स्वास्थ्य और समाज-
मुस्लिम बहुल देश ताजिकिस्तान में आनुवंशिक विवाह प्रतिबंधित
मुस्लिम समाज में आनुवंशिक विवाह (चचेरे, फुफेरे, ममेरे, मौसेरे भाई-बहनों में विवाह) की परंपरा चिर काल से है। सनातन धर्मियों में एक परिवार, एक खानदान, एक वंश, एक कुल, एक गोत्र, एक गाँव, एक गुरुकुल के युवाओं में तथा अपने से उच्च वर्ण की कन्या से विवाह विविध समय में वर्जित रहे हैं। पिताक्षर प्रणाली के अनुसार पिता की ७ पीढ़ियों तथा मिताक्षर प्रणाली के अनुसार मत की ५ पीढ़ियों में विवाह वर्जित बताया गया है। आदिवासी समाज में भी समगोत्रीय विवाह वर्जित रहे हैं। ईसाई भी आनुवांशिक विवाह उचित नहीं मानते।
भारत में विविध कारणों से विवाह सम्बन्धी नियम भंग करने के अनेक अपवाद हैं किन्तु उनके परिणाम अधिकतर दुखद रहे हैं। विवाह नियमों को लेकर समाजशास्त्र, विधिशास्त्र, नीतिशास्त्र तथा धर्मशास्त्र में चर्चा स्वाभाविक है। विवाह में मन का मिलन हो न हो, तन का मिलन तो होता ही है और उसका परिणाम संतान उत्पत्ति के रूप में सामने आता है। इसलिए आनुवंशिकी (जिनेटिक्स साइंस) के अंतर्गत विविध विवाह प्रणालियों एवं उनके परिणामों का अध्ययन किया जाता है।
ताज़िकिस्तान चीन, अफगानिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान से घिरा हुआ, मध्य एशिया का सबसे गरीब देश है। आनुवंशिकी विवाह पर रोक लगाने के ताज़िकिस्तान के फैसले ने दुनिया को चौंकाया और मुस्लिम बहुल देशों व इस्लाम धर्मावलम्बियों के बीच बहस को तेज किया है।१३जनवरी २०१६ को ताज़िकिस्तानी संसद ने देश में कॉन्सेंग्युनियस विवाह (आनुवंशिक या रक्त संबंधियों से विवाह) पर प्रतिबंध लगाकर दुनिया को चकित कर दिया। दुनिया के मुस्लिम बहुल देशों में कॉन्सेंग्युनियस विवाह मजहब तथा समाज से सामान्यत: स्वीकृत प्रथा है।ताज़िकिस्तानी स्वास्थ्य विभाग ने माना है कि कॉन्सेंग्युनियस विवाह से पैदा होने वाले बच्चों में आनुवंशिक रोग होने की संभावनाएँ अधिक होती हैं। एक अध्ययन के अनुसार २५ हजार से अधिक विकलांग बच्चों का पंजीकरण और उनका अध्ययन करने के बाद इनमें से ३५% आनुवंशिक विवाह से उत्पन्न पाये गये हैं।
एशिया, उत्तरी अफ्रीका, स्विट्ज़रलैंड, मध्यपूर्व, और चीन, जापान और भारत के कई क्षेत्रों में कॉन्सेंग्युनियस सामान्यत: प्रचलित हैं। कई देशों में आनुवंशिक विवाह आंशिक रूप से प्रतिबंधित है। कुछ अमरीकी राज्यों में संतान उत्पत्ति में असमर्थ अथवा ६५ वर्ष से अधिक उम्र के पश्चात अनुवांशिक विवाह की अनुमति है। ब्रिटेन में पाकिस्तानी मूल के ३% बच्चे जन्म लेते हैं किन्तु १३% आनुवंशिक रोग से पीड़ित हैं। अध्ययनों के अनुसार आनुवंशिक संतानों में आनुवंशिक रोगों की संभावनाएँ कई गुना अधिक होती हैं। ब्रिटेन के ब्रैडफोर्ड में किये गये अध्ययन के अनुसार कुल जनसंख्या में से १७% पाकिस्तानी मुस्लिमों में से ७५% प्रतिशत अपने समुदाय में चचेरे, ममेरे, फुफेरे, मौसेरे भाई/बहनों से विवाह करते हैं।इनके बच्चों में से कई आनुवंशिक रोगों से ग्रस्त हैं।
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दक्षिण भारत में आनुवंशिक विवाह प्रथा के कारण बच्चों में कई तरह के रोग हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत इस विषय पर शोधरत आंध्र प्रदेश निवासी बिंदु शॉ के अनुसार भारत में ऐसे शोध नगण्य हैं। बिंदु ने आनुवंशिक विवाह करनेवाले २०० परिवारों का अध्ययन किया जिनमें से ९७ परिवारों के बच्चे आनुवंशिक रोग से पीड़ित थे। चचेरे, ममेरे, फुफेरे, मौसेरे भाई/बहनों से विवाह की तुलना में मामा से शादी होने पर बच्चों में इस तरह के विकार अधिक संभावित हैं।इस शोध के अनुसार अपने रक्तसंबंधियों से विवाह करने पर पति-पत्नी दोनों के कई जीन एक समान होते हैं। माता-पिता के जीन में कोई विकार हो तो उनके बच्चे में पहुँची विकृत जीन की दो प्रतियाँ आनुवंशिक रोग का कारण बनती हैं। समुदाय से बाहर शादी होने पर जीन की भिन्नता के कारण बच्चों में विकृत जीन पहुँचने की संभावना नगण्य होती है। बिंदु के निकट संबंधी ऐसे विवाहों के कारण आनुवंशिक रोगों का शिकार हुए जिससे उन्हें इस विषय पर शोध की प्रेरणा मिली।
आनुवंशिक विवाह के कई दुष्परिणामों जानने के बाद भी इनके प्रचलन का कारण धार्मिक मान्यताओं से ज्यादा सामाजिक पहलू हैं। संबंधियों से शादी होने पर संपत्ति का विभाजन न होना, लड़कियों की सुरक्षा तथा समान रीति-रिवाज़, खान-पान, जीवन शैली व त्यौहार आदि से ताल-मेल में सहजता भी इसके कारण हैं। बच्चे बहुत छोटी उम्र से ही अपने चचेरे, ममेरे, फुफेरे, मौसेरे भाई-बहनों के साथ मिलते-जुलते, खेलते-कूदते और साथ-साथ बड़े होते हैं। उनकी आपसी समझ अच्छी होती है। आनुवंशिक विवाह वर्जित माननेवाले समुदायों में बच्चों में अनुराग भाव विकसित नहीं होता, राखी और भाई दूज जैसे पर्व सनातनधर्मियों में वंश से बाहर के युवाओं में विवाह संबंध अमान्य कर देते हैं। आनुवंशिक विवाह माननेवाले परिवारों के बच्चों में अन्य चचेरे, ममेरे, फुफेरे, मौसेरे भाई-बहनों के प्रति लगाव पनपना स्वाभाविक है।
ताजिकिस्तान में लिए गए निर्णय के विरोधी आनुवंशिक विवाह के पक्षधर अनुवांशिक विवाहों से आनुवांशिक रोगों संबंधी तथ्य को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया मानते हुए और अधिक आंकड़े चाहते हैं।इनके अनुसार आनुवंशिक विवाह से होने वाले बच्चों के बीमार होने की उतनी ही संभावना ४० वर्ष से अधिक उम्र की महिला के माँ बनने पर उसके बच्चे के बीमार होने के समान होती हैं।इनकी आपत्ति है कि जब किसी ४० वर्ष से अधिक उम्र की महिला के माँ बनने पर रोक नहीं है तो फिर आनुवंशिक विवाह पर रोक क्यों हो? चिकित्सा विज्ञान के जानकार ताजिकिस्तान के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं।
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