हास्य पद:
जाको प्रिय न घूस-घोटाला
संजीव 'सलिल'
*
जाको प्रिय न घूस-घोटाला...
वाको तजो एक ही पल में, मातु, पिता, सुत, साला.
ईमां की नर्मदा त्यागकर, न्हाओ रिश्वत नाला..
नहीं चूकियो कोऊ औसर, कहियो लाला ला-ला.
शक्कर, चारा, तोप, खाद हर सौदा करियो काला..
नेता, अफसर, व्यापारी, वकील, संत वह आला.
जिसने लियो डकार रुपैया, डाल सत्य पर ताला..
'रिश्वतरत्न' गिनी-बुक में भी नाम दर्ज कर डाला.
मंदिर, मस्जिद, गिरिजा, मठ तज, शरण देत मधुशाला..
वही सफल जिसने हक छीना,भुला फ़र्ज़ को टाला.
सत्ता खातिर गिरगिट बन, नित रहो बदलते पाला..
वह गर्दभ भी शेर कहाता बिल्ली जिसकी खाला.
अख़बारों में चित्र छपा, नित करके गड़बड़ झाला..
निकट चुनाव, बाँट बन नेता फरसा, लाठी, भाला.
हाथ ताप झुलसा पड़ोस का घर धधकाकर ज्वाला..
सौ चूहे खा हज यात्रा कर, हाथ थाम ले माला.
बेईमानी ईमान से कर, 'सलिल' पान कर हाला..
है आराम ही राम, मिले जब चैन से बैठा-ठाला.
परमानंद तभी पाये जब 'सलिल' हाथ ले प्याला..
****************
(महाकवि तुलसीदास से क्षमाप्रार्थना सहित)
जाको प्रिय न घूस-घोटाला
संजीव 'सलिल'
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जाको प्रिय न घूस-घोटाला...
वाको तजो एक ही पल में, मातु, पिता, सुत, साला.
ईमां की नर्मदा त्यागकर, न्हाओ रिश्वत नाला..
नहीं चूकियो कोऊ औसर, कहियो लाला ला-ला.
शक्कर, चारा, तोप, खाद हर सौदा करियो काला..
नेता, अफसर, व्यापारी, वकील, संत वह आला.
जिसने लियो डकार रुपैया, डाल सत्य पर ताला..
'रिश्वतरत्न' गिनी-बुक में भी नाम दर्ज कर डाला.
मंदिर, मस्जिद, गिरिजा, मठ तज, शरण देत मधुशाला..
वही सफल जिसने हक छीना,भुला फ़र्ज़ को टाला.
सत्ता खातिर गिरगिट बन, नित रहो बदलते पाला..
वह गर्दभ भी शेर कहाता बिल्ली जिसकी खाला.
अख़बारों में चित्र छपा, नित करके गड़बड़ झाला..
निकट चुनाव, बाँट बन नेता फरसा, लाठी, भाला.
हाथ ताप झुलसा पड़ोस का घर धधकाकर ज्वाला..
सौ चूहे खा हज यात्रा कर, हाथ थाम ले माला.
बेईमानी ईमान से कर, 'सलिल' पान कर हाला..
है आराम ही राम, मिले जब चैन से बैठा-ठाला.
परमानंद तभी पाये जब 'सलिल' हाथ ले प्याला..
****************
(महाकवि तुलसीदास से क्षमाप्रार्थना सहित)
5 टिप्पणियां:
- mcdewedy@gmail.com
वाह सलिल जी।
यथार्थ निरूपण कोई आप से सीखे।
मह्रेश चन्द्र द्विवेदी
2013/1/27 deepti gupta
*=D> applause *=D> applause *=D> applause
ढेर सराहना के साथ
सादर,
दीप्ति
Indira Pratap द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
सलिल भाई,
हास्य रस की बढ़िया रचना, आज कल आप बहुत मूड में हैं|हास्य में व्यंग का रस भी खूब उभर कर सामने आया है |
दिद्दा
sn Sharma द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
हास्य रस की कटूक्तियां भी एक अलग प्रभाव रखती हैं।
ऐसे व्यंग को हास्य में डूबाकर लिखने में केवल आचार्यजी की लेखनी ही सक्षम है-
लिखना व्यंग बड़ा मुश्किल है
सुनना व्यंग और भी मुश्किल
विरला ही रखता सीने में
व्यंग झेलने वाला दिल
तीखी पैनी व्यंग-धार का
घाव बड़ा गहरा होता है
श्रोता हंसता पर शिकार तो
हँसते हँसते हँसते भी रोता है
कमल दादा
दादा, दिद्दा, दीप्ति का, जुड़ना शुभ संयोग।
'सलिल' धन्य आशीष पा, हरिए रिश्वत रोग।।
भस्मित भ्रष्टाचार को, करते काश महेश।
दानव-मानव संग ही, होते शुद्ध सुरेश।।
आपका आभार शत-शत
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