गीत:
चलो हम सूरज उगायें
*
संजीव 'सलिल'
*
चलो! हम सूरज उगाएं...
*
सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरितिमा मिल हम उगायें....
विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुंदर रचें हम-
सभी सब के काम आयें...
*
लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?
सोच यह जीवन जियें हम।
हाथ-हाथों से मिलाएं...
आत्म में विश्वात्म देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवायें...
*
तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सत सुनेंगे।
नाद अनहद गूंजता जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...
*********************
चलो हम सूरज उगायें
*
संजीव 'सलिल'
*
चलो! हम सूरज उगाएं...
*
सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरितिमा मिल हम उगायें....
विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुंदर रचें हम-
सभी सब के काम आयें...
*
लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?
सोच यह जीवन जियें हम।
हाथ-हाथों से मिलाएं...
आत्म में विश्वात्म देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवायें...
*
तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सत सुनेंगे।
नाद अनहद गूंजता जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...
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10 टिप्पणियां:
vijay द्वारा yahoogroups.com
संजीव जी,
सभी पंक्तियाँ मनभावन हैं।
विजय
deepti gupta
अतिसुन्दर संजीव जी ....... बेहद प्यारे बिम्ब!
विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुंदर रचें हम-
सभी सब के काम आयें...
*
तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सत सुनेंगे।
नाद अनहद गूंजता जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...
ढेर साधुवाद !
सादर,
दीप्ति
Kanu Vankoti kavyadhara
प्रियवर,
कविता और साथ ही संलग्न चित्र , दोनों ही मन भावन ...मं में सुख- शांति का संचार करने वाले.
हार्दिक साधुवाद !
सादर,
कनु
- shishirsarabhai@yahoo.com
वाह, वाह , वाह *=D> applause*=D> applause
अनन्य सराहना....
सादर,
शिशिर
Indira Pratap
प्रिय संजीव भाई,
अद्भुद चित्र अद्भुद कविता ----------- चलो! हम सूरज उगाएँ
मरुस्थल भी जी उठेंगे, ग़जबका आत्म विश्वास, जीवन से भर देता है| अनेक साधूवाद| इन्दिरा
Mange Choudhary
NICE YAR
saeed Ahmed
kavita bhi ur sabak bhi
saeed ahmed editor WEB VARTA
DILIP KUMAR SAHAL
LIKE
- madhuvmsd@gmail.com
आ. आचार्य जी
आपकी पँक्तियों से प्रेरणा मिली, उत्साह बढ़ा,
तिमिर से क्यों डरें हम
भविष्य की कर कल्पना
बोझिल करें क्यों आज अपना
बुद्धि व विवेक का, क्यों करे न आज वरन हम ?
तिमिर से क्यों डरें हम
मधु
shar_j_n
आदरणीय सलिल जी,
सुन्दर कविता !
ये बहुत ही सुन्दर :
"सभी सब के काम आयें...
*
लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?"
सादर शार्दुला
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