लघु कथा:
खुशामद
भारतेंदु हरिश्चन्द्र
*
एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, 'कहो जी, तुम्हारी माशूका तुम्हें क्यों नहीं मिली।'
बेचारा उदास होकर बोला, 'यार कुछ न पूछो! मैंने इतनी खुशामद की कि उसने अपने को सचमुच ही परी समझ लिया और हम आदमियों से बोलने में भी परहेज किया।'
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खुशामद
भारतेंदु हरिश्चन्द्र
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एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, 'कहो जी, तुम्हारी माशूका तुम्हें क्यों नहीं मिली।'
बेचारा उदास होकर बोला, 'यार कुछ न पूछो! मैंने इतनी खुशामद की कि उसने अपने को सचमुच ही परी समझ लिया और हम आदमियों से बोलने में भी परहेज किया।'
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