।
जनहित करेगा खाक वह, दल-नीति से जो बाध्य है-
क्या देश-हित में क्या नहीं, आधार सच्चा साध्य है।।
*
शासन-प्रशासन मात्र सेवक, लोक के स्वामी नहीं।
सुविधा बटोरें, भूल जनगण, क्या यही खामी नहीं?
तज सभी भत्ते और वेतन, लोकसेवा कर सके-
जो वही जनप्रतिनिधियों बने, क्यों भरें सब हामी नहीं??
*
संजीव
२७-११-२०१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 27 नवंबर 2018
मतदान कर
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