नवगीत
गंधों की डोली
अविनाश ब्यौहार
*
उठती है
गंधों की डोली
अविनाश ब्यौहार
*
उठती है
गंधों की डोली
अब तारों
की छाँव में!
*
फूलों पर रंगत
और आ गया हिजाब!
कलरव करें पंछी सा
आँखों मे ख्वाब!!
खेत, मेड़,
खलिहान, बगीचे
मनोहारी हैं
गाँव में!
*
बागों में होती
अलियों की
गुनगुन है!
आती दूर कहीं से
रबाब की धुन है!!
है मिले सुकूं
भटकी हवाओं को
पीपल की
ठाँव में!!
*
- रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर
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