काव्य कुञ्ज:
कितना - क्याएस. एन. शर्मा 'कमल'
*
किसको कितनी ममता बाँटी
कितना मौन मुखर कर पाया
कितने मिले सफ़र में साथी
कितना किसने साथ निभाया
लेखाजोखा क्या अतीत का
क्या खोया कितना पाया
जीवन यात्रा के समीकरण
कितने सुलझे कितने उलझे
कितनी बार कहाँ पर अटका
रही न गिनती याद मुझे
जब आँगन में भीड़ लगी
कितना प्यार किसे दे पाया
कितने सपने रहे कुवाँरे
कितने विधुर बने जो ब्याहे
कितनी साँसें रहीं अधूरी
कितनी बीत गईं अनचाहे
उमर ढल गई शाम हो गई
उलझी गाँठ न सुलझा पाया
सजी रह गई द्वार अल्पना
पल छिन पागल मन भरमाये
रही जोहती बाट तुम्हारी
लेकिन प्रीतम तुम ना आये
प्राण-पखेरू उड़े छोड़ सब
धरी रह गई माया काया
जितनी साँसें ले कर आया
उन्हें सजा लूं गीतों में भर
मुझे उठा लेना जग-माली
पीड़ा-रहित क्षणों में आ कर
जग की रीति नीति ने अबतक
मन को बहुतै नाच नचाया
*****
कितना - क्याएस. एन. शर्मा 'कमल'
*
किसको कितनी ममता बाँटी
कितना मौन मुखर कर पाया
कितने मिले सफ़र में साथी
कितना किसने साथ निभाया
लेखाजोखा क्या अतीत का
क्या खोया कितना पाया
जीवन यात्रा के समीकरण
कितने सुलझे कितने उलझे
कितनी बार कहाँ पर अटका
रही न गिनती याद मुझे
जब आँगन में भीड़ लगी
कितना प्यार किसे दे पाया
कितने सपने रहे कुवाँरे
कितने विधुर बने जो ब्याहे
कितनी साँसें रहीं अधूरी
कितनी बीत गईं अनचाहे
उमर ढल गई शाम हो गई
उलझी गाँठ न सुलझा पाया
सजी रह गई द्वार अल्पना
पल छिन पागल मन भरमाये
रही जोहती बाट तुम्हारी
लेकिन प्रीतम तुम ना आये
प्राण-पखेरू उड़े छोड़ सब
धरी रह गई माया काया
जितनी साँसें ले कर आया
उन्हें सजा लूं गीतों में भर
मुझे उठा लेना जग-माली
पीड़ा-रहित क्षणों में आ कर
जग की रीति नीति ने अबतक
मन को बहुतै नाच नचाया
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