मुक्तिका:
मापनी- २११ २२१ ११२
*
काश न हों यूँ सरहदें
प्यार सकें बो हर हदें
टूट रही है कमर ही
तोड़ रहा है कर हदें
बोझ न बनती ज़िंदगी
हो सकते गर घर-हदें
पूछ रहा है समय चुप
क्यों न कर सके सर हदें
ऊग रहा सूरज चलो
हों खुशियों से तर हदें
होश न खो, आ मिल गले
दूर करें सब डर हदें
खोल न देना खिड़कियाँ
तोड़ न देना दर-हदें
***
मापनी- २११ २२१ ११२
*
काश न हों यूँ सरहदें
प्यार सकें बो हर हदें
टूट रही है कमर ही
तोड़ रहा है कर हदें
बोझ न बनती ज़िंदगी
हो सकते गर घर-हदें
पूछ रहा है समय चुप
क्यों न कर सके सर हदें
ऊग रहा सूरज चलो
हों खुशियों से तर हदें
होश न खो, आ मिल गले
दूर करें सब डर हदें
खोल न देना खिड़कियाँ
तोड़ न देना दर-हदें
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