मुक्तिका:
क्या कहूँ...
संजीव 'सलिल'
*
क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता.
बिन कहे भी रहा नहीं जाता..
काट गर्दन कभी सियासत की
मौन हो अब दहा नहीं जाता..
ऐ ख़ुदा! अश्क ये पत्थर कर दे,
ऐसे बेबस बहा नहीं जाता.
सब्र की चादरें जला दो सब.
ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता..
हाय! मुँह में जुबान रखता हूँ.
सत्य फिर भी कहा नहीं जाता..
देख नापाक हरकतें जड़ हूँ.
कैसे कह दूं ढहा नहीं जाता??
सर न हद से अधिक उठाना तुम
मुझसे हद में रहा नहीं जाता..
**********
क्या कहूँ...
संजीव 'सलिल'
*
क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता.
बिन कहे भी रहा नहीं जाता..
काट गर्दन कभी सियासत की
मौन हो अब दहा नहीं जाता..
ऐ ख़ुदा! अश्क ये पत्थर कर दे,
ऐसे बेबस बहा नहीं जाता.
सब्र की चादरें जला दो सब.
ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता..
हाय! मुँह में जुबान रखता हूँ.
सत्य फिर भी कहा नहीं जाता..
देख नापाक हरकतें जड़ हूँ.
कैसे कह दूं ढहा नहीं जाता??
सर न हद से अधिक उठाना तुम
मुझसे हद में रहा नहीं जाता..
**********
5 टिप्पणियां:
आशीष नैथानी 'सलिल' 13 hours ago
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" सर न हद से अधिक उठाना तुम
मुझसे हद में रहा नहीं जाता "
वाह बहुत सुन्दर|
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA 16 hours ago
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सब्र की चादरें जला दो सब.
ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता..
हद हो गयी. जलाना जरूरी है
बधाई.
सदस्य कार्यकारिणी Comment by Dr.Prachi Singh 16 hours ago
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सब्र की चादरें जला दो सब.
ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता.....सचमुच कब तक सब्र करके ज़ुल्म सहें, कब तक मैत्री के हाथ बढ़ाते रहें. अब बस.
सर न हद से अधिक उठाना तुम
Er. Ganesh Jee "Bagi"
सामयिक घटनाओं पर कवि का आक्रोश इस रचना में जिवंत हो उठता है, अंतिम दो पक्तियां बहुत बड़ी बात कह जाती हैं, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, इस तरह की रचनायें रोज रोज जन्म नहीं लेतीं | बहुत बहुत बधाई आचार्य जी इस सार्थक अभिव्यक्ति पर |
Dr.Prachi Singh
सब्र की चादरें जला दो सब.
ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता.....सचमुच कब तक सब्र करके ज़ुल्म सहें, कब तक मैत्री के हाथ बढ़ाते रहें. अब बस.
सर न हद से अधिक उठाना तुम
मुझसे हद में रहा नहीं जाता.....अब सर हद से ज्यादा उठ चुका है, हमें भी हदें तोडनी ही होंगी.
पीड़ा, आक्रोश भरी इस मुक्तिका के लिए आपको नमन आदरणीय संजीव जी.,.
PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA
सब्र की चादरें जला दो सब.
ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता..
हद हो गयी. जलाना जरूरी है
बधाई.
आशीष नैथानी 'सलिल'
" सर न हद से अधिक उठाना तुम
मुझसे हद में रहा नहीं जाता "
वाह बहुत सुन्दर|
बागी जी, प्राची जी, प्रदीप जी, आशीष जी
मुक्तिका को सराहने हेतु आभार.
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