- रत्नेश्वर महादेव मंदिर वाराणसी पर विद्युत्पात
वाराणसी।
शनिवार १२-३-२०१६ को सायंकाल विद्यत्पात से लगभग ५०० वर्ष पुराने रत्नेश्वर महादेव मंदिर का शिखर क्षतिग्रस्त गया है। विश्वनाथ शिव के त्रिशूल पर स्थित काशी में दुर्घटना के समय कई श्रद्धालु उपस्थित थे, किन्तु वे सब सुरक्षित बच गये। मणिकर्णिका घाट और सिंधिया घाट के मध्य स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर को काशी करवट कहा जाता है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार देर शाम वर्षा के बीच तेज प्रकाश और आवाज़ के साथ मंदिर पर बिजली गिरते ही मणिकर्णिका घाट पर शवदाह करने आये लोगों में भगदड़ मच गयी। आम जन जान-माल की क्षति न होने को शिव की कृपा मानते हैं जबकि महंत और ज्योतिषाचार्य इस मंदिर कलश टूटने को अशुभ संकेत बता रहे हैं। बटुक भैरव मंदिर के महंत जीतेन्द्र मोहन पुरी के अनुसार काशी करवट पर बिजली गिरने का अर्थ है ने बड़ी विपत्ति को अपनी नगरी से टाला है।
किंवदंतियों के अनुसार इस ऐतिहासिक रत्नेश्वर महादेव (काशी करवट) का निर्माण १५वीं सदी में राजामान सिंह के एक सेवक ने अपनी माँ के दूध का कर्ज चुकाने हेतु कराया था। माँ के नाम पर इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव हुआ। सैकड़ों सालों से एक तरफ झुका होने कारण काशी करवट कहा जाता है। इसमें पाँच शिवलिंग स्थापित हैं।
ज्योतिषाचार्य पं ऋषि दिवेदी के अनुसार आकाश मंडल में गुरु चांडाल योग ( देव गुरु बृहस्पति और चांडाल राहु का निकट आना) विपत्तियों का सूचक है। शनि का वृश्चिक राशि में मंगल के निकट आना प्रकृति के लिये ठीक नहीं है। मंगल डेढ़ माह किसी राशि में रहता है, इस वर्ष शनि वृश्चिक राशि में ६ माह रहेगा। शनि-मंगल की युति अशुभ है।
तीर्थ पुजारी राजकुमार पांडे के अनुसार बेटा यह मंदिर बनवाकर दूध का कर्ज उतारना चाहता है। माँ को यह स्वीकार नहीं था इसलिए वह मंदिर के अंदर गये बिना, बाहर से शिव को प्रणाम गयी तो मंदिर टेढ़ा हो होकर एक ओर जमीन में धँस गया । यह मंदिर ६ महीने से ज्यादा समय जलमग्न रहता है। गंगा में जल-प्लावन के समय चालीस फिट से अधिक ऊँचे इस मंदिर का शिखर पानी में डूबा रहता है।
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