एक रचना
*
तेवरी के तेवर का राज
बदल दे सारा देश-समाज।
*
न जनगण से रह पाए दूर
झुका चरणों में आकर ताज।
बेर शबरी के चखने राम
प्रकट हों कलि में भी इस व्याज।
न वादों-जुमलों को दो बख्श
न चाहो श्रम बिन मिले अनाज।
हमीं लाएँगे सत्य-सुराज
संग हो न्यारा देश-समाज।
*
धर्म-मजहब अपना है एक
बचाना हर आँचल की लाज।
न भूखा सोए कोई पेट
हाथ हर कर पाए हर काज।
बनाएँ कल से कल के बीज
सेतु हम कोशिश कर-कर आज।
समय नभ जन आकांक्षा बाज
उड़े मिल प्यारा देश-समाज ।
*
छंद- रस-लय मिल बन नवगीत
बना दें दिलवर का दिल साज।
न मंदिर-मस्जिद में हो कैद
देश के सपनों की आवाज।
सराहे सारी दुनिया नित्य
हिंद-हिंदी का नव अंदाज।
नए सपनों का हो आगाज
गगन का तारा देश-समाज।
***
संजीव
२४-११-२०१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 24 नवंबर 2018
एक गीत
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