नवगीत:
फागुन
*
फागुन की
फगुनौटी के रंग
अधिक चटख हैं
तुम्हें देखकर
*
फूला पहले भी पलाश पर
केश लटों सम कब झूमा था?
आम्र पत्तियों सँग मौर यह
हाथ थामकर कब लूमा था?
कोमल कर पल्लव गौरा का
थामे बौरा कब घूमा था?
होरा, गेहूँ-
बाली के रंग
अधिक हरित हैं
तुम्हें देखकर
*
दाह होलिका की ज्यादा है
डाह जल रही सिसक-सिसक कर
स्नेह-प्रेम की पिचकारी ने
गात भिगाया पुलक-पुलक कर
गाते हैं मन-प्राण बधाई
रास-गीत हैं युगल अधर पर
ढोलक, झाँझें
और मँजीरा
अधिक मुखर हैं
तुम्हें देखकर
*
पँचरंगी गुलाल उड़ता है
सतरंगी पिचकारी आयी
नवरंगी छवि अजब तिहारी
बिजुरी बिन बरसात गिरायी
सदा आनंद रहें ये द्वारे
कोयल कूकी, टेर लगायी
मनबसिया
चंचल चितवन चुप
अधिक चपल है
हमें देखकर
*
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
९४२५१ ८३२४४
/ ०७६१ २४१११३१
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
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