कुल पेज दृश्य

सोमवार, 14 मार्च 2016

मुक्तक

मुक्तक:
सर गम से झुकाना नहीं, है जूझना हमें
जीवन की हर पहेली है बूझना हमें 
सरगम सुनें, सर! गम को जीत सकेंगे तभी 
जब तक न एकता, नहीं हल सूझना हमें 
*
ज़िंदगी देना कठिन है, मौत देना है सरल
काटना युग को सरल है, कठिन होता एक पल
आस का, विश्वास का नेता निभाना है कठिन
सरल है करना, कठिन है 'सलिल' सहना कपट-छल
*
रवि हर सकता संताप मगर मनु कोशिश पहले आप करे
श्रम लगन एकता को वरकर, बेमानी सारे शाप करे
कठिनाई से डरना छोड़े, दुश्मन से आँख मिलाये हँस
बन राम अहल्या को तारे, बन इंद्र न कोई पाप करे
*
ख़ुदकुशी भूल भी जा, जिंदगी जीना है तुझे
सुई बन जा, फटी चादर अभी सीना है तुझे
जो है धागा, गले से उसको लगा, आप भी लग
नमी आँसू की नहीं, अधर की पीना है तुझे
*

कोई टिप्पणी नहीं: