राम दोहावली
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राम आत्म परमात्म भी, राम अनादि-अनंत।
चित्र गुप्त है राम का, राम सृष्टि के कंत।।
चित्र गुप्त है राम का, राम सृष्टि के कंत।।
विधि-हरि-हर श्री राम हैं, राम अनाहद नाद।
शब्दाक्षर लय-ताल हैं, राम भाव रस स्वाद।।
शब्दाक्षर लय-ताल हैं, राम भाव रस स्वाद।।
राम नाम गुणगान से, मन होता है शांत।
राम-दास बन जा 'सलिल', माया करे न भ्रांत।।
राम-दास बन जा 'सलिल', माया करे न भ्रांत।।
२६.११.२०१४
राम आम के खास के, सबके मालिक-दास। राम कर्म के साथ हैं, करते सतत प्रयास।।
वाम न राम से हो सलिल, हो जाने दे पार। केवट के सँग मिलेगा, तुझको सुयश अपार।।
राम न सहते गलत को, राम न रहते मौन। राम न कहते निज सुयश, नहीं जानता कौन?
राम न बाधा मानते, राम न करते बैर। करते हैं सत्कर्म वे, सबकी चाहें खैर।।
२६.११.२०१८
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