नवगीत:
तुम रूठीं
*
तुम रूठीं तो
मन-मंदिर में
घंटी नहीं बजी।
रहीं वन्दना,
भजन, प्रार्थना
सारी बिना सुनी।
*
घर-आँगन में
ऊषा-किरणें
बिन नाचे उतरीं।
ना चहके-
फुदके गौरैया
क्या खुद से झगड़ी?
गौ न रँभायी
श्वान न भौंका
बिजली गोल हुई।
कविताओं की
गति-यति-लय भी
अनजाने बिगड़ी।
सुड़की चाय
न लेकिन तन ने
सुस्ती तनिक तजी।
तुम रूठीं तो
मन-मंदिर में
घंटी नहीं बजी।
*
दफ्तर में
अफसर से नाहक
ठानी ठनाठनी ।
बहक चके-
यां के वां घूमे
गाड़ी फिसल भिड़ी.
राह काट गई
करिया बिल्ली
तनिक न रुकी मुई।
जेब कटी तो
अर्थव्यवस्था
लडखडाई तगड़ी।
बहुत हुआ
अनबोला अब तो
लो पुकार ओ जी!
तुम रूठीं तो
मन-मंदिर में
घंटी नहीं बजी।
*
१-३-२०१६
तुम रूठीं
*
तुम रूठीं तो
मन-मंदिर में
घंटी नहीं बजी।
रहीं वन्दना,
भजन, प्रार्थना
सारी बिना सुनी।
*
घर-आँगन में
ऊषा-किरणें
बिन नाचे उतरीं।
ना चहके-
फुदके गौरैया
क्या खुद से झगड़ी?
गौ न रँभायी
श्वान न भौंका
बिजली गोल हुई।
कविताओं की
गति-यति-लय भी
अनजाने बिगड़ी।
सुड़की चाय
न लेकिन तन ने
सुस्ती तनिक तजी।
तुम रूठीं तो
मन-मंदिर में
घंटी नहीं बजी।
*
दफ्तर में
अफसर से नाहक
ठानी ठनाठनी ।
बहक चके-
यां के वां घूमे
गाड़ी फिसल भिड़ी.
राह काट गई
करिया बिल्ली
तनिक न रुकी मुई।
जेब कटी तो
अर्थव्यवस्था
लडखडाई तगड़ी।
बहुत हुआ
अनबोला अब तो
लो पुकार ओ जी!
तुम रूठीं तो
मन-मंदिर में
घंटी नहीं बजी।
*
१-३-२०१६
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें